अनुशासित बल के सदस्य का दाढ़ी रखना अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि उच्चतर अधिकारियों के निर्देश/परिपत्र कि पुलिस कर्मियों को दाढ़ी नहीं रखना चाहिए, एक पुलिस अधिकारी का दाढ़ी न कटाना, न केवल गलत व्यवहार है, बल्कि उसकी अधिकारी द्वारा किया गया दुराचार, कुकृत्य और अपराध है।
जस्टिस राजेश सिंह चौहान की खंडपीठ ने कहा कि पुलिस बल को एक अनुशासित बल होना चाहिए और कानून लागू करने वाली एजेंसी होने के नाते, यह आवश्यक है कि ऐसे बल की एक धर्मनिरपेक्ष छवि होनी चाहिए जो राष्ट्रीय एकता के भाव को मजबूत करे।
मामला
कोर्ट उत्तर प्रदेश पुलिस के एक कांस्टेबल की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। कांस्टेबल ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक के 2020 के परिपत्र के खिलाफ याचिका दाखिल किया था, जिसमें एक अनुशासित बल के सदस्य के लिए उचित वर्दी और उचित उपस्थिति के संबंध में कुछ दिशानिर्देश जारी किए गए थे।
कांस्टेबल फरमान को विभागीय जांच में यह पाए जाने के बाद कि अनुशासित बल का सदस्य होने के बावजूद उसने अपनी दाढ़ी नहीं कटाई है, और दाढ़ी कटाने के लिए वरिष्ठ अधिकारी द्वारा विशेष निर्देश जारी किए जाने के बावजूद उसने ऐसा नहीं किया है, उसे निलंबित कर दिया गया था।
उन्होंने अपने निलंबन आदेश और पुलिस उप महानिरीक्षक/वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, अयोध्या (फैजाबाद) के आदेश को भी चुनौती दी, जिसमें मुस्लिम धर्म के सिद्धांतों के अनुसार दाढ़ी बनाए रखने की अनुमति मांगने वाले उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया था।
आदेश
कोर्ट ने कहा कि अनुशासित बल के सदस्यों के लिए उचित भेष-भूषा के संबंध में दिशा-निर्देश जारी करना सक्षम प्राधिकारी के अधिकार क्षेत्र में है। कोर्ट ने कहा, "कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि उचित भेष-भूषा को बनाए रखना अनुशासित बल के सदस्यों की पहली और सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है।"
इस पृष्ठभूमि में कोर्ट ने डीजीपी की ओर से जारी सर्कुलर में कोई खामी या अवैधता नहीं पाई।
इसी प्रकार, कोर्ट ने डीजीपी के सर्कुलर के संदर्भ में कांस्टेबल के आवेदन को खारिज किए जाने के आदेश में कोई दुर्बलता या अवैधता नहीं पाई। (मुस्लिम धर्म के सिद्धांतों के अनुसार दाढ़ी रखने के आवेदन को खारिज किया गया था।)
कांस्टेबल के खिलाफ की जा रही जांच पर अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी तीन महीने की भीतर प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप कानून के अनुसार विभागीय जांच का संचालन और समापन करेगा।
याचिकाकर्ता/कांस्टेबल फरमान के आरोप पत्र/कारण बताओ नोटिस के संबंध में उसकी ओर से दलील दी गई कि वरिष्ठ अधिकारी द्वारा जारी विशिष्ट निर्देश के बावजूद दाढ़ी नहीं काटने का आचरण कदाचार के दायरे में नहीं आता है।
इसलिए, उसके वकील ने तर्क दिया, विभागीय जांच करने के लिए उसके खिलाफ कोई आरोप पत्र जारी नहीं किया जाना चाहिए था।
इस पर न्यायालय ने कहा, "एक अनुशासित बल के सदस्य को विभाग या विभाग के उच्च अधिकारी द्वारा जारी कार्यकारी आदेशों या परिपत्रों या निर्देशों का कड़ाई से पालन करना चाहिए क्योंकि वे कार्यकारी आदेश आदि सेवा की स्थिति के समान ही अच्छे हैं।"
इसके अलावा, कांस्टेबल फरमान के खिलाफ जारी आरोप पत्र में कोई दोष या अवैधता नहीं पाते हुए कोर्ट ने कहा, "इसलिए, इस आशय से अवगत कराने के बावजूद कि पुलिसकर्मी दाढ़ी नहीं रख सकते क्योंकि यह उच्च अधिकारियों द्वारा जारी निर्देश/परिपत्र का उल्लंघन है, थाना खंडासा के प्रभारी एसएचओ द्वारा दाढ़ी नहीं काटाना न केवल गलत व्यवहार है बल्कि दुराचार, कुकृत्य और अपराध है।"
महत्वपूर्ण रूप से, इस बात पर जोर देते हुए कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 25 इस संबंध में पूर्ण अधिकार प्रदान नहीं करता है, न्यायालय ने कहा कि अनुशासित बल के सदस्य के दाढ़ी रखने को भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं किया जा सकता है।
मोहम्मद जुबैर कॉर्पोरल नंबर 781467-जी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य [(2017) 2 एससीसी 115 में रिपोर्ट किया गया] का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष वादी यह स्थापित नहीं कर सका था कि क्या इस्लाम में कोई विशिष्ट जनादेश है, जो बालों को काटने या चेहरे के बालों को साफ करने पर रोक लगाता है।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कोई ठोस सामग्री नहीं रखी गई ताकि यह विश्वास दिलाया जा सके कि इस्लाम को मानने वाले पुलिसकर्मी उसकी दाढ़ी या बाल नहीं काट सकते।
यह मानते हुए कि आरोप-पत्र में तय आरोप प्रथम दृष्टया, जांच अधिकारी के विशिष्ट निष्कर्षों के अधीन कदाचार का गठन करते हैं, न्यायालय ने रिट याचिका को खारिज कर दिया।
केस टाइटिल-PNO 052150337 मोहम्मद फरमान प्रतिवादी- प्रिंसिपल सेक्रेटरी होम के माध्यम से उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य।
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