केवल इसलिए अग्रिम जमानत देना अनिवार्य नहीं, क्योंकि कार्यवाही के प्रारंभिक चरण में अंतरिम सुरक्षा प्रदान की गई: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2022-08-30 04:54 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि उसके द्वारा दिए गए अंतरिम लाभ से उन आरोपों को कम नहीं किया जा सकता है, जिन पर योग्यता के आधार पर विचार करने की आवश्यकता है।

जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कहा कि अदालत को आरोपों की प्रकृति, सहायक साक्ष्य, गवाहों के साथ छेड़छाड़ की उचित आशंका या शिकायतकर्ताओं को धमकी की आशंका और आरोप के समर्थन में प्रथम दृष्टया संतुष्टि पर विचार करने की आवश्यकता है।

कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 406, 420 और 120बी के तहत दर्ज मामले में भारती साहनी को अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की। उक्त एफआईआर हरप्रीत सिंह द्वारा दर्ज की गई थी। इस एफआईआर में 22 अन्य व्यक्ति बाद में शिकायतकर्ताओं के रूप में शामिल हो गए। शिकायकर्ताओं ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने उन्हें किटी कमेटी में निवेश करने के लिए प्रेरित किया।

आगे यह आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता ने अपने पति और उसके दो बेटों के साथ समिति के विभिन्न सदस्यों से किश्तें एकत्र कीं, लेकिन बाद में भुगतान करने में चूक की। उच्च रिटर्न के आश्वासन के साथ प्रेरित करने के बाद याचिकाकर्ता द्वारा लगभग 2 करोड़ रुपये एकत्र करने का आरोप लगाया गया।

याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता महिला है और जांच अधिकारी द्वारा मामले की जांच ठीक से नहीं की गई, क्योंकि याचिकाकर्ता द्वारा भुगतान की जाने वाली राशि में विसंगति है और उसी के लिए आवश्यक सुलह की आवश्यकता है।

दूसरी ओर, पीड़ित पक्ष ने यह तर्क देते हुए जमानत याचिका का विरोध किया कि कई पीड़ित याचिकाकर्ता द्वारा अपनी गाढ़ी कमाई के साथ संगठित तरीके से ठगे गए हैं।

अदालत ने पाया कि पीड़ितों को याचिकाकर्ता द्वारा किटी कमेटी में उच्च रिटर्न के आश्वासन के साथ अपनी मेहनत की कमाई का निवेश करने के लिए प्रेरित किया गया। हालांकि, सुनिश्चित राशि को जानबूझकर और संगठित तरीके से "उचित तैयारी और संचालन के साथ" वापस नहीं किया गया था।"

कोर्ट ने कहा,

"याचिकाकर्ता की ओर से धोखा देने का मकसद स्पष्ट है, क्योंकि उक्त उच्च रिटर्न प्रबंधनीय नहीं हैं और 2 करोड़ रुपये की राशि के दुरुपयोग के लिए कोई स्पष्टीकरण सामने नहीं आया। केवल तथ्य यह है कि याचिकाकर्ता 15-20 साल से शिकायतकर्ताओं को जानता था। उसे पहले कई मौकों पर कुछ रिटर्न दिया, वह याचिकाकर्ता को उसके आचरण से मुक्त नहीं करता है।"

कोर्ट ने यह भी जोड़ा,

"शायद, यह गलत संदेश भेज सकता है कि यदि अग्रिम जमानत इस आधार पर दी जाती है कि इस न्यायालय ने प्रारंभिक चरणों में तब अंतरिम संरक्षण दिया गया, जब आवेदक योग्यता के आधार पर अग्रिम जमानत के लिए अयोग्य है। इस न्यायालय द्वारा दिए गए अंतरिम लाभ से किसी भी तरह से उन आरोपों को कम नहीं किया जा सकता, जिन पर गुण-दोष के आधार पर विचार करने की आवश्यकता है।"

अदालत ने यह भी कहा कि केवल यह तथ्य कि याचिकाकर्ता को ट्रायल कोर्ट में 25 लाख रुपये की राशि जमा करने पर अंतरिम संरक्षण दिया गया, इस अनुमान के लिए नहीं दिया गया कि अग्रिम जमानत की पुष्टि की जानी है, क्योंकि राशि जमा करने से याचिकाकर्ता को जांच में शामिल होने और निपटान की संभावना का पता लगाने में सक्षम है।

कोर्ट ने कहा,

"समाज अपने लोगों से जवाबदेही की अपेक्षा करता है और कोई भी घोटाला जो समाज के सदस्यों की बड़ी संख्या को प्रभावित करता है, उसे अस्वीकृत और कानूनी परिणामों का पालन करने की आवश्यकता है। ऐसे मामले जिनमें आम जनता को धोखा दिया जाता है और मीठी बातों में उलझाकर उनके इस्तेमाल किया जाता है तो ऐसे मामले में गंभीर दृष्टिकोण की मांग करता है। मामला अभी जांच के चरण में है और याचिकाकर्ता की हिरासत में पूछताछ से पूरे घोटाले का खुलासा करने के लिए अभियोजन पक्ष से प्रार्थना की गई है।"

आरोपों की गंभीरता और गवाहों को धमकी देने की शिकायत को देखते हुए अदालत ने याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत देने का कोई आधार नहीं पाया।

केस टाइटल: भारती साहनी बनाम राज्य (दिल्ली राज्य सरकार)

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