पत्नी की सहमति के बिना दूसरी महिला से शादी करना आईपीसी की धारा 498-ए के तहत क्रूरता है: बॉम्बे हाईकोर्ट ने दोहराया
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि पति का पहली शादी के अस्तित्व के दौरान और उसकी पत्नी की सहमति के बिना दूसरी महिला से शादी करना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498-ए के तहत क्रूरता है।
अदालत ने कहा,
"अपनी पहली शादी के अस्तित्व के दौरान पति द्वारा दूसरी महिला से शादी करना ऐसी चीज है, जो पहली पत्नी के मानसिक स्वास्थ्य को आघात और गंभीर चोट पहुंचाने की सबसे अधिक संभावना है, जब तक कि यह पहली पत्नी की सहमति से नहीं किया गया हो। यदि अधिनियम पहली शादी के निर्वाह के दौरान दूसरी शादी के प्रदर्शन की व्याख्या आईपीसी की धारा 498-ए के तहत क्रूरता के रूप में नहीं की जाती है, यह महिला को उसके पति या उसके पति के रिश्तेदार द्वारा यातना को रोकने के विधायी इरादे को विफल कर देगा। इसलिए उस व्याख्या को अपनाया जाना चाहिए जो विधान द्वारा प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्य को पूरा करती है।"
जस्टिस सुनील बी शुकरे और जस्टिस के एम डब्ल्यू चंदवानी की खंडपीठ ने व्यक्ति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ उसकी पत्नी के प्रति क्रूरता के लिए एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया।
एफआईआर आईपीसी की धारा 376 (2) (एन), 377, 498-ए, 494, 294, 323, 504 और धारा 506 के तहत अपराधों के लिए दायर की गई है।
आरोपी ने एफआईआर रद्द कराने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
अदालत ने एफआईआर का अवलोकन किया और कहा कि सभी आवेदकों ने प्रथम दृष्टया महिला के साथ गंभीर क्रूरता का व्यवहार किया। जब वह गर्भवती है तब भी उसके पति ने उसके साथ बार-बार शारीरिक संबंध बनाए, जिससे उसका गर्भपात हो गया। कोर्ट ने कहा कि पति ने प्रथम दृष्टया 'वहशी' व्यवहार किया।
अदालत ने यह भी कहा कि प्रथम दृष्टया परिवार के सभी सदस्यों ने पति के अपनी पत्नी के प्रति क्रूर व्यवहार को प्रोत्साहित और उकसाया। कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया पति के सभी रिश्तेदारों यानी सभी आवेदकों ने पत्नी के साथ क्रूर व्यवहार किया।
अदालत ने आगे कहा कि उस व्यक्ति ने अपने रिश्तेदारों की मदद से दूसरी महिला से शादी की। अदालत ने कहा कि यह क्रूरता और प्रथम दृष्टया उसकी दूसरी और साथ ही उसकी पहली पत्नी के विश्वास का उल्लंघन है।
कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया पुरुष ने दूसरी महिला से कहा कि उसकी पत्नी की मौत हो गई। अदालत ने कहा कि उसके माता-पिता, भाई-बहन और चाची ने इस कथन का समर्थन किया।
आवेदकों की ओर से एडवोकेट मंजू एम. घाटोडे ने तर्क दिया कि दूसरी शादी का आरोप अफवाह है, क्योंकि उनकी पत्नी ने इसे किसी और से सुना।
अदालत ने कहा कि यह अब स्वीकार्य साक्ष्य है, क्योंकि दूसरी महिला ने अपने बयान में पुष्टि की है कि आवेदक ने उसे शादी करने के लिए प्रेरित किया।
घटोड़े ने तर्क दिया कि यह दूसरी महिला की जिम्मेदारी है कि वह पुरुष पर भरोसा न करे और पहले उसके चरित्र की पृष्ठभूमि आदि के बारे में पूछताछ करके उसके बारे में जाने।
अदालत ने इस तर्क को 'अजीब' माना और खारिज कर दिया।
अदालत ने देखा,
"भारत में विवाह को संस्कार माना जाता है, जिसमें विवाह के प्रत्येक पक्ष से ईमानदारी से काम करने और एक-दूसरे के प्रति वफादार रहने की अपेक्षा की जाती है। उन्हें एक-दूसरे से किसी भी भौतिक तथ्यों को नहीं छिपाना चाहिए, जो वैवाहिक बंधन पर असर डाल सकता है। यह जब वे अपने आप को स्वच्छ और विश्वासयोग्य तरीके से संचालित करते हैं तभी उनके बीच विश्वास, प्रेम और स्नेह का बंधन बनता है। कोई भी विवाह संस्कार नहीं रह सकता है, यदि विवाह के पक्षकार अपने अतीत के बारे में स्पष्ट नहीं होते हैं और विश्वास नहीं करते हैं।"
अदालत को पुलिस की जांच में कोई कमी या खामी नहीं मिली।
अदालत ने कहा कि आवेदकों द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अदालत की अंतर्निहित शक्ति का आह्वान करने का प्रयास। कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इसलिए कोर्ट ने आवेदकों पर 25000 रुपये का जुर्माना लगाया।
केस नंबर- आपराधिक आवेदन (एपीएल) नंबर 1287/2022
केस टाइटल- अतुल पुत्र राजू डोंगरे व अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।
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