भ्रामक विज्ञापनों मामले में बाबा रामदेव और बालकृष्ण को राहत, हाईकोर्ट ने आपराधिक मामलों पर लगाई रोक
केरल हाई कोर्ट ने सोमवार 14 जुलाई को दिव्य फार्मेसी इसके अध्यक्ष आचार्य बालकृष्ण और महासचिव स्वामी रामदेव (याचिकाकर्ताओं) के खिलाफ दर्ज ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम 1954 की धारा 3(ड) के उल्लंघन से संबंधित सात आपराधिक मामलों की कार्यवाही पर रोक लगा दी।
बता दें, धारा 3(ड) का सारांश इस प्रकार है:
कुछ बीमारियों या विकारों के इलाज के लिए कुछ दवाओं के विज्ञापन पर प्रतिबंध अधिनियम के प्रावधानों के अधीन रहते हुए कोई भी व्यक्ति ऐसा कोई विज्ञापन प्रकाशित नहीं करेगा, जो यह दर्शाए कि कोई दवा निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए उपयोगी है।
(ड) अनुसूची में वर्णित या अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए नियमों के तहत निर्दिष्ट किसी अन्य बीमारी, विकार या स्थिति के निदान, उपचार, निवारण या रोकथाम के लिए।
जस्टिस वी.जी. अरुण ने आदेश में उल्लेख किया कि कट्टप्पाना के प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट ने दवा निरीक्षक की शिकायत पर इन मामलों में संज्ञान लिया था। इन्हें सारांश वाद के रूप में दर्ज किया गया। इसी प्रकार, अन्य संबंधित मामलों में भी संबंधित दवा निरीक्षकों की शिकायतों पर न्यायालयों ने मामले दर्ज किए।
मामला जब विचारार्थ प्रस्तुत हुआ तो याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट ने तर्क दिया कि मजिस्ट्रेट ने सुप्रीम कोर्ट के इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम भारत संघ मामले में दिए गए निर्देश संख्या (v) के विपरीत संज्ञान लिया।
इस निर्देश के अनुसार शिकायतों को पहले संबंधित अधिकारी को भेजा जाना चाहिए, जो अधिनियम की धारा 8(1) के तहत कार्रवाई करें। यदि अधिकारी को अधिनियम के उल्लंघन का संदेह होता है तो उसे क्षेत्रीय पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करानी होती है।
न्यायालय ने माना कि इस मामले में विस्तृत विचार-विमर्श की आवश्यकता है। लोक अभियोजक को निर्देश दिए कि वे सरकार से आवश्यक निर्देश प्राप्त करें। इसके बाद न्यायालय ने अगली सुनवाई तक कार्यवाही पर रोक लगा दी।
इससे पहले भी केरल हाईकोर्ट ने इसी प्रकार के अन्य मामले में भ्रामक मेडिकल विज्ञापनों के प्रकाशन को लेकर दर्ज आपराधिक कार्यवाही पर स्थगन प्रदान किया था।
हाल ही में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी इन्हीं याचिकाकर्ताओं के खिलाफ भ्रामक विज्ञापन को लेकर दर्ज आपराधिक मामला रद्द कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि शिकायत में झूठे दावे का कोई प्रमाण या विवरण नहीं था और यह नहीं बताया गया था कि वह विज्ञापन किस प्रकार भ्रामक है।
अब यह मामला 22 अगस्त को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया