मोरबी ब्रिज हादसा- 'बिना टेंडर आमंत्रित किए रेनोवेशन का ठेका कैसे दे दिया?' गुजरात हाईकोर्ट ने ब्रिज मेंटेनेंस के लिए हुए एमओयू पर सवाल उठाए

Update: 2022-11-15 07:37 GMT

मोरबी ब्रिज हादसा

गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने 30 अक्टूबर को मोरबी ब्रिज हादसे से संबंधित स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई करते हुए गुजरात स्थित अजंता मैन्युफैक्चरिंग को रेनोवेशन का ठेका देने के तरीके पर सवाल उठाया। अजंता मैन्युफैक्चरिंग ओरेवा समूह का एक हिस्सा है।

चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष जे शास्त्री की खंडपीठ ने कहा,

"राज्य ने ऐसे कदम उठाए जो उससे अपेक्षित थे लेकिन मोरबी सिविक बॉडी और एक निजी ठेकेदार (पुल नवीकरण के लिए) के बीच हस्ताक्षरित समझौता सिर्फ 1.5 पृष्ठों का है। कोई टेंडर आमंत्रित नहीं की गई थी। बिना टेंडर को आमंत्रित किए रेनोवेशन का ठेका कैसे दे दिया?"

खंडपीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि बिना किसी टेंडर के अजंता कंपनी को ठेका कैसे दी गई।

न्यायालय ने यह भी कहा कि 2017 में निलंबन पुल के संबंध में संचालन, रखरखाव, प्रबंधन और किराया एकत्र करने के लिए कलेक्टर राजकोट और अजंता के बीच हस्ताक्षरित एक समझौता ज्ञापन की समाप्ति के बावजूद, अजंता कंपनी द्वारा पुल का रखरखाव जारी रखा गया था।

कोर्ट ने कहा,

"15/6/2017 से, 2 साल की अवधि के लिए, बिना एमओयू या समझौते या सौंपे, अजंता कंपनी द्वारा प्रश्न में पुल का रखरखाव जारी रखा गया था। उक्त अनुबंध समाप्त होने के बाद, क्या कदम उठाए गए थे, यह आगे की अवधि के लिए निविदा जारी करने के लिए स्पष्ट नहीं है?"

इसके अलावा, न्यायालय ने राज्य सरकार के समक्ष निम्नलिखित टिप्पणियां/प्रश्न रखे,

1. समझौता ज्ञापन के तहत, यह नहीं बताया गया है कि किसके पास यह प्रमाणित करने की जिम्मेदारी थी कि पुल उपयोग के लिए उपयुक्त है।

2. जब समझौता ज्ञापन 2017 में समाप्त हो गया, तो आगे की अवधि के लिए निविदा जारी करने के लिए क्या कदम उठाए गए थे।

3. जून 2017 के बाद भी किस आधार पर पुल को अजंता द्वारा संचालित करने की अनुमति दी जा रही थी, जबकि एमओयू (2008 में हस्ताक्षरित), 2017 के बाद रिन्यू नहीं किया गया था (नए एमओयू पर 2020 में हस्ताक्षर किए गए थे)?

4. क्या गुजरात नगरपालिका अधिनियम की धारा 65 का अनुपालन हुआ था?:

5. इसने गुजरात नगर पालिका अधिनियम की धारा 263 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग क्यों नहीं किया क्योंकि प्रथम दृष्टया नगर पालिका ने चूक की है, जिसके कारण एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई जिसके परिणामस्वरूप 135 निर्दोष व्यक्तियों की जान चली गई।

गुजरात उच्च न्यायालय ने मोरबी पुल हादसे का स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य को मामले में स्टेस रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा था।

चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष जे शास्त्री की पीठ ने एडवोकेट जनरल कमल त्रिवेदी से 7 नवंबर को कहा था,

"हमने मोरबी की इस घटना का स्वतः संज्ञान लिया है। हम आपकी ओर से कुछ कार्रवाई चाहते हैं।"

मच्छू नदी पर लटके 141 साल पुराने सस्पेंशन ब्रिज को ओरेवा कंपनी द्वारा मरम्मत और रखरखाव के बाद दो हफ्ते पहले फिर से खोल दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका में मामले की न्यायिक जांच की मांग की गई है।



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