मद्रास हाईकोर्ट ने COVID-19 इलाज के लिए प्राइवेट अस्पतालों की दरों पर नियंत्रण का सुझाव दिया

Update: 2021-05-25 05:11 GMT

मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु राज्य में प्राइवेट अस्पतालों द्वारा वसूले जाने वाली इलाज की दरों को निश्चित करने का सुझाव दिया।

मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति सेंथिलकुमार राममूर्ति की पीठ ने तमिलनाडु राज्य के सभी प्राइवेट नर्सिंग होम, पॉलीक्लिनिक्स और अस्पतालों में मुफ्त COVID-19 इलाज की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार को यह प्रस्ताव दिया।

अदालत ने प्राइवेट अस्पतालों द्वारा अत्यधिक बिल वसूल किए जाने की मीडिया में बहुत-सी रिपोर्ट्स का उल्लेख करते हुए राज्य सरकार को इस मुद्दे की जांच करने का निर्देश दिया। इस निर्देश को जारी करते हुए, कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि प्रदान की गई सेवाओं के आधार पर लगाए गए दरों पर नियंत्रण लगाई जा सकती है, ताकि एक व्यक्ति बर्बाद न हो "सिर्फ इसलिए कि वह अपना जीवन बचा रहा है ..."

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,

"मीडिया में ऐसी खबरें हैं कि निजी अस्पतालों द्वारा अत्यधिक शुल्क लिया जा रहा है। मामले के इस पहलू को राज्य द्वारा देखा जाना चाहिए और प्रदान की जाने वाली सेवाओं की सीमा के आधार पर किसी प्रकार की नियंत्रण लगाया जाना चाहिए, ताकि एक सामान्य नागरिक असमर्थ न हो सके। किसी को भी सरकारी चिकित्सा सुविधा में बेड प्राप्त करने के लिए केवल प्राइवेट अस्पताल में एडमिट होकर अपने जीवन को बचाने की कोशिश में आर्थिक रूप से बर्बाद नहीं किया जाता है।"

पिछली सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश बनर्जी ने मौखिक रूप से टिप्पणी की थी कि अत्यधिक दरों का मुद्दा, "बड़ी चिंता का विषय है।" उस अवसर पर न्यायालय ने ध्यान आकर्षित किया था कि कैसे विभिन्न राज्यों ने चाहे सीधे या किसी अन्य निकाय के माध्यम से उपचार दरों को नियंत्रित किया है।

मंगलवार को जब इस मामले की सुनवाई हुई तो महाधिवक्ता आर षणमुगसुंदरम ने मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ को बताया कि सरकारी अस्पतालों में मुख्यमंत्री व्यापक स्वास्थ्य बीमा योजना राज्यव्यापी बीमा योजना लागू है। राज्य के रुख पर प्रतिक्रिया देते हुए कोर्ट ने पूछा कि क्या हर कोई इस योजना का लाभ उठाने का हकदार होगा, चाहे वे फुटपाथ पर रहने वाले हों या रिक्शा चालक...

अपने आदेश में न्यायालय ने स्वास्थ्य सचिव के एक हलफनामे का भी संदर्भ दिया और रिकॉर्ड किया कि राज्य के हलफनामे से संकेत मिलता है कि 1.58 करोड़ परिवार मुख्यमंत्री व्यापक स्वास्थ्य बीमा योजना द्वारा लाभ ले रहे हैं। इनमें वे लोग शामिल हैं, जिनकी वार्षिक आय 72,000/ प्रतिवर्ष रुपये से कम है। सरकारी कर्मचारियों और सेवानिवृत्त स्वास्थ्य कर्मचारियों को समूह स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत कवर किया गया है।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याचिका में उन लोगों का उल्लेख नहीं है, जो राज्य की बीमा योजना के दायरे में है, बल्कि उन लोगों का है, जो किसी भी योजना के दायरे में नहीं है और हर मुमकिन प्रयास के बावजूद सरकारी अस्पतालों में बेड हासिल नहीं कर पा रहे हैं।

इसलिए, मुख्य न्यायाधीश ने सुझाव दिया कि सीमाएं निर्धारित की जाएं, ताकि जिन लोगों को प्राइवेट अस्पतालों में सुविधाओं का उपयोग करना पड़ रहा है, वे इलाज के खर्च से आर्थिक रूप से बर्बाद न हों।

मद्रास हाईकोर्ट ने पहले भी प्राइवेट स्वास्थ्य संस्थानों में दी जाने वाली COVID-19 दवा की दरों के बारे में चिंता व्यक्त की है। COVID-19 से संबंधित याचिकाओं की पिछली सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ ने अधिक शुल्क लेने पर चिंता व्यक्त की थी और राज्य को 'कीमतों पर जांच' लगाने का निर्देश दिया था, क्योंकि 'बड़े पैमाने पर बिल' बनाना नागरिकों के सामने आने वाली कठिनाइयों में से एक है।

अदालत ने कहा था,

"जबकि दवा सीधे प्राइवेट अस्पतालों तक पहुंचती है, तो कीमतों पर जांच होनी चाहिए, क्योंकि आम नागरिकों के सामने आने वाली कठिनाइयों में से एक प्राइवेट स्वास्थ्य संस्थानों द्वारा बनाए जाने वाले भारी-भरकम बिल हैं।"

पिछले हफ्ते, केरल हाईकोर्ट ने COVID-19 उपचार के लिए प्राइवेट अस्पतालों में शुल्क को सीमित करने के लिए एक सरकारी आदेश जारी करने के लिए केरल सरकार की सराहना की थी।

मामला: डीआई नाथन बनाम मुख्य सचिव

परामर्शदाता: महाधिवक्ता आर. शुनमुगसुंदरम, राज्य के लिए विशेष सरकारी वकील ए. श्रीजयंती।

ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




Tags:    

Similar News