बार एसोसिएशन के बायकाट काॅल का पालन न करने वाले अधिवक्ता को मद्रास हाईकोर्ट के पुलिस सुरक्षा दी, एसोसिएशन से उसके निलंबन पर रोक लगाई
हड़ताल का आह्वान करने वाली नागरकोइल बार एसोसिएशन को फटकार लगाते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार (18 दिसंबर) को उस वकील को पुलिस सुरक्षा दी है,जिसे एसोसिएशन ने निलंबित कर दिया था क्योंकि उसने एसोसिएशन के बॉयकाट कॉल का पालन नहीं किया था।
न्यायमूर्ति एन किरुबाकरण और न्यायमूर्ति बी पुगलेंधी की खंडपीठ ने उसके निलंबन पर भी अंतरिम रोक लगा दी है और उसे न्यायालय में उपस्थित होने और बार रूम का उपयोग करने की अनुमति भी दी है।
मामला न्यायालय के समक्ष
एक वकील, जी शिवकुमार अपने मुविक्कलों की शिकायत को संबोधित करने के लिए अदालत में गया था। उसने इस अदालत से समक्ष यह भी बताया था कि उसकी एसोसिएशन द्वारा उसे अदालत के साथ-साथ बार रूम में प्रवेश करने रोका जा रहा है।
उन्होंने न्यायालय के समक्ष कहा कि 'नागरकोइल बार एसोसिएशन' (प्रतिवादी नंबर दो) ने किसानों के मुद्दे के संबंध में 08 दिसम्बर 2020 को न्यायालयों के बहिष्कार का आह्वान किया था और सोशल मीडिया के माध्यम से उक्त निर्णय प्रसारित किया गया था।
हालांकि, याचिकाकर्ता ने 08 दिसम्बर 2020 को कोर्ट की कार्यवाही में भाग लिया और न्यायिक मजिस्ट्रेट, नागरकोइल के समक्ष एक मामले में जिरह की। इससे परेशान होकर एसोसिएशन से याचिकाकर्ता को निलंबित कर दिया।
एसोसिएशन ने 14 दिसम्बर 2020 को उसे एक 9 दिसम्बर 2020 की तारीख का कथित कारण बताओ नोटिस जारी किया था।
उसने आरोप लगाया कि इस कारण उसे अब न्यायालयों में प्रवेश करने से रोका जा रहा है और अपने मुविक्कलों के प्रति दायित्व का निर्वहन करने के वैधानिक अधिकार से वंचित किया जा रहा है। इसके अलावा, उसने यह भी कहा कि उसे एसोसिएशन, लाइब्रेरी और वॉश रूम में जाने से भी रोका गया था।
इसलिए, एडवोकेट जी शिवकुमार ने 16 दिसम्बर 2020 को द बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु और पांडिचेरी को एक शिकायत की और नागरकोइल बार एसोसिएशन द्वारा 14 दिसम्बर 2020 को उसे एसोसिएशन से निलंबित करने के फैसले को मद्रास हाईकोर्ट में चुनौती दी।
न्यायालय के अवलोकन
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि,
''कानूनी पेशा एक महान पेशा है, जहाँ अधिवक्ताओं को न केवल अपने मुविक्कलों के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना होता बल्कि समाज के प्रति भी कर्तव्यों का निर्वहन करना होता है। हालांकि,आजकल अक्सर अधिवक्ता हड़तालों में लिप्त रहते हैं और अदालतों के कामकाज में बांधा पहुंचा रहे हैं। यहां तक कि राजनीतिक कारणों से भी कुछ एसोसिएशन बहिष्कार में लिप्त हैं।''
इसके अलावा, अदालत ने टिप्पणी की,
''इससे न केवल वादकारियों के अधिकार प्रभावित हो रहे हैं बल्कि उन अधिवक्ताओं के अधिकार भी प्रभावित हो रहे हैं, जो अधिवक्ता अधिनियम और बार काउंसिल के नियमों के अनुसार अपने वैधानिक कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए तैयार हैं।''
महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने कहा,
''बार के नेता न तो श्रमिक नेता हैं और न ही राजनीतिक नेता,जो हड़ताल का आह्वान करते हैं। वे एक महान पेशे से संबंधित वकील हैं। वे किसी भी परिस्थिति में हड़ताल का सहारा नहीं ले सकते हैं क्योंकि पीड़ित जनता राहत के लिए न्यायालय के पास आती है,चूंकि न्यायालय उनके पास अंतिम उपाय होता है।''
वर्तमान मामले के संबंध में, न्यायालय ने कहा,
''यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी नंबर दो के बहिष्कार के निर्णय का पालन नहीं किया था, जो कि अवैध था और न्यायालयों के कामकाज में भाग लिया है। इसलिए अपने कानूनी कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए याचिकाकर्ता को निशाना बनाते हुए उसे एसोसिएशन से निलंबित कर दिया गया।''
न्यायालय ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने केवल अपने मुविक्कलों के लिए अपना पेशेवर कर्तव्य निभाया था और कोर्ट में पेश होकर न्याय वितरण प्रणाली में भाग लिया था।
अदालत ने कहा, ''इसके लिए याचिकाकर्ता को अनावश्यक कठिनाई में नहीं डाला जा सकता है।''
उन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, जिनके तहत याचिकाकर्ता को एसोसिएशन द्वारा निलंबित कर दिया गया था और न्यायालय में उपस्थित होने से और बार रूम का उपयोग करने से रोका गया था और याचिकाकर्ता से दुर्व्यवहार और मारपीट की संभावना को देखते हुए, न्यायालय ने उसे पुलिस संरक्षण प्रदान किया है।
अंत में, बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु और पुदुचेरी को निर्देश दिया गया है कि वह ''तमिलनाडु एडवोकेट्स वेलफेयर फंड एक्ट, 1987 की धारा 14-ए के तहत हड़ताल का आह्वान करने वाली बार एसोसिएशन के खिलाफ उचित कार्रवाई करें।''
इस मामले को 18 जनवरी 2021 को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
केस का शीर्षक - जी शिवकुमार बनाम द बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु और पांडिचेरी [WP (MD) No.19293 of 2020 and W.M.P.(MD) Nos.16096 and 16100 of 2020]
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