सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दायर भरण-पोषण याचिका को रेस ज्यूडिकाटा द्वारा कवर किया गया, परिस्थितियों में बदलाव का दावा करने वाला पक्ष सीआरपीसी 127 के तहत आगे बढ़ सकता हैः दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि जब भी कोई पक्ष सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण देने का आदेश दिए जाने के बाद परिस्थितियों में बदलाव का दावा करता है, तो उसके पास उचित सहारा संहिता की धारा 125 के तहत नई याचिका दायर करने के बजाय संहिता की धारा 127 के तहत राहत मांगना होगा।
रेस ज्यूडिकाटा का सिद्धांत (पूर्वन्याय) पर जोर देते हुए, जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि उक्त सिद्धांत को समान मुद्दों के संबंध में मुकदमेबाजी की बहुलता को रोकने के लिए विकसित किया गया है और जो मुकदमे में अंतिमता सुनिश्चित करने वाले एक अंतिम निर्णयित मुद्दे को समाप्त करता है।
''यह न्यायालय नोट करता है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक याचिका को रेस ज्यूडिकाटा का सिद्धांत के तहत इसकी सार्वभौमिक प्रयोज्यता के कारण कवर किया जाएगा, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कार्यवाही अर्ध-आपराधिक प्रकृति की होती है। एक बार मैरिट के आधार पर सक्षम क्षेत्राधिकार के एक न्यायालय द्वारा सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दायर याचिका में अनुकूल रूप से फैसला सुना दिया जाता है तो उसके बाद फिर से एक ऐसी याचिका दायर नहीं की जा सकती है जो समान विवाद से उत्पन्न होती है और जिसमें समान हालात, परिस्थितियां और वहीं आधार हैं,जो सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दायर पहले की याचिका में पहले से तय किए गए मुद्दों के जैसे हैं।''
पीठ ने कहा कि जब भी कोई पक्ष सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण देने का आदेश पारित होने के बाद परिस्थिति में बदलाव का दावा करता है, तो उचित तरीका सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक नई याचिका दायर करना नहीं बल्कि सीआरपीसी की धारा 127 के तहत याचिका दायर करना होगा।
अदालत ने कहा कि यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग न किया जाना सुनिश्चित करता है और एक वादी को बार-बार उन मुद्दों को अदालतों तक पहुंचाने से वंचित करता है, जो कानून की अदालत द्वारा योग्यता के आधार पर निर्णय लेने के बाद पक्षकारों के बीच अंतिम हो चुके हैं।
एक वैवाहिक मामले में प्रिंसीपल जज, फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए पत्नी ने हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर की थी। निचली अदालत ने रेस ज्यूडिकाटा के आधार पर उसके द्वारा दायर भरण-पोषण के आवेदन को खारिज कर दिया था।
जिस आधार पर ट्रायल कोर्ट ने पत्नी के आवेदन को खारिज किया था, वह यह था कि उक्त याचिका दायर करने से पहले, पत्नी ने अपने दो बच्चों के साथ सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक और याचिका दायर की थी,जिसे अनुमति देते हुए कोर्ट ने निर्देश दिया था कि तीनों याचिकाकर्ताओं में से प्रत्येक को 500-500 रुपये प्रतिमाह की राशि भरण-पोषण के तौर पर दी जाए।
हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 का उद्देश्य पति से अलग रहने वाली पत्नी की वित्तीय सहायता सुनिश्चित करना है और इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति को दंडित करना नहीं है, बल्कि उन संबंधों का समर्थन करना है जिनके पास समर्थन का नैतिक अधिकार है।
अदालत ने कहा, ''सीआरपीसी की धारा 125 को लागू करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि पत्नी खुद को बनाए रखने में असमर्थ है और पति ने अपनी पत्नी की उपेक्षा की है या उसकी देखभाल करने से इनकार कर दिया है।''
कोर्ट ने आगे कहा कि सीआरपीसी की धारा 127 के तहत आवेदन करने के लिए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पारित आदेश एक पूर्व शर्त है। एक बार जब धारा 125 के तहत एक आवेदन दायर किया जाता है और भरण-भोषण की राशि देने का आदेश दे दिया जाता है तो परिस्थिति में आए बदलाव के कारण दिए गए भरण-भोषण में परिवर्तन का दावा करने के लिए सीआरपीसी की धारा 127 के तहत एक आवेदन दायर किया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा,''सीआरपीसी की धारा 127 एक अकेला प्रावधान नहीं है क्योंकि इसके लिए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण देने के निर्णय की आवश्यकता होती है। धारा 127 (1) में संदर्भित ''परिस्थितियों में परिवर्तन'' शब्द में न केवल पति या पत्नी की वित्तीय परिस्थितियों में परिवर्तन शामिल है, बल्कि इसमें पति या पत्नी के जीवन में हुए अन्य परिस्थितिजन्य परिवर्तन भी शामिल हो सकते हैं जो पूर्व में भरण-पोषण का आदेश दिए जाने के बाद उत्पन्न हुए हैं।''
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि भरण-पोषण के मूल आदेश में संशोधन करने के लिए आवेदन दाखिल करते समय पक्षों की परिस्थितियों या स्थिति में आए किसी भी परिणामी परिवर्तन पर, संहिता की धारा 127 के तहत एक याचिका दायर की जानी चाहिए।
कोर्ट ने कहा,''अदालत को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि पति या पत्नी की परिस्थितियों में बदलाव आया है, जिसके आधार पर सीआरपीसी की धारा 127 के तहत याचिका का निर्णय निर्धारित होगा।''
अदालत ने इस प्रकार याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि परिस्थितियों में बदलाव के मामले में कोई और राहत मांगने के लिए याचिकाकर्ता पत्नी को सीआरपीसी की धारा 127 का सहारा लेना चाहिए।
केस टाइटल- सुनीता व अन्य बनाम विजय पाल उर्फ मोहम्मद साबिर व अन्य
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