मद्रास हाईकोर्ट ने पिछड़ा वर्ग के लिए 9वें राष्ट्रीय आयोग के गठन की याचिका पर केंद्र का जवाब मांगा
एडवोकेट्स फोरम फॉर सोशल जस्टिस के अध्यक्ष के बालू ने 9वें राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) के गठन और आयोग में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों को नियुक्त करने की मांग करते हुए मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) का रुख किया। याचिका में एनसीबीसी की राज्य/क्षेत्रीय इकाइयां स्थापित करने की भी मांग की गई।
चीफ जस्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी और जस्टिस एन माला की पीठ ने बुधवार को जब मामले की सुनवाई हुई तो मामले को छह सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया। इसके साथ ही पीठ ने केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय, नियुक्ति मंत्रालय और नियुक्ति समिति को अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
हालांकि याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि छह सप्ताह लंबा समय है। चार सप्ताह का समय दिया जा सकता है।
चीफ जस्टिस ने कहा कि छह सप्ताह का समय जानबूझकर दिया जा रहा है ताकि उचित कार्रवाई की जा सके।
उन्होंने कहा,
"हम सहमत हैं कि आपकी याचिका में योग्यता है। आमतौर पर ऐसे मामलों में जहां नियुक्तियां नहीं की गई हैं, हम लंबे समय तक स्थगन दे रहे हैं ताकि इस दौरान नियुक्तियां की जा सकें।"
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि भले ही आयोग की स्थापना वर्ष 1993 में हुई थी, लेकिन उस समय यह कानूनी इकाई थी और इसकी संवैधानिक वैधता नहीं थी। भारत सरकार ने 102वें संशोधन के माध्यम से 14 अगस्त, 2018 को एनसीबीसी को संवैधानिक दर्जा दिया और आयोग का गठन करना अनिवार्य कर दिया।
हालांकि 28 फरवरी, 2019 को भारत के राष्ट्रपति द्वारा गठित आयोग का तीन साल का कार्यकाल अधिसूचना के माध्यम से 28 फरवरी, 2022 को समाप्त हो गया। तब से कोई एनसीबीसी का गठन नहीं किया गया। इससे ओबीसी समुदाय से संबंधित अनसुने मुद्दों का संचय हुआ है।
चूंकि संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत आयोग द्वारा पिछड़े वर्गों की स्थिति का फैसला किया जाना है, इसलिए यह जरूरी है कि पिछड़े वर्गों की स्थितियों की जांच के लिए सभी पदों को भरकर आयोग का गठन किया जाए।
उन्होंने तर्क दिया कि इतनी लंबी अवधि के लिए संवैधानिक निकाय में पदों को खाली रखना देश के कानून को खतरे में डालने और सामाजिक न्याय की गर्दन काटने की अनुमति देने की तरह है।
उन्होंने आगे कहा कि एनसीबीसी की क्षेत्रीय/राज्य इकाइयों के गठन से वर्तमान व्यवहार से निपटने में मदद मिलेगी। हालांकि इस संबंध में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को अभ्यावेदन दिया गया, वह लंबित है।
इससे पहले पीएमके के संस्थापक एस. रामदास ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर नौवें आयोग का जल्द से जल्द गठन करने का आग्रह किया था।
केस टाइटल: के बालू बनाम भारत सरकार और अन्य
केस नंबर: डब्ल्यूपी नंबर 21723/2022