आवासीय संपत्ति में वकील का चैंबर नहीं है व्यावसायिक स्थान : कलकत्ता हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना है कि कानूनी पेशा एक व्यावसायिक गतिविधि नहीं है और इसलिए एक आवासीय संपत्ति में एक वकील के चैंबर को संपत्ति के व्यावसायिक उपयोग के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति शेखर बी.सराफ ने स्पष्ट किया कि-
''... एक पेशेवर गतिविधि में व्यावसायिक गतिविधि के मुकाबले एक निश्चित मात्रा में कौशल या स्किल शामिल होता है जो कि व्यवसाय के मामले में सर्वोपरि है। इन दोनों को अलग-अलग अवधारणा के रूप में रखा गया है, क्योंकि व्यावसायिक गतिविधि में कोई मुनाफे या लाभ के लिए काम करता है, जबकि इसके विपरीत, पेशे में, एक व्यक्ति अपनी आजीविका के लिए काम करता है।
तदनुसार, पेशेवर गतिविधि और व्यावसायिक चरित्र की गतिविधि के बीच एक बुनियादी अंतर है, और इसलिए, यह स्पष्ट है कि कानूनी पेशा ''वाणिज्यिक (शहरी)''की श्रेणी में नहीं आएगा।''
'कनुभाई शांतिलाल पंड्या व अन्य बनाम वडोदरा नगर निगम' के मामले में शीर्ष अदालत के फैसले पर विश्वास करते हुए उन्होंने कहा कि यह ''कानूनी फर्मों और प्रोपराइटरशिप फर्मों से अलग है, जिनके वाणिज्यिक स्थानों पर कार्यालय होते हैं और जो कि मुकदमेबाजी और गैर-मुकदमेबाजी के काम या मामलों को देखते हैं।''
अदालत के समक्ष इस सवाल को उठाया गया था कि क्या एक वकील, जो अपने घर के परिसर का चैंबर के रूप में उपयोग कर रहा है, वह वाणिज्यिक आधार पर शुल्क देने के लिए जिम्मेदार होगा।
याचिकाकर्ता एक प्रैक्टिसिंग वकील है, जिसने बहु-मंजिला इमारत के भूतल में एक चैंबर स्थापित किया था, जबकि इस इमारत में वह खुद रहता है। उसने सीईएससी लिमिटेड के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, क्योंकि उसने ''घरेलू (शहरी)'' श्रेणी के तहत अपने चैंबर के लिए एक नए बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन किया था, जिसे अस्वीकार कर दिया गया था।
सीईएससी ने तर्क दिया कि इस मामले में उठाया गया सवाल परिसर के वर्गीकरण से संबंधित नहीं है, लेकिन, परिसर में बिजली के उपयोग और उक्त उपयोग के लिए बिजली शुल्क लगाने से संबंधित है।
यह तर्क दिया गया कि एक कार्यालय चलाने वाले वकील की गतिविधि ''गैर-घरेलू''उपयोग की श्रेणी में आती है और इसलिए, उन्होंने ''वाणिज्यिक (शहरी)'' कनेक्शन के आधार पर सेवा शुल्क और सिक्यारेटी डिपाॅजिट का भुगतान कराने के लिए एक उद्धरण या कोटेशन भेजा था।
कोर्ट का निष्कर्ष
न्यायमूर्ति सराफ ने कहा कि जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने ''अध्यक्ष ,एम.पी. बिजली बोर्ड व अन्य बनाम शिव नारायण व अन्य'' के मामले में माना है और सीईएससी द्वारा भी तर्क दिया गया, कि कानूनी पेशा ''गैर-घरेलू''की श्रेणी में आएगा। हालांकि, ''गैर-घरेलू'' की श्रेणी में आने से अपने आप उपयोग ''वाणिज्यिक''नहीं बन जाएगा।
उन्होंने कहा कि,''शब्द ''गैर-घरेलू'' और ''वाणिज्यिक'' प्रतिमोच्य नहीं हैं और इसलिए, इनका इंटरचेंज या अदला-बदला नहीं किया जा सकता है।''
अदालत ने कहा कि ''गैर-घरेलू'' उपयोगकर्ताओं पर शुल्क लगाने का कानून अस्पष्ट था और माना कि इस तरह की स्पष्टता की कमी का उपयोग उपभोक्ता की ''क्षति या नुकसान'' के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
सीईएससी के टैरिफ या शुल्क का वर्गीकरण दो श्रेणियों तक सीमित थाः (ए) घरेलू (शहरी) और (बी) वाणिज्यिक (शहरी)।
न्यायमूर्ति सराफ ने स्पष्ट किया कि ''वाणिज्यिक (शहरी)'' का प्रवेश या प्रविष्टि एक अवशिष्ट प्रविष्टि नहीं है, और इसलिए, जब तक कि कोई उपयोगकर्ता वाणिज्यिक नहीं है, तब तक वाणिज्यिक उपयोगकर्ता के लिए लागू दर को वसूल नहीं किया जा सकता क्योंकि वकील के पेशे को एक गैर-घरेलू उपयोग माना जाता है।''
उन्होंने कहा कि,''मुकदमेबाज या याचिकाकर्ता वकील के चैंबर का उपयोग स्पष्ट रूप से उसकी आजीविका के लिए किया जाता है, और इसलिए,ऐसे याचिकाकर्ता को ''घरेलू (शहरी)'' की श्रेणी में रखने के लिए संदेह का लाभ दिया जाना आवश्यक है।''
इसलिए, न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता द्वारा उसके कानूनी चैंबर के लिए इस्तेमाल किया जा रहा स्थान उसके निवास का एक विस्तार था, जो उसे ''घरेलू (शहरी)'' की श्रेणी में लाता है। इसके अलावा, सीईएससी निर्देश दिया गया था कि वह दो सप्ताह की अवधि के भीतर ''घरेलू (शहरी)'' श्रेणी के तहत याचिकाकर्ता को नया बिजली कनेक्शन दे।
मामले का विवरण-
केस का शीर्षक-अरूप सरकार बनाम सीईएससी लिमिटेड व अन्य।
केस नंबर-डब्ल्यूपी 18367/2019
कोरम- न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ
प्रतिनिधित्व- वकील सुबीर सान्याल, उसोफ अली दीवान, सौम्यजीत दास महापात्रा, कौस्तव बागची और आसिफ दीवान (याचिकाकर्ता के लिए)
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