"केवल न्यायालयों का निर्माण पर्याप्त नहीं": इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने न्यायिक अवसंरचना पर दिए निर्देशों का उत्तर प्रदेश सरकार को पालन करने के लिए कहा
इलाहाबाद हाईकोर्ट की सात जजों की खंडपीठ ने न्यायालयों के बुनियादी ढांचे और अन्य सुविधाओं की उपलब्धता पर 2019 में जारी स्वयं के निर्देशों के अनुपालन में राज्य सरकार की ओर से की गई कार्रवाई पर असंतोष व्यक्त किया है।
पिछले हफ्ते मामले की फिर से सुनवाई हुई तो कोर्ट ने कहा, "मामले को लगभग दो साल बाद सूचीबद्ध किया गया है। न्यायालय उम्मीद कर रहा था कि 10 मई, 2019 को दिए गए सभी निर्देशों का पालन किया जाएगा और समय-समय पर उसकी रिपोर्ट भी जमा की जाएगी। हालांकि निर्देशों के अनुसार, राज्य सरकार समय-समय पर रिपोर्ट देने में विफल रही है। ऐसा नहीं है कि सरकार ने कार्रवाई नहीं की, लेकिन वे संतोषप्रद नहीं हैं, बल्कि बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।"
कोर्ट ने अतिरिक्त महाधिवक्ता मनीष गोयल को लिस्टिंग की अगली तारीख से से पहले एक हलफनामा दायर करने को कहा, जिसमें सहायक स्टाफ, बुनियादी ढांचे और अन्य सुविधाओं की गैरमौजूदगी पर सभी मुद्दों को शामिल किया जाए। साथ ही नवीनतम स्थिति और अनुपालन की समय सारिणी शामिल की जाए।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मुनीश्वर नाथ भंडारी के नेतृत्व में एक पीठ 2015 में दर्ज एक याचिका पर स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रही थी ।
मामले में 10 मई, 2019 को एक विस्तृत आदेश पारित किया गया था, जिसमें सुरक्षा प्रणालियों की स्थापना, विभिन्न न्यायाधिकरणों और अधीनस्थ न्यायालयों के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की स्थापना, तकनीकी स्टाफ और अन्य सुविधाएं प्रदान करने के निर्देश जारी किए गए थे।
मई, 2019 में पारित आदेश में कहा गया था, "सभी न्यायालयों को आवश्यक बुनियादी ढांचा और सभी सहायक सुविधाओं के साथ आवश्यक भवन की आवश्यकता है। प्रतिवादी जल्द से जल्द न्यायिक अधिकारियों के लिए कोर्ट रूम्स, चैंबर्स, सहायक सुविधाओं और निवास की उपलब्धता का एक ब्लू प्रिंट तैयार करेंगे और हाईकोर्ट की संबंधित समिति के समक्ष प्रस्तुत करेंगे। उम्मीद है कि इस प्रकार ब्लू प्रिंट 30 जून, 2019 को या उससे पहले समिति के समक्ष दायर किया जाएगा "।
तब राज्य सरकार को निर्देशों का जवाब देने और समय-समय पर प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था। हालांकि इस मामले को 12 जुलाई, 2019 को फिर से उठाया जाना था, लेकिन बेंच के गठन के अभाव में ऐसा नहीं हो सका।
खंडपीठ ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने उन सभी मुद्दों, जिन पर कार्रवाई की जानी थी, के संदर्भ में एक स्थिति रिपोर्ट तैयार की थी, जिसे राज्य सरकार द्वारा निर्देशों के अनुपालन की सारिणी के साथ तैयार किया जाना चाहिए था।
कोर्ट ने आगे कहा, "विलंब से बचने के लिए, हाईकोर्ट ने न केवल मुद्दे बल्कि नवीनतम स्थिति पर बयान की एक प्रति भी दी है। इससे राज्य सरकार को निर्देशों के अनुपालन के लिए तत्काल कार्रवाई में सुविधा होगी। न्यायिक कामकाज के व्यापक हित में यह आवश्यक है"।
आगे यह पाया गया कि कुछ न्यायालयों/न्यायाधिकरणों का निर्माण किया गया था, लेकिन कर्मचारियों, आवास या इसके सुचारू संचालन के लिए बुनियादी ढांचा प्रदान नहीं किया गया था।
"केवल न्यायालयों और ट्रिब्यूनलों का निर्माण इस उद्देश्य के लिए पर्याप्त नहीं होगा, जब तक कि उचित बुनियादी ढांचे और कर्मचारियों के साथ आवास प्रदान नहीं किया जाता है। हाईकोर्ट द्वारा तैयार किया गया बयान, हाईकोर्ट के साथ-साथ अधीनस्थ न्यायालयों के सुचारू कामकाज के लिए, न्यायालयों के सुरक्षा उपायों और सहायक कर्मचारियों के पदों के निर्माण की तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता को दर्शाता है।"
पीठ ने कहा, न्यायालयों और न्यायाधिकरणों की संख्या में वृद्धि को देखते हुए पद के सृजन की तत्काल आवश्यकता थी। उन्होंने कहा कि सहायक स्टाफ, बुनियादी ढांचे और अन्य सुविधाओं के अभाव में अधीनस्थ न्यायालयों का न्यायिक कार्य प्रभावित हुआ है।
न्यायालय के लिए आवश्यक आवास और न्यायिक अधिकारियों के लिए आवास उपलब्ध नहीं कराया गया है। इन टिप्पणियों के साथ, राज्य सरकार को जल्द से जल्द निर्देशों का पालन करने के लिए कहा गया है। मामले को एक सितंबर 2021 को 10.00 बजे सूचीबद्ध किया गया है।
अगली तारीख पर संबंधित अधिकारियों को भी उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया है ताकि मुद्दों को ठोस रूप दिया जा सके। एएजी को संबंधित अधिकारियों को रिकॉर्ड के साथ उनकी उपस्थिति के लिए आदेश देने का निर्देश दिया गया है।