बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, लॉकडाउन हटने के बाद भी जिन इलाकों में काम पर नहीं आ रहे मजदूर, उनकी मजदूरी काट लें मालिक

Update: 2020-05-01 08:48 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने गुरुवार को उन इलाकों में, जहां लॉकडाउन खत्म हो चुका है, नियोक्ताओं को उन मजदूरों की मजदूरी काटने की अनुमति दी, जो काम पर नहीं आ सके।

गृह मंत्रालय द्वारा 29 मार्च को जारी निर्देंश, जिनमें लॉकडाउन की अवधि में कर्मचारियों को पूरी मजदूरी का भुगतान करने को कहा गया था, में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए जस्टिस आर वी घुगे ने स्पष्ट किया:

"यह स्पष्ट किया जाता है कि चूंकि महाराष्ट्र ने आंशिक रूप से राज्य में कुछ औद्योगिक क्षेत्रों में लॉकडाउन खत्म कर दिया है, इसलिए श्रमिकों से अपेक्षा की जाती है कि वो शिफ्ट के अनुसार रिपोर्ट करें। उन्हें नियोक्ता द्वारा कोरोना वायरस के संक्रमण से पर्याप्त सुरक्षा दी जाएगी। यदि कर्मचारी स्वेच्छा से अनुपस्थित रहते हैं तो प्रबंधन को यह आजादी होगी कि वह उनकी मजदूरी में कटौती करे। हालांकि ऐसी कार्रवाई शुरू करते समय कानून में निर्धारित प्रक्रिया का पालन आवश्यक है। यह उन क्षेत्रों पर भी लागू होगा जहां शायद लॉकडाउन नहीं किया गया है।"

जस्टिस आरवी घुगे ने एलाइन कंपोनेंट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जर‌िए एक ही जैसी कई याचिकाओं पर सुनवाई की।

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि प्रबंधन श्रमिकों को काम देने के लिए तैयार है और श्रमिक काम करने के लिए तैयार हैं, हालांकि COVID 19 के कारण निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप, प्रबंधन को निर्माण गतिविधियों को रोकना पड़ा है।

इस पृष्ठभूमि में, याचिकाकर्ताओं ने प्रार्थना की थी कि जब तक कि निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध जारी रहता है, उन्हें मासिक मजदूरी का भुगतान करने से छूट दी जाए। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एडवोकेट टीके प्रभाकरन ने कहा कि याचिकाकर्ता सकल मजदूरी का 50% या न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के तहत निर्धारित मजदूरी की न्यूनतम दरों, जो भी अधिक हो, का भुगतान करने के इच्छुक हैं।

भारत सरकार की ओर से पेश एडवाकेट डीजी नागोडे और राज्य सरकार की ओर से पेश एडवोकेट डीआर काले ने कोर्ट से समय मांगा।

जस्टिस घुगे ने कहा-

"माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 27 अप्रैल 2020 को फिकस पैक्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य मामलों के एक समूह में एक आदेश पारित किया ‌था, जिसमें नियोक्ताओं / प्रबंधन द्वारा ऐसा ही अनुरोध किया गया था।

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था, लेकिन कोई अंतरिम राहत नहीं दी थी। केरल हाईकोर्ट ने केरल सरकार के वित्त विभाग द्वारा 23 अप्रैल 2020 को जारी एक आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें 50% वेतन के भुगतान की अनुमति दी गई है और शेष 50% वेतन का भुगतान स्थगित कर दिया गया है।"

न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट ऐसे ही मामलों से डील कर रहा हैहै, इसलिए यह उक्त अधिसूचना में हस्तक्षेप नहीं करेगा।

जस्टिस घुगे ने कहा,

"मैं उम्मीद करूंगा कि याचिकाकर्ताओं को कर्मचारियों को सकल मासिक वेतन का भुगतान करना होगा।"

कोर्ट ने एडवोकेट प्रभाकरन को मजदूरों के प्रतिनिधियों को भी जोड़ने की स्वतंत्रता दी।

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