पत्नी का भरण-पोषण भत्ता कर्ज नहीं, पति की पेंशन को बकाये के भुगतान के लिए कुर्की से छूट नहींः मद्रास हाईकोर्ट

Update: 2023-02-01 05:15 GMT

Madras High Court

मद्रास हाईकोर्ट ने माना है कि पत्नी को दिया जाने वाला भरण-पोषण भत्ता कर्ज के दायरे में नहीं आएगा और इस प्रकार, पति की पेंशन को भरण-पोषण के बकाये के भुगतान के लिए कुर्की से छूट नहीं दी गई है।

इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि भरण-पोषण एक सामाजिक न्याय है जो अभाव और खानाबदोशी को रोकता है, जस्टिस वी शिवगणनम ने कहा,

‘‘एक संकटग्रस्त महिला के वैध दावे को निर्ममतापूर्वक और कानूनन इनकार नहीं किया जाना चाहिए। सामाजिक न्याय की अंतरात्मा, हमारे संविधान की आधारशिला की रक्षा की जाएगी। इसलिए, मेरा मानना है कि पत्नी को दिए गए भरण-पोषण भत्ते को ऋण के रूप में नहीं माना जा सकता है और वह एक लेनदार नहीं है। इस प्रकार, पेंशन अधिनियम 1871 की धारा 11 के साथ-साथ सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 60(1)(जी) के तहत प्रदान की गई छूट पति को नहीं दी जा सकती है।’’

अदालत ने न्यायिक मजिस्ट्रेट ताम्बरम के आदेश को चुनौती देने वाली पत्नी की तरफ से दायर एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को अनुमति दे दी है,जिसमें मजिस्ट्रेट कोर्ट ने भरण-पोषण की बकाया राशि और भविष्य के भरण-पोषण के लिए पेंशन की कुर्की की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था। मजिस्ट्रेट ने कहा था कि सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 60 (1) (जी) के तहत इस संबंध में रोक है।

पत्नी ने 1990 में भरण-पोषण के लिए एक याचिका दायर की थी,जिसके बाद उसे भरण-पोषण के तौर पर 500 रुपये देने का आदेश दिया गया था। यह राशि बाद में 2013 में बढ़ाकर 4000 रुपये कर दी गई। प्रतिवादी-पति, जो भारतीय सेना में नाई के रूप में काम कर रहा था, भरण-पोषण का भुगतान करने में विफल रहा और 1,19,000 रुपये की राशि बकाया हो गई। चूंकि पति सेवा से सेवानिवृत्त हो चुका था, इसलिए पत्नी ने उसका पेंशन खाता कुर्क करने के लिए याचिका दायर की थी।

याचिकाकर्ता ने भागवत बनाम राधिका के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा करते हुए तर्क दिया कि भरण-पोषण भत्ते को कर्ज के रूप में नहीं माना जा सकता है और इस प्रकार सीपीसी की धारा 60 और पेंशन अधिनियम 1871 की धारा 11 के तहत दी गई छूट लागू नहीं होती है।

प्रतिवादी-पति ने इन दलीलों पर आपत्ति जताई और तर्क दिया कि सीपीसी और पेंशन अधिनियम के तहत छूट भरण-पोषण भत्ते पर भी लागू होती है।

अदालत ने कहा कि भागवत के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि भरण-पोषण भत्ते को ऋण नहीं माना जा सकता है और वह लेनदार नहीं है। इस अवलोकन का पालन गुजरात हाईकोर्ट ने भी किया है।

अदालत ने आगे कहा कि यदि पेंशन को भरण-पोषण के लिए कुर्की से मुक्त किया जाता है, तो यह एक्ट के उद्देश्य को विफल कर देगा और तलाकशुदा महिला के हित को प्रभावित करेगा क्योंकि पति के सेवानिवृत्त होने के बाद वह भरण-पोषण का दावा करने में असमर्थ होगी। इस तरह की व्याख्या न केवल महिलाओं की सुरक्षा के लिए सामाजिक न्याय के उपाय को प्रभावित करेगी बल्कि न्याय पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालेगी।

इस प्रकार, अदालत ने आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया और न्यायिक मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया है कि वह प्रतिवादी-पति की पेंशन से कुर्की द्वारा भरण-पोषण की बकाया राशि वसूल करने के लिए उचित कार्रवाई करें।

केस टाइटल- पी अमुथा बनाम गुनासेकरन

साइटेशन- 2023 लाइव लॉ (एमएडी) 36

याचिकाकर्ताओं के वकील-सुश्री एमएस राजेश्वरी

प्रतिवादी के वकील- श्री वी गेब्रियल

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