पत्नी और दो बेटियों के लिए मात्र 4 हजार रुपये महीने का अंतरिम भरण-पोषण पर्याप्त नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट

Update: 2023-09-14 05:00 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि मजिस्ट्रेट द्वारा पत्नी और उसकी दो बेटियों के पक्ष में दिया गया 4,000 रुपये प्रति माह का अंतरिम गुजारा भत्ता उनके भरण-पोषण के लिए पर्याप्त नहीं होगा।

जस्टिस शंपा (दत्त) पॉल की एकल पीठ ने सीआरपीसी की धारा 127 के तहत अंतरिम गुजारा भत्ता बढ़ाने की पत्नी/याचिकाकर्ताओं की प्रार्थना को उनके आवेदन के लंबित होने के कारण 'समय से पहले' खारिज करने के मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग को लेकर दायर पुनर्विचार आवेदन पर सुनवाई की।

मजिस्ट्रेट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए बेंच ने ट्रायल कोर्ट को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन को तीन महीने की अवधि के भीतर निपटाने का निर्देश दिया।

कोर्ट ने कहा,

3 व्यक्तियों के लिए अंतरिम भरण-पोषण के रूप में इतनी कम राशि देना और शेष राशि पति के लिए छोड़ना किसी भी तरह से तर्कसंगत नहीं है। बेशक मामले के अंतिम निपटान के समय मजिस्ट्रेट द्वारा सभी कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिए, लेकिन तीन व्यक्तियों के लिए 4000/- उचित नहीं है। लेकिन इस पुनर्विचार आवेदन में चुनौती के तहत आदेश वह है, जहां मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की धारा 127 के तहत समय से पहले दायर करने के आधार पर प्रार्थना खारिज कर दी थी। जैसा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मामला है। अभी भी अंतिम निस्तारण लंबित है। इस प्रकार पुनर्विचार के तहत आदेश में इस न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, लेकिन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए ट्रायल कोर्ट को मामले के निपटान के लिए सभी प्रयास करने होंगे। रजनेश बनाम नेहा एवं अन्य (2021) 2 एससीसी 32 मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए तीन महीने के भातर मामले का निपटराया किया जाए।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि मजिस्ट्रेट ने अंतरिम भरण-पोषण के लिए आदेश दिया था, जिसमें पत्नी को 2,000 रुपये और बेटियों को 1,000 रुपये यानी तीनों लोगों के परिवार को 4,000 रुपये दिए गए।

यह तर्क दिया गया कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दिए गए भरण-पोषण में वृद्धि के लिए सीआरपीसी की धारा 127 के तहत दायर याचिकाकर्ता के आवेदन को मजिस्ट्रेट ने इस आधार पर खारिज कर दिया। कहा गया कि आवेदन "समय से पहले" था, क्योंकि भरण-पोषण का आदेश अंतरिम है और सीआरपीसी की धारा 125 का मामला है, जिसका अभी तक निस्तारण नहीं किया गया।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि दोनों पक्षकारों को सुनने के बाद दिया गया अंतरिम भरण-पोषण बेहद कम है और याचिकाकर्ता के लिए इतनी कम राशि में अपना और अपनी दो बेटियों का भरण-पोषण करना मुमकिन नहीं है।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वह गृहिणी है और 2013 में उसके पति से उसकी शादी हुई थी। इसके बाद उसकी पहली बेटी के जन्म पर याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसके पति, उसकी बहन और उनकी घरेलू सहायिका उसे लड़की को जन्म देने के कारण शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। इसके बाद 2017 में दूसरे बार भी बेटी ही पैदा होने के कारण उसे अपना वैवाहिक घर छोड़ना पड़ा।

इसके बाद याचिकाकर्ता ने न्यायक्षेत्र मजिस्ट्रेट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर किया। केस नंबर 192/2018।

यह तर्क दिया गया कि पति सरकारी कर्मचारी है और कृषि विभाग में राइटर्स बिल्डिंग, कोलकाता में अपर डिवीजन असिस्टेंट है। उसकी वास्तविक आय 34,000 रुपये है। उसने ट्रायल कोर्ट के समक्ष गलत तरीके से प्रस्तुत किया कि वह 20,414 रुपये कमा रहा है। जिसे कोर्ट ने अंतरिम भरण-पोषण का आदेश देते हुए स्वीकार कर लिया।

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि भरण-पोषण का उद्देश्य आवारागर्दी और गरीबी को रोकना है। यह परित्यक्त पत्नी को भोजन, कपड़े और आश्रय की आपूर्ति के लिए त्वरित उपाय मुहैय्या करता है। यह किसी व्यक्ति के अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण के मौलिक अधिकारों और प्राकृतिक कर्तव्यों को प्रभावी बनाता है, जब वे अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ होते हैं।

इसलिए यह तर्क दिया गया कि ट्रायल जज ने गलती से सीआरपीसी की धारा 127 के तहत मासिक गुजारा भत्ता बढ़ाने के आवेदन को समय से पहले खारिज कर दिया गया।

पति/प्रतिवादी पक्षकार नंबर 1 के वकील ने तर्क दिया कि पुनर्विचार के तहत आदेश कानून की दृष्टि से अच्छा है। इस प्रकार पुनर्विचार आवेदन खारिज कर दिया जाना चाहिए।

यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता का पति वास्तव में वेतन के रूप में 34,000 रुपये कमा रहा है, जिसका सबूत याचिकाकर्ता मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने में असमर्थ रहा, अदालत ने कहा कि अंतरिम भरण-पोषण के रूप में दी गई इतनी कम राशि "तार्किक नहीं है।"

हालांकि, पुनर्विचार के तहत आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए न्यायालय ने मजिस्ट्रेट को रजनेश बनाम नेहा (2020) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तर्ज पर तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन का निपटान करने का निर्देश दिया।

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