लिव-इन रिलेशनशिप सभी के लिए स्वीकार्य नहीं हो सकता,लेकिन शादी के बिना साथ रहना कोई अपराध नहीं : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
एक और महत्वपूर्ण फैसले में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने मंगलवार (18 मई) को कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप सभी के लिए स्वीकार्य नहीं हो सकता, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि ऐसा रिश्ता अवैध है या विवाह का पवित्र रिश्ता बनाए बिना एक साथ रहना कोई अपराध है।
न्यायमूर्ति जयश्री ठाकुर की खंडपीठ ने एक लिव-इन कपल से संबंधित एक मामले में यह टिप्पणी की है। पीठ ने माना कि वह दोनों बालिग हैं और उन्होंने इस तरह का रिश्ता बनाने का फैसला किया है। साथ ही उन्होंने लड़की के परिवार के सदस्यों से अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है।
गौरतलब है कि बेंच ने यह भी कहा कि,
''यह न्याय का उपहास होगा यदि उन व्यक्तियों को सुरक्षा से वंचित किया जाता है जिन्होंने विवाह की पवित्रता के बिना एक साथ रहने का विकल्प चुना है, और ऐसे व्यक्तियों को उन व्यक्तियों की तरफ से गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं जिनके खिलाफ उन्होंने सुरक्षा मांगी है।''
मामले के संक्षिप्त तथ्य
लड़की के माता-पिता ने उस पर अपनी पसंद के लड़के से शादी करने के लिए दबाया बनाया था,जिसके बाद लगभग 22 साल की लड़की (याचिकाकर्ता नंबर 1) ने लगभग 19 साल की उम्र के एक अनिल (याचिकाकर्ता नंबर 2) के साथ रहने का फैसला किया। उन्होंने तय किया था कि जब तक याचिकाकर्ता नंबर 2 की शादी योग्य उम्र यानी 21 वर्ष नहीं हो जाती है,वह एक साथ रहेंगे।
याचिकाकर्ताओं की तरफ से यह भी बताया गया कि उनके रिश्ते को निजी प्रतिवादियों द्वारा कभी भी स्वीकार नहीं किया जाएगा, क्योंकि दोनों अलग-अलग जातियों से संबंधित हैं। इसलिए याचिकाकर्ताओं ने निजी प्रतिवादियों से अपनी सुरक्षा को खतरा बताते हुए एसपी, करनाल से संपर्क किया था और सुरक्षा दिए जाने की मांग की थी,लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया।
यह भी कहा गया कि लड़की के परिजनों को उनका रिश्ता स्वीकार नहीं है,इसलिए अपने जीवन के लिए खतरे को महसूस करते हुए उन्होंने तत्काल आपराधिक रिट याचिका दायर की है।
एएजी हरियाणा ने प्रस्तुत किया कि सुरक्षा चाहने वाला कपल विवाहित नहीं हैं और उनकी अपनी दलीलों के अनुसार लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने प्रस्तुत किया कि समन्वय पीठों ने हाल ही में ऐसे ही मामलों को खारिज कर दिया है, जहां लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले व्यक्तियों द्वारा सुरक्षा मांगी गई थी।
कोर्ट की टिप्पणियां
अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ताओं ने ना तो शादी की अनुमति के लिए या ना ही अपने रिश्ते को मंजूरी देने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है,बल्कि उन्होंने सिर्फ सुरक्षा प्रदान करने करने की सीमित प्रार्थना की है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने पहले भी ऐसे भागे हुए कपल को सुरक्षा की अनुमति दी थी, भले ही वे विवाहित नहीं थे और लिव-इन रिलेशनशिप में थे और ऐसे मामलों में भी जहां विवाह अमान्य था।
इसके अलावा, यह देखते हुए कि भारत के संविधान में निहित आर्टिकल 21 अपने नागरिकों को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है, न्यायालय ने कहा कि,
''एक बार किसी बालिग व्यक्ति ने अगर अपने साथी को चुन लिया है, तो कोई अन्य व्यक्ति चाहे वह परिवार का सदस्य ही हो,इस पर आपत्ति और उनके शांतिपूर्ण अस्तित्व में बाधा उत्पन्न नहीं कर सकता है।''
साथ ही, इस बात पर बल देते हुए कि ऐसे कपल को सुरक्षा प्रदान करना न्यायालय का कर्तव्य है, न्यायालय ने कहा कि यदि सुरक्षा से इनकार किया जाता है, तो अदालतें अपने नागरिकों को भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत निहित उनके जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करने और कानून के शासन को बनाए रखने के अपने कर्तव्य में विफल होंगी।
कोर्ट ने यह भी कहा कि कोई भी ऑनर किलिंग को नहीं भूल सकता है जो भारत के उत्तरी हिस्सों में प्रचलित है, खासकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में।
कोर्ट ने कहा कि,''ऑनर किलिंग अपने परिवार की स्वीकृति के बिना शादी करने वाले और कभी-कभी अपनी जाति या धर्म से बाहर शादी करने वाले लोगों का परिणाम है।''
महत्वपूर्ण रूप से, न्यायालय ने यह भी कहा कि,
''यदि याचिकाकर्ताओं ने यहां कोई अपराध नहीं किया है, तो इस अदालत को यहां कोई ऐसा कारण नहीं दिख रहा कि सुरक्षा प्रदान करने के लिए उनकी प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इसलिए, समन्वय पीठों द्वारा दिए गए निर्णयों के सम्मान के साथ, जिन्होंने लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया है, यह अदालत उस दृष्टिकोण को अपनाने में असमर्थ है।''
इस प्रकार, न्यायालय ने प्रतिवादी नबंर 2 को एक सप्ताह की अवधि के भीतर याचिकाकर्ताओं के प्रतिनिधित्व पर निर्णय लेने और उनके जीवन और स्वतंत्रता के लिए कोई खतरा होने पर उन्हें सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश देते हुए इस मामले में दायर याचिका का निपटारा कर दिया है।
एक संबंधित समाचार में, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने मंगलवार (18 मई) को कहा था कि एक व्यक्ति को शादी या लिव-इन रिलेशनशिप के गैर-औपचारिक दृष्टिकोण के जरिए अपने साथी के साथ रिश्ते बनाने का अधिकार है।
न्यायमूर्ति सुधीर मित्तल की खंडपीठ ने यह टिप्पणी एक लिव-इन-रिलेशनशिप कपल से संबंधित एक मामले में की थी। कोर्ट ने माना था कि वह दोनों बालिग हैं और उन्होंने इस तरह का रिश्ता बनाने का फैसला किया है क्योंकि वे एक-दूसरे के लिए अपनी भावनाओं के बारे में आश्वस्त हैं।
महत्वपूर्ण है कि इससे कुछ दिन पहले ही हाईकोर्ट ने एक लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था और उसके बाद पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का यह महत्वपूर्ण अवलोकन आया था। हाईकोर्ट ने उस लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था,जिन्होंने दलील दी थी कि उनको लड़की के परिजनों से खतरा है। हाईकोर्ट ने कहा था कि ''यदि इस तरह के संरक्षण का दावा करने वालों को इसकी अनुमति दे दी जाएगी, तो इससे समाज का पूरा सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा।''
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल की पीठ ने कहा था,
''याचिकाकर्ता नंबर 1 (लड़की) मुश्किल से 18 साल की है जबकि याचिकाकर्ता नंबर 2 (लड़का) 21 साल का है। वे लिव-इन रिलेशनशिप में एक साथ रहने का दावा कर रहे हैं और अपने जीवन की सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए याचिकाकर्ता नंबर 1 (लड़की) के रिश्तेदारों से संरक्षण दिलाए जाने की मांग कर रहे हैं।''
इसी तरह एक अन्य लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से इनकार करते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह उस लिव-इन कपल की याचिका खारिज कर दी थी,जिन्होंने सुरक्षा दिए जाने की मांग करते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उनका कहना था कि उनके रिश्ते का विरोध किया जा रहा है।
न्यायमूर्ति एचएस मदान ने अपने संक्षिप्त आदेश में कहा था कि इस कपल ने सिर्फ इसलिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है ताकि उनके उस संबंध पर स्वीकृति की मुहर लग सके जो''नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं'' है।
''वास्तव में, याचिकाकर्ता वर्तमान याचिका दायर करने की आड़ में अपने लिव-इन-रिलेशनशिप पर स्वीकृति की मुहर लगाने की मांग कर रहे हैं, जो नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है। इसलिए इस याचिका में कोई सुरक्षा आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।''
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