[मेक इन इंडिया? ] बोली लगाने वाले भारतीयों के साथ भेदभाव के आरोप: दिल्ली हाईकोर्ट ने पीएमओ से कहा, यदि बोली लगाने वाले प्रतिनिधित्व दाखिल करें तो PM के संज्ञान में लाएं

Update: 2021-02-08 05:44 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक भारतीय मशीन उपकरण कंपनी को निर्देश देते हुए कहा कि वह सीएनसी मशीनों और उपकरणों की आपूर्ति के लिए केंद्र सरकार द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी निविदा (Tender) प्रक्रिया में बोली लगाने वाले भारतीयों के साथ कथित भेदभाव के संबंध में प्रधानमंत्री के कार्यालय (PMO) का रुख करें।

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता द्वारा कोर्ट में देरी से याचिका डालने के कारण के पास निविदा (Tender) प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

हालांकि, यह नोट किया गया कि यह निविदा प्रक्रिया एक अन्य मामले में उच्च न्यायालय द्वारा अनियमित पाई गई थी और इसलिए उच्चतम अधिकारियों से संपर्क करने के लिए याचिकाकर्ता को स्वतंत्रता प्रदान करना उचित होगा।

आदेश में कहा गया कि,

"हम याचिकाकर्ता को भारत के प्रधानमंत्री के समक्ष मामला ले जाने की अनुमति भी देते हैं, जिसमें बोली लगाने वालों के गलत मूल्यांकन और भेदभाव से संबंधित पहलुओं पर प्रकाश डाला जाए।

यदि ऐसा कोई प्रतिनिधित्व किया जाता है, तो हम पीएमओ से अनुरोध करते हैं कि यह सुनिश्चित करें कि भारत के प्रधानमंत्री द्वारा इस पर संज्ञान लिया जाएगा।

हम याचिकाकर्ता को इस स्वतंत्रता को इस तथ्य के आधार पर देने के लिए इच्छुक हैं कि याचिकाकर्ता एक भारतीय निर्माता है और हमने इससे पहले मैकपावर सीएनसी मशीन लिमिटेड (Macpower CNC Machines Limited) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (सुप्रीम कोर्ट) में याचिकाकर्ता के दावे में योग्यता पाई थी कि बोली लगाने वालों (भारतीय) के साथ भेदभाव किया जा रहा है, भले ही निविदा की शर्तों ने ही तय किया है कि भारतीय निर्माताओं को वरीयता दी जाएगी। "

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता, भारत फ्रिट्ज़ वर्नर लिमिटेड (Bharat Fritz Werner Limited) का मामला यह था कि उसे बिना किसी कारण बताए टेंडर प्रक्रिया से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। यह भी बताया गया था कि अनुक्रियादाता संख्या 2 से अनुबंधित किया गया था, भले ही याचिकाकर्ता की वित्तीय बोली प्रतिसाद संख्या 2 की तुलना में काफी कम थी।

याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को सूचित किया कि मैक पावर सीएनसी मशीन लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, WP 3942/2020 मामले में दिल्ली हाईकोर्ट की एक और डिवीजन बेंच (उसी न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी के नेतृत्व में) से संबंधित अभिलेखों की जांच करने के बाद एक ही निविदा में विभिन्न बोलियों के मूल्यांकन के मामले में विभिन्न दुर्बलताएं पाई गई और कुछ बोलीदाताओं के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया गया है।

यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता भी उसी अवैध प्रक्रिया का शिकार है।

जांच

कोर्ट ने उल्लेख किया कि इस विवाद में योग्यता थी, जैसा कि पहले से ही मैक पावर सीएनसी मशीनों (सुप्रा) में चर्चा की गई है और इस प्रकार, उपयुक्त सिविल कार्यवाही के लिए याचिकाकर्ता को स्वतंत्रता दी गई।

इसने उचित कार्रवाई के लिए याचिकाकर्ता को पीएमओ से संपर्क करने की स्वतंत्रता भी दी। आदेश में कहा गया है कि, "इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि भारत सरकार "मेक इन इंडिया"(AtmaNirbharta) पर जोर दे रही है, याचिकाकर्ता की शिकायतें सही प्रतीत होती हैं और हमारे विचार में उच्चतम स्तर पर गंभीर विचार की आवश्यकता है।"

हालांकि, बेंच ने निविदा प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने या याचिकाकर्ताओं को सिद्धांत के आधार पर याचिकाकर्ता को कोई राहत देने से इनकार कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि,

"जैसा कि यहां देखा गया है, अनुबंध जून 2020 में पहले से ही प्रतिवादी नंबर 2 के साथ किया जा चुका है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि प्रतिवादी नंबर 2 के पक्ष में निविदा के सौंपने के बाद से पर्याप्त समय बीत चुका है, हम इसमें हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। हम इसलिए याचिकाकर्ता के दावे या प्रतिवादी के बचाव में नहीं गए हैं।

इन परिस्थितियों में, भले ही हम इस स्तर पर प्रतिवादी नंबर 2 के पक्ष में निविदा में हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं हैं, फिर भी हम यह स्पष्ट करते हैं कि याचिकाकर्ता के लिए अपनी सभी दलीलों को पेश करने और राहत का दावा करने के लिए रास्ता खुला होगा। इस स्तर पर उसके लिए उचित सिविल कार्यवाही उपलब्ध है।"

याचिकाकर्ता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता अखिल सिब्बल और अधिवक्ता गौरव जुनेजा, भारत सरकार की ओर से स्थायी वकील हरीश वैद्यनाथन शंकर और प्रतिवादी नंबर 2 की ओर से वकील मोअज्जम खान पेश हुए।

केस का शीर्षक: भारत फ्रिट्ज़ वर्नर लिमिटेड बनाम भारत सरकार और अन्य।

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:





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