मद्रास हाईकोर्ट को यह जानकर हैरानी हुई कि सब-इंस्पेक्टर ने अर्नेश कुमार मामले में गिरफ्तारी के दिशा-निर्देश नहीं पढ़े, जिलेवार संवेदीकरण ‌कार्यक्रम चलाने के निर्देश

Update: 2022-12-01 22:55 GMT
God Does Not Recognize Any Community, Temple Shall Not Be A Place For Perpetuating Communal Separation Leading To Discrimination

मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए इस तथ्य पर हैरानी व्यक्त की कि एक पुलिस सब-इंस्पेक्टर ने अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य के फैसले को नहीं पढ़ा है।

उल्लेखनीय है कि अर्नेश कुमार का फैसला गिरफ्तारी पर दिशानिर्देश प्रदान करता है। मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस प्रमुख का यह कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि दिशानिर्देश हर पुलिस अधिकारी हर व्यक्ति तक पहुंचे।

ज‌स्टिस आर सुब्रमण्यम और जस्टिस के कुमारेश बाबू की पीठ वकील की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो लोकोमोटिव विकलांगता से पीड़ित था और राज्य मानवाधिकार आयोग के एक आदेश में मुआवजे में वृद्धि की मांग कर रहा था।

याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि उसकी गिरफ्तारी अनुचित थी और मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन हुआ था।

यह देखते हुए कि राज्य में पुलिस बल को विकलांग व्यक्तियों से जुड़े मामलों को संभालने के लिए उचित रूप से संवेदनशील नहीं बनाया गया है, अदालत ने अतिरिक्त मुख्य सचिव, तमिलनाडु सरकार, गृह विभाग को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों के संबंध में कांस्टेबलों सहित पुलिस अधिकारियों के लिए जिलेवार संवेदीकरण कार्यक्रम आयोजित किए जाएं।

कोर्ट ने कहा,

कार्यक्रमों को इस प्रकार डिजाइन किया जाना चाहिए कि वे अधिनियमन के प्रावधानों और कानून की मंशा पर पर्याप्त प्रकाश डालें। पुलिस अधिकारियों को भी दिशा-निर्देश जारी किए जाने चाहिए कि वे ऐसे शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों को कैसे संभालें।

अदालत ने कहा कि सरकारी डॉक्टरों को भी इसी तरह के दिशा-निर्देश जारी किए जाने चाहिए जो ऐसे विकलांग व्यक्तियों की जांच करते हैं, जिन्हें किसी मामले में चिकित्सा जांच के लिए लाया जाता है।

वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता को एक झूठी शिकायत पर गिरफ्तार किया गया था कि उसने बिल हुक का इस्तेमाल किया और वास्तविक शिकायतकर्ता को जान से मारने की धमकी दी। भारतीय दंड संहिता की धारा 294बी, 323 और 506 (2) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।

अदालत ने पाया कि एफआईआर में आरोप अस्वाभाविक प्रतीत होते हैं। इसने यह भी नोट किया कि हाईकोर्ट ने एक अन्य याचिका में पहले ही एफआईआर को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि कोई सामग्री नहीं बनाई गई थी। इसके अलावा, याचिकाकर्ता मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित था, और उसे 80% विकलांगता थी।

अदालत ने कहा था कि याचिकाकर्ता के लिए एक खाए-पिए पुरुष पर हमला करना मानवीय रूप से असंभव था।

अदालत ने पाया कि गिरफ्तारी के समय याचिकाकर्ता के मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया था। इस प्रकार, यह पाते हुए कि SHRC द्वारा दिया गया एक लाख रुपये का मुआवजा अपर्याप्त था, अदालत ने इसे बढ़ाकर पांच लाख रुपये कर दिया, जिसमें से चार लाख रुपये का भुगतान राज्य ‌को करना होगा।

केस : एल मुरुगानंदम बनाम द स्टेट और अन्य

साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (Mad) 490

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