रिंग रोड के लिए भूमि अधिग्रहण नेशनल हाइवे के रूप में अधिसूचित नहीं, लेकिन एनएच प्रोजेक्ट का हिस्सा एनएचएआई एक्ट के तहत होना चाहिए: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में आदेश दिया कि श्रीनगर रिंग रोड के निर्माण के लिए आवश्यक सभी भूमि को नेशनल हाइवे एक्ट, 1956 के अनुसार अधिग्रहित किया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी फैसला सुनाया कि जिनकी जमीन परियोजना के लिए अधिग्रहित की गई है, उन्हें 20% अतिरिक्त मुआवजे का भुगतान किया जाना चाहिए।
अदालत ने कहा कि श्रीनगर रिंग रोड प्रोजेक्ट नेशनल हाइवे प्रोजेक्ट है और इसे मौजूदा नेशनल हाइवे 1ए के हिस्से के रूप में माना जाना चाहिए। एनएच एक्ट, 1956 की धारा 2 के तहत इसे पूरा होने तक नेशनल हाइवे घोषित करना आवश्यक नहीं है। हालांकि, एनएच एक्ट के तहत अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू करने के लिए एक्ट की धारा 3 ए के संदर्भ में केंद्र सरकार कानून में बाध्य है।
जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस पुनीत गुप्ता की खंडपीठ पंपोर से सोनावरी तक इंडियन नेशनल हाइवे अथॉरिटी (एनएचएआई) द्वारा बनाई जा रही सेमी-रिंग रोड के निर्माण के लिए उन बीस गांवों के भूस्वामियों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनकी जमीन अधिग्रहण के तहत आई है।
याचिकाकर्ताओं ने समय-समय पर यथासंशोधित राज्य भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1990 को भारत के संविधान के अधिकार से बाहर घोषित करने की मांग की। उन्होंने 4 अक्टूबर, 2017 के संचार के संदर्भ में एनएचएआई द्वारा अधिग्रहित उनकी भूमि के बदले उन्हें मुआवजा देने के निर्देश मांगे।
इस मामले से निपटते हुए खंडपीठ ने कहा कि भूमि अधिग्रहण से प्रभावित अधिकांश ग्रामीणों को पहले ही मुआवजा मिल चुका है, अधिग्रहित भूमि पर कब्जा कर लिया गया है और इसका एक बड़ा हिस्सा रिंग रोड के निर्माण के लिए उपयोग किया जा चुका है।
अदालत ने कहा,
"चूंकि इन मामलों में अधिग्रहण पूरा हो चुका है और राज्य भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1990 के तहत पारित अंतिम निर्णय, जो, जैसा कि हमने माना है, कानून के अनुरूप नहीं है। इस तरह इस स्तर पर इसे वापस वहीं ले जाना न कवेल मुश्किल होगा बल्कि अनुचित भी होगा।”
यह देखते हुए कि श्रीनगर रिंग रोड प्रोजेक्ट पूरी तरह से नेशनल हाइवे प्रोजेक्ट है, इसलिए इसे मौजूदा नेशनल हाइवे 1ए के हिस्से के रूप में माना जाना चाहिए, अदालत ने कहा,
"इसे कम से कम पूरा होने तक NH एक्ट, 1956 की धारा 2 के तहत नेशनल हाइवे घोषित करना आवश्यक नहीं है। आवश्यक रूप से और बिना किसी संदेह के श्रीनगर रिंग रोड को कम से कम नेशनल हाइवे NH 1A का हिस्सा बनाने का प्रस्ताव है। इसके बावजूद कि एक्ट की धारा 2 के संदर्भ में घोषणा अभी की जानी बाकी है, एनएच एक्ट, 1956 की धारा 3ए के तहत अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू करने के लिए केंद्र सरकार कानूनी रूप से बाध्य है।"
अदालत ने कहा, श्रीनगर रिंग रोड प्रोजेक्ट भारत सरकार द्वारा बड़े जनहित में परिकल्पित बहुत ही प्रतिष्ठित प्रोजेक्ट है।
खंडपीठ ने कहा,
"हम अधिकारियों को कम से कम नेशनल हाइवे एक्ट, 1956 की धारा 3ए से 3जे के प्रावधानों का पालन करके याचिकाकर्ताओं और अन्य भूमि खोने वालों को देय मुआवजे का पुनर्निर्धारण करने का निर्देश दे सकते हैं और अतिरिक्त मुआवजे का भुगतान कर सकते हैं, यदि कोई हो। हमें यकीन है कि नेशनल हाइवे एक्ट के तहत मुआवजे का निर्धारण, RFCTLARR एक्ट, 2013 की प्रयोज्यता के अभाव में याचिकाकर्ताओं के लिए अधिक लाभकारी नहीं हो सकता है।”
उसी के मद्देनजर, अदालत ने राहत की प्रार्थना को संशोधित किया और अधिकारियों को याचिकाकर्ताओं को देय मुआवजे को 20% तक बढ़ाने का निर्देश दिया।
अदालत ने संबंधित कलेक्टरों को संशोधित अधिनिर्णय जारी करने और भूमि खोने वालों (इच्छुक व्यक्तियों) को देय शेष मुआवजे, यदि कोई हो, उसको दो महीने की अवधि के भीतर वितरित करने के लिए कहा।
केस टाइटल: ग्राम सुथसू और अन्य बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य के भूमि मालिक
साइटेशन: लाइवलॉ (जेकेएल) 107/2023
जजमेंट पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें