नाबालिग लड़की से बलात्कार और तस्करी के आरोपी वकील को हाईकोर्ट ने ज़मानत देने से किया इनकार
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ज़िला कोर्ट में कार्यरत वकील को ज़मानत देने से इनकार किया, जिस पर नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार और उसे तस्करी में धकेलने का आरोप है। वकील ने अदालती कार्यवाही के दौरान बाद में याद आने पर आरोपी का नाम लिया था। अदालत ने कहा कि आरोपी के ख़िलाफ़ विशिष्ट आरोप लगाए गए।
जस्टिस विशाल मिश्रा की पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड के अनुसार,
"अदालती कार्यवाही के दौरान पीड़िता ने वर्तमान आवेदक की पहचान की है"। स्पष्ट रूप से कहा कि "आवेदक ही वह व्यक्ति है जिसने कई मौकों पर उसके साथ बलात्कार किया।"
अदालत ने कहा,
"उसने स्पष्ट रूप से कहा कि आवेदक ने उसे अपने कार्यालय में बुलाया और उसके साथ बलात्कार किया। वह उसका नाम नहीं जानती थी, लेकिन जैसे ही किसी अन्य वकील ने उसका नाम लिया, उसे तुरंत याद आ गया कि आवेदक वही व्यक्ति है, जिसने उसके साथ बलात्कार किया था।"
हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने इस मामले में कोई संज्ञान नहीं लिया, बल्कि पीड़िता का बयान और रिकॉर्ड पुलिस अधिकारियों को आवश्यक कार्रवाई के लिए भेज दिए, जिसके बाद आवेदक को गिरफ्तार कर लिया गया।
इसके बाद अदालत ने कहा:
"इन परिस्थितियों में चूंकि पीड़िता ने वर्तमान आवेदक के विरुद्ध विशिष्ट आरोप लगाए और अभियोजन पक्ष के आरोपों के अनुसार वर्तमान आवेदक और अन्य सह-आरोपियों द्वारा उसे मानव तस्करी में घसीटा गया, जिसके लिए मामले की विस्तृत जांच आवश्यक है, इसलिए इस स्तर पर ज़मानत देने का कोई मामला नहीं बनता।"
रीवा जिला कोर्ट में कार्यरत वकील, आरोपी ने 2023 में दर्ज अपहरण (धारा 363), नाबालिग लड़की की खरीद-फरोख्त (धारा 366-ए), बलात्कार (धारा 376), मानव तस्करी (धारा 370), छद्मवेश धारण करके धोखाधड़ी (धारा 419), और आपराधिक षडयंत्र (धारा 120-बी) तथा POCSO Act की धारा 3 और 4 के तहत दर्ज FIR में नियमित जमानत के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। वह 13 सितंबर से हिरासत में था।
पीड़िता ने वकील का नाम तब लिया, जब ट्रायल कोर्ट में उसका बयान दर्ज किया जा रहा था। इसके बाद पुलिस अधिकारियों ने कार्रवाई करते हुए आरोपी वकील को गिरफ्तार कर लिया।
आरोपी के वकील ने दावा किया कि गिरफ्तारी अवैध है और 2023 में दर्ज अपराध के तहत की गई। यह भी दावा किया गया कि केवल पीड़िता के बयान के आधार पर CrPC के तहत निर्धारित उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
सुखपाल सिंह खैरा बनाम पंजाब राज्य के मामले का हवाला देते हुए यह तर्क दिया गया कि एक बार ट्रायल कोर्ट में आरोपपत्र दाखिल हो जाने के बाद प्राधिकारियों द्वारा कोई गिरफ्तारी नहीं की जा सकती। यह तर्क दिया गया कि वर्तमान मामले में आरोपपत्र पहले ही दाखिल किया जा चुका है। अब प्राधिकारियों को उचित निर्देश प्राप्त करने के लिए एक उपयुक्त आवेदन दायर करना आवश्यक है।
हालांकि, राज्य के डिप्टी-एडवोकेट जनरल ने दलील दी कि पीड़िता की मुख्य परीक्षा के दौरान, उसने स्पष्ट रूप से कहा कि पीड़िता ने उसके साथ बलात्कार किया था।
यह तर्क दिया गया कि शिकायतकर्ता ने अपने स्पष्टीकरण में कहा कि जब उसने अदालती कार्यवाही के दौरान किसी अन्य वकील द्वारा वर्तमान आवेदक का नाम सुना तो "उसे यह तथ्य याद आया कि आवेदक वही व्यक्ति है जिसने उसके साथ बलात्कार किया था"।
अभियोजन पक्ष ने अदालत का ध्यान उसके बयान की ओर आकर्षित किया, जिसमें उसने स्पष्ट रूप से कहा कि वर्तमान आवेदक ने कई मौकों पर उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए।
यह भी दावा किया गया कि ट्रायल कोर्ट ने कोई निर्देश जारी नहीं किया, बल्कि मामले की आगे की जांच के लिए सामग्री पुलिस अधिकारियों को सौंप दी, जो अदालत के अधिकार क्षेत्र में था। इस प्रकार, राज्य ने कहा कि अदालत को इस मामले में आगे की जांच के निर्देश देने का अधिकार है, जब भी कोई नया तथ्य अदालत के संज्ञान में आता है।
राज्य ने दावा किया कि अभियुक्त आदतन अपराधी है, जो एक नेक पेशे में अपनी प्रैक्टिस का लाभ उठा रहा था। यह भी तर्क दिया गया कि अभियुक्त ने चार अन्य लोगों के साथ मिलकर पीड़िता को "मानव तस्करी में घसीटा"।
यह दावा किया गया कि उन्होंने पीड़िता की पहचान उजागर करने की धमकी दी, क्योंकि उसने खुद को हिंदू समुदाय से संबंधित बताते हुए विवाह किया और उसे मानव तस्करी के धंधे में वापस आने के लिए मजबूर कर रहे हैं।
इसलिए राज्य ने विस्तृत जांच आवश्यक बताते हुए याचिका खारिज करने का अनुरोध किया। इसके साथ ही ज़मानत याचिका खारिज कर दी गई।
Case Title: YK v State of MP (MCRC-43436-2025)