मद्रास हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के न्यायाधीश के खिलाफ अवमानना याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता पर 50 हजार का जुर्माना लगाया
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही उस याचिकाकर्ता के खिलाफ 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया, जिसने फैमिली कोर्ट के पीठासीन न्यायाधीश के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की मांग की। याचिकाकर्ता ने यह मांग यह दावा करते हुए कि फैमिली कोर्ट ने समय-सीमा के भीतर उसकी तलाक याचिका का निपटान करने के लिए हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया।
जस्टिस जीके इलानथिरैयन ने याचिकाकर्ता को दो सप्ताह की अवधि के भीतर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के राहत कोष में राशि जमा करने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने कहा,
यह अवमानना याचिका जुर्माना सहित खारिज की जाती है। तदनुसार, याचिकाकर्ता को आज से दो सप्ताह की अवधि के भीतर मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस राहत कोष में जमा करने के लिए 50,000/- रुपये (केवल पचास हजार रुपये) की राशि जमा करने का निर्देश दिया जाता है। नतीजतन, जुड़ा हुआ उप-आवेदन का निपटान किया जाता है।
मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता ने क्रूरता के आधार पर 2013 में तलाक के लिए अर्जी दी। चूंकि मामला कई वर्षों से लंबित था, इसलिए उसने तलाक याचिका के शीघ्र निस्तारण के लिए हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की। 11 जनवरी, 2017 के आदेश द्वारा हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय को 31 मार्च, 2017 को या उससे पहले याचिका का निपटान करने का निर्देश दिया। इस प्रकार याचिकाकर्ता ने प्रतिवादियों को हाईकोर्ट के दिनांक 11.01.2017 के आदेश की अवमानना के लिए दंडित करने के लिए वर्तमान याचिका दायर की।
अदालत ने कहा कि भले ही हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट को 11.01.2017 तक तलाक की याचिका का निपटान करने का निर्देश दिया। इसके तुरंत बाद याचिकाकर्ता ने अंतरिम मासिक भरण-पोषण के आदेश के खिलाफ अपील दायर की।
अदालत ने कहा कि एक तरफ याचिकाकर्ता ने अंतरिम भरण-पोषण के आदेश के खिलाफ अपील दायर की है और दूसरी तरफ फैमिली कोर्ट के पीठासीन अधिकारी के खिलाफ अवमानना के लिए यह याचिका दायर की।
इसके अलावा, चूंकि आदेश 11.01.2017 को पारित किया गया, अगर कोई अवमानना की गई थी तो याचिकाकर्ता को अदालत की अवमानना अधिनियम 1971 की धारा 20 के अनुसार आदेश की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर अवमानना याचिका दायर करनी चाहिए थी। याचिकाकर्ता ने हालांकि अवमानना याचिका जुलाई, 2022 में ही दायर की थी।
अदालत ने इस बात पर भी आश्चर्य जताया कि कैसे रजिस्ट्री ने याचिकाकर्ता को मैकेनिकली नंबर कर दिया, जो कि बनाए रखने योग्य नहीं है और परिसीमा द्वारा वर्जित है।
इसके अतिरिक्त, अदालत ने यह भी कहा कि पहला प्रतिवादी केवल अगस्त, 2021 से अदालत की अध्यक्षता कर रहा है और चूंकि 2017 में विवादित आदेश दिया गया, इसलिए पीठासीन अधिकारी को अवमाननाकर्ता के रूप में शामिल नहीं किया जा सकता।
केस टाइटल: जीपी भास्कर बनाम सुमति व अन्य
साइटेशन: लाइवलॉ (Mad) 505/2022
केस नंबर: कंट.पी.नंबर 2545/2022
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