न्यायाधीशों को अवमानना याचिकाओं के जरिये धमकाने का प्रयास अस्वीकार्य: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 'दुस्साहस' के खिलाफ वादियों को चेतावनी दी
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित "हर गलत आदेश" को अवमानना अधिकार के तहत लाने की प्रथा को खारिज करते हुए कहा है कि अवमानना याचिकाओं के जरिये न्यायाधीशों को धमकाने की कोशिश को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
मुख्य न्यायाधीश रवि मलीमथ और जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने एक ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश के खिलाफ 'लापरवाह आरोप' लगाने के लिए चार वादियों की खिंचाई करते हुए कहा:
"...हम इस तरह के रवैये की निंदा करते हैं। हम इस बात की सराहना नहीं करते हैं कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित हर गलत आदेश को अवमानना के दायरे में लाया जाना चाहिए और संबंधित न्यायाधीश के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। हमारे विचार में, अवमानना याचिकाओं के नाम पर न्यायाधीशों को धमकाने की कोशिश को स्वीकार नहीं किया जाएगा।"
कोर्ट ने नौ जुलाई को हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश की "जानबूझकर अवहेलना" करने के लिए एक मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने संबंधी चार लोगों की याचिका खारिज करते हुए एक आदेश में ये टिप्पणियां कीं।
नौ साल से अधिक समय से लंबित एक आपराधिक मामले से निपटते हुए एकल न्यायाधीश ने जुलाई में ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया था, जिसमें निर्णय के लिए निर्धारित तिथि पर सीजेएम ने जमानत योग्य वारंट जारी करके अभियोजन पक्ष के उन शेष गवाहों को गवाही के लिए फिर से बुलाने का निर्देश दिया था, जिनकी गवाही नहीं हुई थी और सुनवाई की नयी तारीख तय की थी।
एकल न्यायाधीश ने ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश को आरोपी व्यक्तियों (याचिकाकर्ताओं) को सुनवाई का अवसर देने के बाद मामले को नए सिरे से तय करने और जल्द से जल्द निपटाने का भी निर्देश दिया था।
आरोपी के खिलाफ भारतीय वन अधिनियम की धारा 26, नियम 22 के साथ पठित म.प्र. पारगमन (वन उपज) नियमावली, 2000 के नियम 5 और मध्य प्रदेश वन उपज (व्यापार विनियमन) अधिनियम के नियम 5 के साथ पठित अधिनियम की धारा 16 के साथ आपराधिक मामला दर्ज है ।
ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश की ओर से जानबूझकर अवज्ञा का आरोप लगाते हुए आरोपी व्यक्तियों ने सीजेएम के खिलाफ अवमानना याचिका के साथ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि भले ही एकल पीठ ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया था, लेकिन न्यायाधीश गवाहों को फिर से गवाही के लिए बुलाने और उनके साक्ष्य रिकॉर्ड करने की दिशा में आगे बढ़ रहे थे।
उन्होंने आगे दलील दी कि निचली अदालत के न्यायाधीश के संज्ञान में लाने के बावजूद, वकील को यह बताया गया कि गवाहों को समन न करने के लिए न्यायाधीश को रोकने का कोई आदेश नहीं था।
अवमानना याचिका खारिज करते हुए खंडपीठ ने कहा कि ट्रायल जज सिंगल बेंच के निर्देशों के अनुसार आगे बढ़ रहा है, क्योंकि सीजेएम को आरोपी को सुनवाई का अवसर प्रदान करने के बाद मामले को नए सिरे से तय करने का आदेश दिया गया था। इसने कहा कि अवसर पहले ही दिया जा चुका है।
आगे कहा गया, "मामलों पर विचार करने पर, हमारा सुविचारित मत है कि इस मामले में कोई अवमानना नहीं है। ट्रायल कोर्ट को गवाहों को न बुलाने या इसी तरह की किसी भी चीज का निर्देश देने वाला कोई विशेष आदेश नहीं है।"
पीठ ने आगे कहा कि भले ही वह कानून के कुछ गलत इस्तेमाल को लेकर याचिकाकर्ताओं के मामले को स्वीकार भी कर ले, तो भी यह अवमानना का मामला नहीं होगा।
कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट की समझ "अवज्ञा से काफी अलग मुद्दा" है।
कोर्ट ने कहा, ''प्रत्येक आदेश जो वरीय कोर्ट द्वारा पारित किया जाता है, निचली अदालत द्वारा पालन किए जाने के लिए बाध्यकारी होता है। यह मान भी लें कि याचिकाकर्ताओं के मामले को कानून के कुछ गलत इस्तेमाल के रूप में स्वीकार भी किया जाता है तो भी यह अवमानना का मामला नहीं है। ट्रायल कोर्ट की समझ अवज्ञा से काफी अलग मुद्दा है। एक व्यक्ति को यह प्रदर्शित करना होगा कि अवज्ञा हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों के प्रति जानबूझकर किया गया है। यदि जारी किये जा रहे निर्देशों में किसी व्याख्या की कोई गुंजाइश है तो यह अवमानना नहीं हो सकती है।"
कोर्ट ने कहा कि चूंकि यह मामला पहली बार उठा है, इसलिए वह सख्त कार्रवाई करने से खुद को रोक रहा है। हालांकि, इसने याचिकाकर्ताओं को इस तरह के दुस्साहस से दूर रहने की चेतावनी दी।
कोर्ट ने कहा,
"मौजूदा मामले में, मुकदमे पर नये सिरे से विचार करने के निर्देश के साथ उसमें दिए गए आदेश को रद्द कर दिया गया था। इसलिए, ट्रायल कोर्ट को मामले पर नये सिरे से विचार करना होगा। यह कैसे अवमानना के बराबर है, हम इसे समझ पाने में असमर्थ हैं। इसलिए, हमारा विचार है कि यह ट्रायल जज के खिलाफ इस तरह के लापरवाह आरोप लगाने में याचिकाकर्ताओं द्वारा किया गया एक विशुद्ध दुस्साहस के अलावा और कुछ नहीं है।"
केस टाइटल: माजिद बेग और अन्य बनाम श्री तेज प्रताप सिंह
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