[वैवाहिक विवाद] अगर इसे अनियंत्रित छोड़ दिया गया तो पति के रिश्तेदारों पर झूठे आरोप लगाने से कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा: तेलंगाना हाईकोर्ट
तेलंगाना हाईकोर्ट ने वैवाहिक विवादों में पति के रिश्तेदारों के झूठे फंसाने की प्रवृत्ति पर गंभीरता से विचार करते हुए हाल ही में कहा कि सामान्य और सर्वव्यापी आरोपों के आधार पर वैवाहिक विवादों में पति के रिश्तेदारों पर झूठे आरोप लगाने पर अगर अंकुश नहीं लगाया जाता और उन्हें अनियंत्रित छोड़ दिया जाता है तो इससे कानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग होगा।
जस्टिस ए. संतोष रेड्डी की पीठ ने आरोपी नंबर दो सास, आरोपी नंबर तीन देवर (पति का भाई), और आरोपी नंबर चार भाभी (पति के भाई की पत्नी) के खिलाफ आगे की कार्यवाही को रद्द करने का आदेश दिया, जिसने दहेज के लिए उसे परेशान करने का आरोप लगाया था [दहेज निषेध अधिनियम की धारा 498-ए और धारा 3, 4 के तहत मामला दर्ज]।
बहनोई (आरोपी नंबर तीन) पर आगे उसके साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया गया था, इसलिए उस पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 के तहत भी मामला दर्ज किया गया। आरोप है कि उसने उसके प्रति सहानुभूति प्रकट की थी और उसे जबरन गोद में उठाकर दुलारने की कोशिश की थी। उसने जब इसका विरोध किया और भागने की कोशिश की तो आरोपी नंबर तीन और आरोपी नंबर चार भी वहां आ गए और उन सभी ने उसका मुंह बंद कर दिया और उसे बेरहमी से पीटा।
इस प्रकार, तीनों ने पूरी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का रुख किया।
कोर्ट की टिप्पणियां
एफआईआर, आरोप पत्र और मामले के अन्य रिकॉर्ड पर गौर करते हुए अदालत ने कहा कि पत्नी/शिकायतकर्ता द्वारा अपने पति (आरोपी नंबर एक) के खिलाफ कथित अपराधों के लिए आईपीसी की धारा 498-ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत मुख्य आरोप लगाए गए हैं।
कोर्ट ने आगे कहा कि परिवार के अन्य सदस्य यानी आरोपी नंबर दो और आरोपी नंबर चार, जो आरोपी नंबर एक की मां और भाभी हैं, उन्हें सामान्य और सर्वव्यापी आरोपों के माध्यम से फंसाया गया है। उनके खिलाफ कोई विशिष्ट आरोप नहीं है।
आरोपी नंबर तीन (पति के भाई) के खिलाफ छेड़छाड़ के आरोपों के बारे में अदालत ने कहा कि उसके खिलाफ एकमात्र आरोप यह है कि उसने शिकायतकर्ता के प्रति सहानुभूति व्यक्त की थी और उसका हाथ पकड़ लिया था।
कोर्ट ने कहा,
"उसने 28.02.2007 से पहले हुई कथित घटना का विरोध किया। यदि दूसरे प्रतिवादी के आरोपों में बिल्कुल भी सच्चाई है, जहां तक आरोपी नंबर तीन का संबंध है, वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। अगर उसने 12.06.2007 से कुछ भी किया था तो तब से अब शिकायतकर्ता उससे बदला बिना नहीं रहती, जिस तारीख को दूसरे प्रतिवादी पर याचिकाकर्ता द्वारा छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया गया।"
अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह पाया गया कि आरोप आईपीसी की धारा 354 के तहत अपराध के आवश्यक अवयवों को पूरा नहीं करते हैं।
नतीजतन, यह देखते हुए कि आरोपी नंबर एक यानि आरोपी नंबर दो से आरोपी नंबर चार के रिश्तेदारों को सर्वव्यापी आरोपों के आधार पर और कथित अपराधों में उनकी संलिप्तता के किसी विशिष्ट उदाहरण के बिना रोपित किया गया है, अदालत ने कहा कि आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया गया।
इसलिए, न्यायालय ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इस न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों को लागू करने और याचिकाकर्ताओं/आरोपी नंबर दो से आरोपी नंबर चार के खिलाफ आगे की कार्यवाही को रद्द करने के लिए एक उपयुक्त मामला माना।
केस टाइटल - पी. राजेश्वरी एंड अदर बनाम द स्टेट ऑफ ए.पी. अन्य
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