आवारा कुत्ते को मारने वाले की गोली से महिला की हुई थी मौत, मद्रास हाईकोर्ट ने 10 लाख रुपये मुआवजे का आदेश दिया
मद्रास हाईकोर्ट ने आवारा कुत्तों को गोली मारने की कवायद में दुर्घटनावश करी एक महिला के बेटे को मुआवजा देने का आदेश दिया है। कुत्तों को मारने की कवायद इराइयुर पंचायत के आदेश से दी गई थी। जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम की बेंच ने पेरम्बलुर जिला कलेक्टर और एरैयूर पंचायत प्रेसिडेंट सहित पदाधिकारियों को याचिकाकर्ता के बेटे को मुआवजे के रूप में पांच-पांच लाख रुपये देने का आदेश दिया है।
अदालत ने आवारा कुत्तों को गोली मारने पर भी अधिकारियों को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि यह अपने आप में एक अवैध कार्य है।
कोर्ट ने कहा,
"यह एक असामान्य घटना है, जहां जिम्मेदार पंचायत अध्यक्ष और पार्षदों ने गांव से आवारा कुत्तों को गोली मारने के लिए 8 वें प्रतिवादी को जिम्मेदारी दी थी। यह ऑपरेशन ही अवैध है। याचिकाकर्ता की मां के शरीरी से निकली गोली यह पुष्टि करती है कि मौत गोली लगने से हुई है। इन परिस्थितियों में, यह अदालत मुआवजे के लिए याचिकाकर्ता के मामले पर विचार करने की इच्छुक है ..."
अदालत ने कहा कि प्रतिवादी अधिकारियों ने इस मामले में असंवेदनशीलता बरती। अधिकारियों की उनकी निष्क्रियता निंदनीय है।
याचिकाकर्ता ने पंचायत अधिकारियों के 'लापरवाह, सुस्त और गैर-जिम्मेदाराना कृत्य' के कारण क्षतिपूर्ति के लिए 2016 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिन्होंने सड़कों पर भटक रहे आवारा कुत्तों को मारने के लिए 'नारीकुरवर' समुदाय के एक शूटर को लगाया था। 2015 में, जब याचिकाकर्ता की मां अपने घर के बाहर घरेलू काम कर रही थी तो शूटर ने कथित तौर पर महिला के पैर में 'बिना किसी उद्देश्य या बिना किसी चिंता के' गोली मार दी।
उसे अस्पताल ले जाया गया। याचिकाकर्ता का आरोप है कि वहां घाव का इलाज किया गया था। कुछ दिनों बाद, उसकी मां को सांस लेने में तकलीफ हुई और उसकी मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार, मौत देशी बंदूक से चली जहरीली गोली के कारण हुई, जिसे आमतौर पर 'नारीकुरवर' इस्तेमाल करते हैं।
मामले को सीआरपीसी की धारा 174 से बदलकर आईपीसी की धारा 304(ii) सहपठित धारा 25(1)(ए) भारतीय शस्त्र अधिनियम में कर दिया गया है।
हथियार को जब्त कर बैलिस्टिक जांच के लिए भेज दिया गया। आरोपियों को हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत मिल गई। याचिकाकर्ता के अनुसार, आपराधिक मामले में कोई प्रगति नहीं हुई और हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका दायर की गई।
जांच अधिकारी द्वारा दायर की गई स्थिति रिपोर्ट और खंड विकास अधिकारी द्वारा दायर जवाबी हलफनामे को देखते हुए, अदालत ने कहा कि आपराधिक मामला तेजी से आगे बढ़ना चाहिए।
अदालत ने कहा कि मुआवजे की राशि को मृतक मां के कानूनी वारिसों के बीच समान रूप से बांटी जानी चाहिए। देय मुआवजे का निपटान प्रतिवादी अधिकारियों द्वारा आठ सप्ताह में किया जाना चाहिए। इस संबंध में याचिकाकर्ता को आदेश की प्रति प्राप्त होने की तिथि से चार सप्ताह की अवधि के भीतर प्रथम प्रतिवादी जिला कलेक्टर को कानूनी उत्तराधिकारी प्रमाण पत्र और कानूनी उत्तराधिकारियों का विवरण प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया गया था।
केस शीर्षक: जी बाबू बनाम जिला कलेक्टर और अन्य
मामला संख्या: WPNo.14420 of 2016
सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (Mad) 16