मनीष सिसौदिया और अन्य आरोपियों के कारण ED मामले की सुनवाई में देरी हुई, यह स्पष्ट रूप से प्रगति को धीमा करने का प्रयास : दिल्ली कोर्ट
दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया कि कथित शराब नीति घोटाले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले की कार्यवाही में देरी हो रही है या मामले की कार्यवाही कछुआ गति से चल रही है।
राउज़ एवेन्यू कोर्ट की स्पेशल जज कावेरी बावेजा ने कहा कि तथाकथित देरी स्पष्ट रूप से आप नेता के कारण जिम्मेदार है।
मनी लॉन्ड्रिंग मामले में सिसौदिया को दूसरी बार जमानत देने से इनकार करते हुए अदालत ने ये टिप्पणियां कीं।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल उनकी जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि अगर ट्रायल धीमी गति से आगे बढ़ता है तो वह ट्रायल कोर्ट के समक्ष नई जमानत याचिका दायर कर सकते हैं।
अदालत ने कहा,
“…इस प्रकार यह स्पष्ट है कि आवेदक व्यक्तिगत रूप से, और विभिन्न आरोपियों के साथ एक या दूसरे आवेदन दायर कर रहे हैं/बार-बार मौखिक प्रस्तुतियां दे रहे हैं, उनमें से कुछ तुच्छ हैं, वह भी हिस्सों में , जाहिर तौर पर इसके पीछे एक ठोस प्रयास के रूप में मामले में देरी पैदा करने का साझा उद्देश्य है।"
इसमें कहा गया कि मामले की प्रगति को धीमा करने के "स्पष्ट प्रयास" के बावजूद, मामले की स्थिर प्रगति को, किसी भी मानक से, "कछुए की गति" के बराबर नहीं कहा जा सकता है।
अदालत ने कहा,
“…आवेदक की यह दलील खारिज की जाती है कि कार्यवाही में देरी हुई है या लंबी चली है या मामले की कार्यवाही कछुआ गति से चल रही है। मामले की प्रगति में हुई तथाकथित देरी के लिए भी स्पष्ट रूप से आवेदक जिम्मेदार है।"
इसके अलावा, न्यायाधीश ने कहा कि सिसौदिया की पत्नी लंबे समय से बीमारियों से पीड़ित हैं और उनका इलाज चल रहा है, इसलिए आप नेता को जमानत पर रिहा करने की तत्काल आवश्यकता नहीं है।
अदालत ने कहा,
“इसलिए, उपरोक्त टिप्पणियों के आलोक में और मामले के रिकॉर्ड के आलोक में आवेदक और अभियोजन पक्ष की संबंधित दलीलों पर विचार करने के बाद, यह अदालत आवेदक को नियमित या अंतरिम जमानत देने के लिए इच्छुक नहीं है। विचाराधीन आवेदन तदनुसार खारिज कर दिया गया।"
मंगलवार को, अदालत ने मनी लॉन्ड्रिंग के साथ-साथ शराब नीति से संबंधित भ्रष्टाचार के मामलों में सिसोदिया द्वारा दायर दूसरी नियमित जमानत याचिका खारिज कर दी।
सिसौदिया की ओर से एडवोकेट विवेक जैन ; प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के विशेष वकील ज़ोहेब हुसैन और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अभियोजक पंकज गुप्ता पेश हुए।
ईडी और सीबीआई दोनों मामलों में ट्रायल कोर्ट, दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने सिसोदिया को जमानत देने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत से इनकार के खिलाफ सिसोदिया की पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी थी। उनकी क्यूरेटिव याचिकाएं भी खारिज हो चुकी हैं।
सीबीआई अभियोजक, पंकज गुप्ता ने जमानत याचिका का विरोध किया और कहा कि सिसोदिया पीएमएलए के तहत जमानत देने की कठोरता को पूरा नहीं करते हैं। उन्होंने कहा कि सिसौदिया "राजनीतिक रसूख" वाले एक शक्तिशाली व्यक्ति हैं।
उन्होंने आगे तर्क दिया कि इस मामले में मुख्य आरोपी सिसौदिया समानता के भीहकदार नहीं हैं।
गुप्ता ने कहा कि आप नेता पर लगे आरोपों से पता चलता है कि प्रथम दृष्टया उनके द्वारा सबूतों को नष्ट करने और सत्ता के दुरुपयोग का मामला बनता है, जिससे जांच में बाधा आ सकती है।
मनीष सिसौदिया को पहली बार पिछले साल क्रमश: 26 फरवरी और 9 मार्च को सीबीआई और ईडी ने गिरफ्तार किया था।
सीबीआई द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में, सिसौदिया और अन्य पर 2021-22 की उत्पाद नीति के संबंध में "सक्षम प्राधिकारी की मंज़ूरी के बिना अनुचित लाभ पहुंचाने के इरादे से" लाइसेंसधारी पोस्ट टेंडर की 'सिफारिश' करने और 'निर्णय लेने' में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का आरोप लगाया गया है ।”
केंद्रीय एजेंसी ने यह भी दावा किया कि आप नेता को इसलिए गिरफ्तार किया गया क्योंकि उन्होंने गोल-मोल जवाब दिए और सबूतों के सामने आने के बावजूद जांच में सहयोग करने से इनकार कर दिया।
दूसरी ओर, प्रवर्तन निदेशालय ने आरोप लगाया है कि कुछ निजी कंपनियों को थोक व्यापार में 12 प्रतिशत का लाभ देने की साजिश के तहत उत्पाद शुल्क नीति लागू की गई थी, हालांकि मंत्रियों के समूह (जीओएम) की बैठकों के मिनटों में ऐसी किसी शर्त का उल्लेख नहीं किया गया था।
एजेंसी ने यह भी दावा किया है कि थोक विक्रेताओं को असाधारण लाभ मार्जिन देने के लिए विजय नायर और साउथ ग्रुप के साथ अन्य व्यक्तियों द्वारा एक साजिश रची गई थी। एजेंसी के मुताबिक, नायर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया की ओर से काम कर रहे थे।
दोनों मामलों में सिसौदिया की जमानत अर्जी विशेष न्यायाधीश एमके नागपाल (अब स्थानांतरित) ने पिछले साल 31 मार्च और 28 अप्रैल को खारिज कर दी थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने दोनों मामलों में सिसोदिया को जमानत देने से इनकार कर दिया जिसके बाद उन्होंने इन दोनों फैसलों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पिछले साल 30 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री को जमानत देने से इनकार कर दिया था।