COVID-19 पॉजिटिव मरीजों का नाम उजागर न करने का मध्य प्रदेश सरकार का आदेश उचित : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2020-05-29 09:57 GMT

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर बेंच ने गुरुवार (28-मई-2020) को COVID-19 पॉजिटिव मरीजों का नाम छिपाए जाने को लेकर दाखिल एक जनहित याचिका में यह टिपण्णी की कि COVID-19 पॉजिटिव मरीजों का नाम उजागर न करने का मध्य प्रदेश सरकार का आदेश (Order) एवं सलाह (Advisory) उचित है।

न्यायमूर्ति संजय यादव एवं न्यायमूर्ति विशाल धगत की पीठ ने यह अवलोकन करते हुए याचिका को जनहित याचिका नहीं मानते हुए, 25,000/- की लागत के साथ खारिज करने की मंशा जाहिर की।

हालाँकि, चूँकि याचिकाकर्ता ने अदालत से याचिका को वापस लेने के लिए प्रार्थना की, इसलिए इस प्रार्थना को अदालत द्वारा अनुमति दे दी गयी। याचिका वापस लिए जाने के कारण, याचिका खारिज हो गई।

याचिका में की गयी मांग

वर्तमान याचिका के माध्यम से याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से, स्वास्थ्य आयुक्त, मध्य प्रदेश सरकार द्वारा जारी किए गए 19-मई-2020 के आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया था।

इस आदेश में स्वास्थ्य आयुक्त, मध्य प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश राज्य के सभी संभागीय आयुक्त, समस्त जिला कलेक्टर एवं समस्त मुख्य चिकित्सा अधिकारी एवं स्वास्थ्य अधिकारी को यह आदेश दिया था कि कोरोना पॉजिटिव मरीजों की जानकारी सार्वजनिक मंच (वेबसाइट इत्यादि) पर उपलब्ध कराना गलत है।

इसके लिए भारत सरकार एवं राज्य शासन द्वारा पूर्व में दिए गए निर्देशों का हवाला भी दिया गया था। इसी आदेश में यह कहा गया था कि आगे से ऐसी कोई भी जानकारी सार्वजानिक मंच पर उपलब्ध न करायी जाए और जो जानकारी पहले से उपलब्ध है उसे तत्काल प्रभाव से सार्वजानिक मंच से हटा लिया जाए।

अदालत का अवलोकन

अदालत द्वारा केंद्र सरकार द्वारा "COVID-19 के साथ जुड़े सामाजिक कलंक को संबोधित करते हुए" (Addressing Social Stigma Associated with COVID-19) जारी एडवाइजरी का अवलोकन किया गया।

केंद्र सरकार द्वारा बीते अप्रैल में जारी इस एडवाइजरी में (महत्वपूर्ण रूप से यह रेखांकित किया गया है कि संक्रामक रोगों (Communicable Disease) के प्रकोप के दौरान, सार्वजनिक स्वास्थ्य की आपात स्थिति के कारण, लोगों और समुदायों के प्रति पूर्वाग्रहों, सामाजिक अलगाव और कलंक के कारण भय और चिंता पैदा हो सकती है। इस तरह के व्यवहार के चलते शत्रुता, अराजकता और अनावश्यक सामाजिक व्यवधान में वृद्धि हो सकती हैं।

एडवाइजरी में मुख्य रूप से कहा गया है कि,

"...यहां तक कि जो लोग COVID-19 से ठीक हो गए हैं, वे भी इस तरह के भेदभाव का सामना करते हैं, इसके अलावा, कुछ समुदायों और क्षेत्रों को पूर्णतयः सोशल मीडिया और अन्य जगहों पर फ़ैल रही झूठी रिपोर्टों के आधार पर लेबल किया जा रहा है। इस तरह के पूर्वाग्रहों का मुकाबला करने और एक ऐसे समुदाय के रूप में उभरने की तत्काल आवश्यकता है, जो स्वास्थ्य साक्षरता के साथ सशक्त हो और इस प्रतिकूलता का सामना, उचित प्रतिक्रिया से करे।"

अदालत ने एडवाइजरी और मध्य प्रदेश शासन के आदेश का अवलोकन करने के पश्च्यात यह कहा कि,

"(केंद्र सरकार की) एडवाइजरी और साथ ही मध्य प्रदेश सरकार द्वारा जारी आदेश, समाज में किसी भी अराजकता को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर सार्वजनिक हित में हैं और साथ ही उस व्यक्ति को सार्वजनिक क्रोध से बचाने के लिए है जिसका COVID-19 परीक्षण परिणाम पॉजिटिव है।"

अदालत ने याचिका के सम्बन्ध में कहा कि,

"हम याचिकाकर्ता द्वारा दायर जनहित याचिका में कोई योग्यता नहीं पाते हैं। इसके विपरीत, याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई राहत जनहित के विपरीत है।"

मद्रास हाईकोर्ट दे चुका है ऐसा ही एक आदेश

गौरतलब है कि इससे पहले मद्रास हाईकोर्ट ने भी अप्रैल महीने में एक मामले में, उस रिट याचिका को खारिज कर दिया जिसमें COVID-19 प्रभावित व्यक्तियों की पहचान को उजागर करने की मांग की गई थी।

अदालत ने उस मामले में यह अवलोकन किया था कि COVID-19 मरीजों की पहचान को उजागर करना, निश्चित रूप से सामाजिक कलंक का नेतृत्व करेगा 

मामले का विवरण:

केस टाइटल: नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच बनाम मध्य प्रदेश राज्य

केस नं: Writ Petition No. 7596/2020 (PIL)

कोरम: न्यायमूर्ति संजय यादव एवं विशाल धगत

उपस्थिति: श्री दिनेश उपाध्याय (याचिकाकर्ता के लिए); श्री ए. राजेश्वर राव (मध्य प्रदेश राज्य के लिए)

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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