[कुदाथयी मर्डर] मात्र इसलिए कि याचिकाकर्ता एक महिला है, वह जमानत की हकदार नहीं, केरल हाईकोर्ट ने रद्द की जॉली की जमानत

Update: 2020-08-18 09:15 GMT

केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता एक महिला है, वह जमानत की हकदार नहीं है। हाईकोर्ट ने यह टिप्‍पणी कुदाथयी गांव की जॉली जोसेफ की जमानत याचिका को खारिज करते हुए की है। जॉली पर सायनाइड देकर अपने परिवार के छह सदस्यों की हत्या करने का आरोप है। उसने यह कृत्य 17 सालों की अवधि में किया था।

जमानत याचिका की सुनवाई में याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि एक महिला होने के कारण के आरोपी धारा 437 (1) सीआरपीसी के पहले प्रावधान की हकदार है, जिसमें कहा गया है कि 'अदालत यह निर्देश दे सकती है कि क्लॉज़ (i) या क्लॉज़ (ii) संदर्भित व्यक्ति को जमानत पर रिहा किया जाए, यदि ऐसा व्यक्ति सोलह वर्ष से कम उम्र का है, महिला है या बीमार है या दुर्बल है।'

उन्होंने कहा कि यह एक अनिवार्य प्रावधान है और याचिकाकर्ता धारा 437 (1) सीआरपीसी के पहले प्रावधान के तहत जमानत की हकदार है।

उक्त दलील के खारिज़ करते हुए जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन ने कहा, 

"धारा 437 (1) सीआरपीसी के पहले प्रोविज़ो में 'may' शब्द का प्रयोग किया गया है, जो दिखाता है कि यह न्यायालय का विवेकाधिकार है कि वह किसी ऐसे व्यक्ति को जमानत दे या न दे, जिसकी उम्र 16 साल से कम है, या एक महिला या बीमार या दुर्बल है।

धारा 437 सीआरपीसी में भी 'may' और 'shall'का प्रयोग विभ‌िन्न स्थानों पर किया गया है।

इसके अलावा, आपराधिक प्रक्रिया संहिता में भी, विध‌ायिका ने 'may' और 'shall' शब्द का उपयोग वि‌भिन्‍न स्थानों पर किया है और यह विधायिका के इरादे को दिखाएगा।

धारा 436 सीआरपीसी में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि, यदि कोई व्यक्ति जमानती अपराध का आरोपी है, ... तो उसे जमानत पर रिहा किया जाएगा। जबकि धारा 437 (1) सीआरपीसी में 'may' का प्रयोग किया जाता है, धारा 437 (2) सीआरपीसी में shall' शब्द का उपयोग किया जाता है।

धारा 437 की उपधारा (6) यह भी कहती है कि, उस उपधारा में वर्णित परिस्थितियों में, ऐसे व्यक्ति को जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा। इसलिए, कुछ निश्चित स्थानों पर। शब्द 'may' का उपयोग धारा 437 सीआरपीसी में किया जाता है। और कुछ स्थानों पर, 'shall' शब्द का प्रयोग धारा 437 सीआरपीसी में किया जाता है। यह स्पष्ट रूप से दिखाएगा कि, धारा 437 (1) का पहला प्रावधान अनिवार्य नहीं है। "

इस संबंध में, जज ने प्रमोद कुमार मांगलिक व अन्य बनाम साधना रानी व अन्य [1989 Crl.LJ 1772] का उल्‍लेख किया।

वकील की दलीलों और जमानत अर्जी को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा,  "यह अदालत का विवेक है कि वह यह तय करे कि एक महिला को प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार जमानत पर रिहा किया जाना है या नहीं। बस इसलिए कि याचिकाकर्ता एक महिला है, वह जमानत की हकदार नहीं है। इस मामले में, उसके खिलाफ आरोप बहुत गंभीर हैं। अभियोजन पक्ष का आरोप है कि, याचिकाकर्ता ने वर्तमान सहित छह हत्याओं को अंजाम दिया। सभी मामलों में हत्या करने का तरीका लगभग समान है। इसलिए, याचिकाकर्ता इस आधार पर जमानत का हकदार नहीं है कि वह एक महिला है।"

केस नं : Bail Appl..No.4628 OF 2020

केस टाइटल : जॉलिम्मा जोसेफ बनाम स्टेट ऑफ़ केरला

प्रतिनि‌धित्व: एडवोकेट बीए अलूर, सीनि. जीपी सुमन चक्रवर्ती

कोरम: जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन

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