भवन नियम आवासीय भवन को प्रार्थना स्थल में बदलने की अनुमति नहीं देते हैं: मद्रास हाईकोर्ट ने निवास को प्रार्थना स्थल में बदलने की मांग वाली याचिका खारिज की

Update: 2022-08-19 06:34 GMT

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि तमिलनाडु जिला नगर पालिका भवन नियम, 1972 के नियम 6(4) में सार्वजनिक पूजा या धार्मिक उद्देश्यों के लिए भवन के निर्माण से पहले जिला कलेक्टर से पूर्व अनुमति अनिवार्य है। अदालत ने इस प्रकार अपने आवासीय स्थान को प्रार्थना स्थल में बदलने की मांग को लेकर दायर याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि इसके लिए अधिकारियों से आवश्यक अनुमति नहीं ली गई।

जस्टिस आर विजयकुमार ने कहा कि इमारत रिहायशी इलाके में है और रिहायशी इलाके में इतनी बड़ी संख्या में लोगों के इकट्ठा होने से इलाके के निवासियों को परेशानी होगी।

मामला याचिकाकर्ता द्वारा अपने आवासीय घर को प्रार्थना स्थल में बदलने का प्रयास कर रहा है। हलफनामे से यह भी पता चलता है कि इमारत रिहायशी इलाके में है। उक्त रिहायशी क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोगों के एकत्रित होने से मोहल्ले के निवासियों को परेशानी होगी।

यह भी देखा गया कि तमिलनाडु जिला नगर पालिका भवन नियम, 1972 के नियम 6 (4) में कहा गया कि सार्वजनिक पूजा या धार्मिक उद्देश्यों के लिए भवन के निर्माण से पहले जिला कलेक्टर से अनुमति लेनी होगी। चूंकि वर्तमान मामले में पहले निर्मित भवन के आवासीय भवन के रूप में अनुमति ली गई थी। अब यह बिना अनुमति के उक्त भवन को प्रार्थना स्थल में रूपांतरित नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, एक प्रकार के भवन को दूसरे प्रकार के भवन में बदलने से संबंधित अधिनियम में कोई प्रावधान नहीं है।

अदालत ने पुलिस सुपरिटेंडेंट द्वारा अदालत को सूचित करने वाली रिपोर्ट पर भी विचार किया कि क्षेत्र के 80% लोग प्रार्थना स्थल के खिलाफ हैं। साथ ही आवासीय घर को प्रार्थना स्थल में बदलने की अनुमति देने से कानून और व्यवस्था की समस्या होगी।

यह देखते हुए कि जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक दोनों की राय में उक्त रूपांतरण से कानून और व्यवस्था की समस्या होगी, अदालत ने इस प्रकार कहा,

उपरोक्त तथ्यों के आलोक में भवन नियम किसी आवासीय भवन को प्रार्थना स्थल में बदलने की अनुमति नहीं देते। पहले प्रतिवादी ने इलाके की संवेदनशील प्रकृति और 80% स्थानीय लोगों की इच्छाओं पर विचार करने के बाद याचिकाकर्ता के अनुरोध को अस्वीकार करने के लिए राय बनाई है। यह न्यायालय आक्षेपित आदेश में कोई दुर्बलता या अवैधता नहीं पाता है।

वहीं जिला कलेक्टर द्वारा अनुमति देने से इनकार करने के आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वह वर्ष 1996 से चर्च की गतिविधियों का संचालन कर रहा है। वहीं लगभग इलाके के 93 आम लोगों ने इमारत को परिवर्तित में कोई आपत्ति नहीं जताई है।

उसने आगे कहा कि तहसीलदार और राजस्व मंडल अधिकारी दोनों ने जिला कलेक्टर को भवन के रूपांतरण के लिए सिफारिश की है। हालांकि, जिला कलेक्टर ने पुलिस सुपरिटेंडेंट की रिपोर्ट के आधार पर उक्त अनुरोध को खारिज कर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि जहां तक ​​कन्याकुमारी जिले का संबंध है, दो धार्मिक स्थलों के बीच की दूरी के संबंध में कोई प्रतिबंध नहीं है।

उसने तर्क दिया कि इलाके में दो अन्य चर्च और एक हिंदू मंदिर है। अब जब ऐसे अन्य धार्मिक स्थल पहले से मौजूद है तो कलेक्टर को याचिकाकर्ता के अनुरोध को अस्वीकार नहीं करना चाहिए।

दूसरी ओर, एडिशनल एडवोकेट जनरल ने प्रस्तुत किया कि वर्ष 1982 में कन्याकुमारी जिले के मंडाईकाडु में हुई सांप्रदायिक झड़पों के बाद सरकार ने हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश तिरु.पी.वेणुगोपाल की अध्यक्षता में एक सदस्यीय समिति का गठन किया था। इस समिति ने सिफारिश की कि किसी भी चर्च या मंदिर को पास में आने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। समिति ने आगे सिफारिश की कि किसी भी चर्च या मंदिर की स्थापना के लिए पूर्व अनुमति प्राप्त की जानी चाहिए। उपरोक्त सिफारिशों को जीओएम नंबर 916 लोक (कानून और व्यवस्था) विभाग दिनांक 29.04.1986 के माध्यम से शामिल किया गया।

एएजी ने आगे कहा कि स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार हमेशा सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है। वर्तमान मामले में पुलिस सुपरिटेंडेंट की रिपोर्ट पर विचार करने और गहन जांच करने के बाद ही अस्वीकृति का आदेश दिया गया। इस प्रकार, कलेक्टर ने सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील जिले में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग किया।

अदालत ने इस प्रकार कलेक्टर के आदेश में कोई दोष नहीं पाया। कोर्ट ने रिट याचिका में कोई योग्यता न पाते उसे खारिज कर दिया।

केस टाइटल: पादरी वी. मारिया अरोकिअम बनाम जिला कलेक्टर और अन्य

केस नंबर: डब्ल्यू.पी.(एमडी) नंबर 11780/2012

साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (मैड) 356

याचिकाकर्ताओं के वकील: के.समीदुरै

प्रतिवादियों के लिए वकील: एडिशनल एडवोकेट जनरल एस शनमुगवेल

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