नाबालिग मुस्लिम लड़की की शादी अमान्य; पॉक्सो एक्ट पर्सनल लॉ को ओवरराइड करता हैः कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2022-10-30 14:50 GMT

Karnataka High Court

एक नाबालिग मुस्लिम लड़की से शादी करने वाले एक व्यक्ति की जमानत याचिका पर विचार करते हुए, कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में इस तर्क को खारिज कर दिया कि एक नाबालिग मुस्लिम लड़की की शादी यौवन (15 वर्ष की आयु) प्राप्त करने के बाद विवाह बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 का उल्लंघन नहीं मानी जाएगी।

जस्टिस राजेंद्र बादामीकर की पीठ ने आगे कहा कि पॉक्सो एक्ट एक विशेष अधिनियम है और यह पर्सनल लॉ को ओवरराइड करता है और इस अधिनियम के अनुसार, यौन गतिविधियों में शामिल होने की आयु 18 वर्ष है।

यह आदेश पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा दिए गए उस आदेश के कुछ दिनों बाद आया है जहां हाईकोर्ट ने माना है कि 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की मुस्लिम महिला अपनी मर्जी और सहमति से अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी कर सकती है, और इस तरह की शादी बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 की धारा 12 के संदर्भ में अमान्य नहीं होगी।

संक्षेप में मामला

वर्तमान मामले में आरोपी के खिलाफ बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 की धारा 9 और 10 और पॉक्सो एक्ट की धारा 4 और 6 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए केस दर्ज किया गया है। उस पर आरोप है कि उसने एक नाबालिग मुस्लिम लड़की से शादी की और उसे गर्भवती कर दिया।

यह मामला तब सामने आया जब 16 जून 2022 को पीड़िता/आरोपी की पत्नी ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में मेडिकल चेकअप के लिए संपर्क किया और जांच में पता चला कि वह गर्भवती है। इसके अलावा, यह भी पता चला है कि उसकी उम्र केवल 17 वर्ष है। इसलिए केआर पुरम थाने के पुलिस उपनिरीक्षक ने याचिकाकर्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।

जमानत की मांग करते हुए, आरोपी के वकील ने हाईकोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि मुस्लिम कानून के तहत, यौवन विवाह के लिए विचार योग्य है और सामान्य यौवन की आयु को 15 वर्ष माना जाता है, इसलिए वर्तमान मामले में, चूंकि लड़की ने यौवन प्राप्त कर लिया था, इसलिए बाल विवाह निषेध अधिनियम की धारा 9 और 10 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है।

हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को स्पष्ट रूप से खारिज करते हुए कहा कि पॉक्सो एक्ट एक विशेष अधिनियम है और यह पर्सनल लॉ को ओवरराइड करता है और इसके अनुसार, यौन गतिविधियों में शामिल होने की आयु 18 वर्ष है।

हालांकि, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि पीड़िता की उम्र लगभग 17 वर्ष है और वह चीजों को समझने में सक्षम थी, अदालत ने कहा कि यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं था कि उसने अपनी शादी पर कोई आपत्ति जताई थी और इसलिए, प्रथम दृष्टया यह प्रत्यक्ष रूप से स्पष्ट है कि वह भी इस शादी के लिए सहमति देने वाला पक्ष थी, हालांकि उसने ऐसा अपने माता-पिता के प्रभाव में आकर किया था।

अदालत ने आरोपी को एक लाख की राशि के निजी मुचलके को निष्पादित करने की शर्त पर जमानत देते हुए कहा,

''जाहिर है, याचिकाकर्ता पीड़िता का पति है और इन तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए कि शादी को लेकर कोई गंभीर विवाद नहीं है क्योंकि याचिकाकर्ता ने खुद कोर्ट के समक्ष संबंधित दस्तावेज पेश किए हैं।''

संबंधित समाचारों में, सुप्रीम कोर्ट इस सवाल की जांच करने के लिए तैयार है कि क्या एक नाबालिग मुस्लिम लड़की यौवन प्राप्त करने पर शादी कर सकती है? क्योंकि हाल ही में कोर्ट ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया है। आयोग ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है,जिसमें कहा गया है कि एक 16 वर्षीय मुस्लिम लड़की वैध विवाह कर सकती है।

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