मानसिक क्रूरताः कोर्ट ने यह मानते हुए कि पति ने पत्नी को केवल 'विदेशी पत्नी' माना, अस्थायी साथी के रूप में इस्तेमाल किया, विवाह को समाप्त किया
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को एक विवाह को क्रूरता के आधार पर समाप्त कर दिया। कोर्ट ने पाया कि पति ने पत्नी को केवल 'विदेशी पत्नी' माना, उसे एक अस्थायी साथी के रूप में इस्तेमाल किया। और उनके वैवाहिक बंधन में सुधार की गुंजाइश नहीं थी।
जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा कि ऐसे वैवाहिक बंधन को जारी रखना पत्नी को अत्यधिक मानसिक क्रूरता देगा। मर चुके विवाह को जिंदा रखने का कोई कारण नहीं है।
कोर्ट ने कहा,
"विवाह की संस्था का उद्देश्य दो आत्माओं को एक साथ लाना है, जो जीवन नामक साहसिक यात्रा पर निकलते हैं। वे अनुभव, मुस्कान, दुख, उपलब्धियों और संघर्षों को साझा करते हैं। वे अपने भावनात्मक, मानसिक और भौतिक उपस्थिति के साथ सभी स्थितियों में एक-दूसरे का उत्थान और समर्थन करते हैं। जीवन की इस यात्रा पर वे व्यक्तिगत, सामाजिक और आध्यात्मिक बंधनों का निर्माण करते हैं, चिरस्थायी स्मृतियां, भविष्य की योजनाएं संजोते हैं, जिसके जरिए वे समाज में एक दूसरे के साथ रहते हैं।"
पीठ ने आगे जोड़ा,
"विवाह का एक अनिवार्य पहलू शारीरिक और भावनात्मक रूप से एक-दूसरे के जीवन में मौजूद होना है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि हर विवाह, जहां युगल एक-दूसरे से काम या अन्य दायित्वों के लिए सहमति से अलग रहते हैं, टूटा हुआ है। हालांकि, एक विवाह जहां न तो भावनाओं का आदान-प्रदान होता है, न ही सपनों, खुशियों, दुखों, यादों (खुश या दुख) का साझा होता है, केवल एक कानूनी बंधन है।"
मामला
मौजूदा मामले में पत्नी ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia) के तहत तलाक की मांग के लिए दायर उसकी याचिका को क्रूरता के आधार पर खारिज कर दिया गया था। दंपति ने 2010 में विवाह किया था। पत्नी का मामला था कि शादी के तुरंत बाद प्रतिवादी पति अपनी नौकरी के लिए कनाडा चला गया। वह जब कुछ मौकों पर भारत आया, तब उसका शारीरिक, मानसिक और यौन शोषण किया।
दूसरी ओर पति ने अपने लिखित बयान में आरोपों का खंडन किया। उसने दावा किया कि उसकी शादी खुशहाल थी लेकिन पत्नी ने अपने परिवार के दबाव के कारण उसके साथ रहने से इनकार कर दिया, क्योंकि उसका परिवार उन दोनों के अंतर्जातीय विवाह के खिलाफ था।
न्यायालय के समक्ष विचार के पहलू यह थे कि क्या पार्टियों के बीच लगातार अलगाव की लंबी अवधि के कारण वैवाहिक बंधन सुधार से परे हो गया है, जो क्रूरता के समान है और क्या तलाक की याचिका दायर करने से पहले या बाद में पति का आचरण वैसा है जो कि पत्नी के लिए इस हद तक मानसिक क्रूरता का कारण बने कि उसके साथ रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
कोर्ट ने कहा,
"मौजूदा मामले में, दोनों पक्ष विवाह के बाद से किसी भी महत्वपूर्ण अवधि के लिए एक साथ नहीं रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रतिवादी ने अपीलकर्ता को विदेशी पत्नी माना, केवल उसे एक अस्थायी साथी के रूप में इस्तेमाल किय। और जब-जब वह कई सालों बाद अपनी संक्षिप्त यात्राओं के लिए भारत आया, तब उसे बस अपनी सेवा के लिए रखा।"
कोर्ट ने कहा, "पिछले सात वर्षों में, तलाक की कार्यवाही शुरू होने के बाद दोनों पक्ष एक-दूसरे के साथ बातचीत नहीं की है।"
न्यायालय का विचार था कि अलगाव की अवधि और दोनों पक्षों के अस्थायी बैठकें यह दिखाने के लिए पर्याप्त हैं कि उनका वैवाहिक बंधन टूट गया है और यह सुधार से परे था। न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि पति के आचरण ने पत्नी के साथ अत्यधिक मानसिक क्रूरता की होगी, जो यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त है कि वह उसके साथ संबंध को जारी नहीं रख सकती है।
कोर्ट ने कहा, "पूर्वोक्त के मद्देनजर हम अपील की अनुमति देते हैं। आक्षेपित निर्णय और डिक्री को रद्द करते हैं। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) (ia) में निहित क्रूरता के आधार पर तलाक की डिक्री द्वारा पक्षों के बीच विवाह को समाप्त करते हैं।"
केश शीर्षक: वंदिता सिंह बनाम सतीश कुमार
प्रशस्ति पत्र: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 4