केवल दवा या उपचार की अत्यधिक कीमत के कारण दुर्लभ बीमारी से पीड़ित बच्चों को इलाज से वंचित नहीं किया जा सकताः दिल्‍ली हाईकोर्ट

Update: 2021-01-18 05:54 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट की एकल पीठ ने कहा है कि दवा या उपचार की अत्यधिक कीमत के कारण दुर्लभ बीमारी से पीड़ित बच्चों को इलाज से वंचित नहीं किया जा सकता है। ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) नामक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए दायर दो याचिकाएं पर जस्टिस प्रतिभा एम सिंह की पीठ ने यह टिप्पणी की।

कोर्ट ने दोनों याचिकाओं पर एक सामान्य फैसला देकर भारत संघ और केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को निर्देश जारी किया कि दुर्लभ रोगों के लिए मसौदा स्वास्थ्य नीति 2020 के कार्यान्वयन को जल्द से जल्द अंतिम रूप दें।

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि उपचार में अत्यधिक कीमतों के कारण सरकार को पीड़‌ितों को मुफ्त इलाज मुहैया कराना चाहिए, क्योंकि उक्त दुर्लभ बीमारी मसौदा नीति के तहत बखूबी आती है, तो वर्तमान में परामर्श चरण में है।

न्यायालय ने भारत संघ को मसौदा नीति को लागू करने और अधिसूचित करने का निर्देश दिया और इस बीच याचिकाकर्ताओं के सफल उपचार के लिए चंदे पर भी विचार किया।

मामला

ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) नामक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित दो बच्चों के प्राकृतिक अभिभावकों द्वारा याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, बीमारी की दुर्लभता के कारण, इसकी दवा का निर्माण अमेरिका की एक कंपनी सार्प्टा थेराप्यूटिक्स द्वारा किया जाता है। भारत में यह दवा प्रयोगात्मक चरण में है।

याचिकाकर्ताओं ने दवा के महंगे दामों से व्यथित होकर याचिका दायर की थी, जिसमें भारत संघ, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से यह सुनिश्चित कराने के लिए निर्देश मांगे गए थे कि याचिकाकर्ताओं को मुफ्त इलाज दिया जाए क्योंकि वे नहीं म‌हंगी दवा का इंतजाम नहीं कर सकते हैं।

एक याचिका में (मास्टर अर्नेश शॉ), भारत संघ ने हलफनामा दिया था, जिसमें कहा गया था कि दुर्लभ रोगों के लिए एक मसौदा स्वास्थ्य नीति 2020 में जारी की गई है, जो अभी परामर्श के चरण में है। यह भी कहा गया कि 2017 की पूर्व नीति सरकार द्वारा लागू नहीं की गई थी।

इसलिए, इसे देखते हुए, हाईकोर्ट ने दिनांक 07.08.2020 के आदेश के तहत, याचिकाकर्ता की स्वास्थ्य स्थितियों को देखते हुए एम्स को एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।

रिपोर्ट में यह बताया गया था कि बच्चे को एक्सॉन्डिस 51 थेरेपी दिए जाने के बावजूद उसमें सुधार की संभावना नहीं दिख रही है।

हालांकि, रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया था कि कि मामले में अंतिम अनुशंशा दुर्लभ रोगों के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की केंद्रीय तकनीकी समिति द्वारा द्वारा ली जाएगी।

फैसला

पीठ ने बच्चों की स्वास्थ्य स्थितियों की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए कहा कि, "दवा या उपचार के अत्यधिक महंगा होन के कारण दुर्लभ बीमारी से पीड़ित रोगियों, विशेष रूप से बच्चों को इलाज से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।"

न्यायालय ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सुविधाओं का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है। सामान्य रूप से यह समाज की और विशेष रूप से अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि ऐसे बच्चों के जीवन से समझौता नहीं हो.....।

अदालत ने फैसले में आगे दुर्लभ बीमारियों के लिए मसौदा स्वास्थ्य नीति का विश्लेषण किया, जिसमें यह पाया गया कि ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) को दुर्लभ बीमारियों में से एक माना जाता है, जिसमें उपचार की उच्च लागत शामिल है। न्यायालय ने न‌ीति के समूह 3 का भी विश्लेषण किया, जिसके तहत विशेष रूप से कहा गया है कि डीएमडी के उपचार की लागत बहुत अधिक है.......।

नीति में यह प्रस्तावित किया गया था कि समूह 3 के अंतर्गत आने वाली बीमारियों के लिए उपचार पाने वाले रोगियों और उपचार में सहयोगी संभावित दाताओं को एक साथ जोड़ने के लिए एक डिजिटल मंच बनाया जाना चाहिए। यह भी कहा गया था कि इस प्रकार कि ऑनलाइन प्रणाली के जरिए, "दानदाता रोगियों का विवरण देख सकेंगे और किसी विशेष अस्पताल में धन दान कर सकेंगे। इससे समाज के विभिन्न वर्गों के दानदाता दान कर सकेंगे, जिसका उपयोग उपचार के लिए किया जाएगा.. "

न्यायालय ने कहा कि उक्त नीति को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया को अनिश्चित काल तक लंबित नहीं रखा जा सकता है, जैसा कि 2017 की पूर्व नीति के साथ किया गया था, विशेषकर ऐसे मामलों में जहां आम मानव जीवन दांव पर है।

निर्देश

इसलिए, न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया-

-स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा दुर्लभ रोगों के लिए बनी मसौदा स्वास्थ्य नीति को अंतिम रूप देने और अधिसूचना के लिए एक विशिष्ट समयरेखा बनाई जाएगी।

-मंत्रालय याचिकाकर्ताओं के इलाज के लिए संभावित व्यक्तियों, कॉर्पोरेट दाताओं और स्वतंत्र संगठनों के माध्यम से क्राउडफंडिंग विकल्प की तलाश करेगा।

-मंत्रालय दवा निर्माता अमेरिकी कंपनी से संपर्क करेगा..

-मंत्रालय अगले 10 दिनों के भीतर एक प्रस्ताव लेकर आएगा।

मामले की अगली की सुनवाई 28 जनवरी 2021 को होगी।

केस टाइटिल: मास्टर अर्नेश शॉ बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्‍य, केशव शर्मा बनाम भारत संघ और अन्‍य

निर्णय तारीख: 12.01.2021

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