मैनपुरी में लड़की की मौत का मामला में स्कूल के प्रिंसिपल गिरफ्तार: इलाहाबाद हाईकोर्ट में यूपी सरकार बताया
इलाहाबाद हाईकोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले सप्ताह बताया कि उसने उस स्कूल के प्रधानाध्यापक को हिरासत में ले लिया है, जहां मैनपुरी की एक 16 वर्षीय लड़की वर्ष 2019 में फांसी पर लटकी पाई गई थी।
मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ मैनपुरी की एक 16 वर्षीय लड़की की मौत के संबंध में दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) याचिका पर सुनवाई कर रही है। उक्त लड़की उसके स्कूल में वर्ष 2019 में लटकी हुई पाई गई थी।
मामले की सुनवाई के दौरान कई मौकों पर कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा मामले की जांच करने के तरीके पर अपनी नाराजगी व्यक्त की थी।
16 दिसंबर, 2021 को कोर्ट में बताया गया था कि दो मौकों पर यानी 6 दिसंबर, 2021 और 14 दिसंबर, 2021 को मृतक की मां कोर्ट गई थी। हालांकि, सीआरपीसी की धारा 164 के तहत उसका बयान दर्ज नहीं किया जा सका, क्योंकि 6 दिसंबर 2021 को न्यायिक अधिकारी छुट्टी पर थे, जबकि 14 दिसंबर, 2021 को शोक के कारण कोर्ट में कोई काम नहीं हुआ था।
हालांकि, यह प्रस्तुत किया जाता है कि वह सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपना बयान दर्ज कराने के लिए किसी भी तारीख को अदालत में पेश हो सकती है।
इसे देखते हुए कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
"मृतक की मां को सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपना बयान दर्ज कराने के लिए 22 दिसंबर, 2021 को मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश होने दें।"
इसके साथ ही मामले को अब 11 जनवरी, 2022 तक के लिए स्थगित कर दिया गया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला मैनपुरी की एक 16 वर्षीय लड़की का है। वह लड़की अपने स्कूल में फांसी पर लटकी मिली थी। हालांकि पुलिस ने शुरू में दावा किया था कि यह आत्महत्या का मामला है। दूसरी ओर 16 वर्षीय लड़की की मां ने आरोप लगाया था कि उसे परेशान किया गया, पीटा गया और उसके बाद उसे फांसी पर लटका दिया गया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इससे पहले 16 सितंबर को इसी मामले की सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा था कि क्या उसने जांच अधिकारियों को सीआरपीसी की धारा 173 का पालन करने का निर्देश जारी किया है, जिसमें यौन संबंधों की जांच पूरी करने को कहा गया है।
कोर्ट ने हाल ही में जांच अधिकारी की खिंचाई की थी, जब वह मामले में आरोपी से पूछताछ में देरी की व्याख्या नहीं कर सके थे। कोर्ट टिप्पणी करते हुए कहा कि आरोपी के खिलाफ गंभीर आरोपों के बावजूद यह अंतराल हुआ है। इस पर कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक, यूपी को तलब किया था।
अदालत ने तब डीजीपी और एसआईटी टीम के सदस्यों से जांच में पुलिस अधिकारियों की निष्क्रियता के बारे में बताने को कहा था।
इसके अलावा, पुलिस महानिदेशक के कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने पर उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा गया था कि बलात्कार के मामलों में जांच दो महीने के भीतर पूरी हो जाए।
केस का शीर्षक - महेंद्र प्रताप सिंह बनाम यू.पी. राज्य सचिव (गृह) और दो अन्य के माध्यम से
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