वैवाहिक कार्यवाही में पत्नी का पति पर नपुंसकता या स्तंभन दोष का आरोप लगाना क्रूरता: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना है कि वैवाहिक कार्यवाही में पति या पत्नी द्वारा दूसरे के खिलाफ नपुंसकता या स्तंभन दोष का आरोप लगाना क्रूरता होगा।
अपीलकर्ता पति की ओर से त्रिशूर फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ, अपील दायर की गई थी, जिसका प्रतिनिधित्व एडवोकेट एनके सुब्रमण्यम ने किया था। फैमिली कोर्ट ने अपीलकर्ता को विवाह समाप्त करने के डिक्री देने से इनकार कर दिया था। हाईकोर्ट ने अपील को स्वीकार किया और फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।
प्रतिवादी ने लिखित बयान में अपीलकर्ता पर स्तंभन दोष और यौन अक्षमता का आरोप लगाया था, हालांकि उसने अपने बयान और सबूतों के अभाव में उक्त आरोपों का खंडन किया था।
जस्टिस ए. मोहम्मद मुस्ताक और जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने कहा कि "एक लिखित बयान में निराधार आरोप और चरित्र हनन मानसिक क्रूरता का गठन करता है।" इसलिए अपीलकर्ता और प्रतिवादी के बीच विवाह को समाप्त घोषित किया जाता है।
पति या पत्नी में भ्रम विकार तलाक का आधार नहीं
प्रतिवादी ने अपने बयानों में स्वीकार किया कि उसने कभी-कभार भ्रम का अनुभव किया था, जिसके लिए वह दवा ले रही थी। हालांकि, यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं था कि वह मानसिक अस्वस्थता से पीड़ित थी।
फिर भी, अपीलकर्ता ने आग्रह किया कि इस महत्वपूर्ण सूचना को छुपाना तलाक का आधान बनता है।
तलाक अधिनियम की धारा 19 पर टिप्पणी करते हुए, कोर्ट ने कहा, "इस धारा को एक ऐसे प्रावधान के रूप में नहीं माना जा सकता है, जो विवाह के लिए पति या पत्नी पर बोझ डालता है, एक के बारे में पूरी जानकारी दूसरे को प्रकट करने का बोझ डालता है। इस प्रावधान को सूचना के छुपाने के कारण उपयोग नहीं किया जा सकता है।"
तथ्यों का खुलासा न करना धोखाधड़ी नहीं
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि सूचना को छिपाना केवल तभी धोखाधड़ी माना जाएगा, जब एक विशेष तथ्य को सत्य के रूप में प्रस्तुत किया गया था, जब दूसरे पक्ष को इसके झूठ के बारे में पता था। जब इस तरह की धोखाधड़ी का सबूत पेश किया जाता है, तो धारा 19 के तहत विवाह को रद्द किया जा सकता है।
हालांकि, इस मामले में आरोप यह नहीं है कि धोखाधड़ी हुई थी, बल्कि एक खास तथ्य का खुलासा नहीं किया गया था. डिवीजन बेंच ने नोट किया कि प्रतिवादी कानूनी रूप से अपीलकर्ता को ऐसी जानकारी प्रदान करने के लिए बाध्य नहीं थी, जिससे उसे धोखाधड़ी के आरोप से मुक्त कर दिया गया।
उपरोक्त कारण से, कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप करना अनावश्यक समझा, जिसमें धोखाधड़ी के आधार पर अपीलकर्ता को विवाह को अमान्य करने या विवाह के विघटन से इनकार किया गया था।
द्वेषपूर्ण इरादा क्रूरता के लिए आवश्यक नहीं
अपीलकर्ता ने मूल याचिका में आरोप लगाया था कि प्रतिवादी ने उसके साथ क्रूरता की थी। उसने तर्क दिया कि प्रतिवादी ने एक साथ रहते हुए अनुचित रूप से असामान्य व्यवहार किया था, जिसमें वैवाहिक घर में अन्य सदस्यों के साथ अस्वच्छ, सुस्त और शत्रुतापूर्ण व्यवहार शामिल था।
हालांकि, वह अपनी मौखिक गवाही के अलावा इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई सबूत पेश करने में विफल रहा। ऐसे मामलो में सबूत का बोझ अपीलकर्ता पर पड़ता है, ऐसे विवादों में स्वतंत्र गवाह उपलब्ध नहीं हो सकते हैं, क्योंकि वे वैवाहिक घर की चार दीवारों के भीतर होते हैं।
न्यायपालिका का यह कर्तव्य है कि वह संभावनाओं की प्रधानता के आधार पर निर्णय करे। इसलिए, न्यायालय ने अपीलकर्ता की एकमात्र गवाही पर कार्रवाई करना व्यावहारिक पाया, यदि वह आश्वस्त और विश्वसनीय पाई गई हो।
हालांकि प्रतिवादी का आचरण इरादतन नहीं हो सकता है, क्रूरता के लिए द्वेषपूर्ण इरादा आवश्यक नहीं है। इस तरह का आचरण, भले ही वह मामूली मानसिक बीमारियों से पैदा हुआ हो, क्षमा नहीं किया जा सकता है। इसलिए, यह देखा गया कि अपीलकर्ता का विवाह को रद्द करने की अपील को इनकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि प्रतिवादी ने जानबूझकर दुर्व्यवहार नहीं किया गया था।
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