केरल हाईकोर्ट ने भारत में 5 साल से अधिक समय तक बिना वीजा के रहने वाले लिट्टे समर्थक को जमानत देने से इनकार किया

Update: 2022-08-13 06:17 GMT

केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को श्रीलंकाई आतंकवादी संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) से सहानुभूति रखने वाले संदिग्ध व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया। उक्त संदिग्ध व्यक्ति पर भारत में बिना वीजा के रहने, भारत और विदेशों में लिट्टे की गतिविधियों को आगे बढ़ाते हुए प्रतिबंधित हथियार और वस्तुओं की खरीद की साजिश रचने का आरोप है।

जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस सी. जयचंद्रन की खंडपीठ ने संदिग्ध व्यक्ति की अपील खारिज करते हुए कहा कि गवाहों के बयानों ने स्पष्ट रूप से स्थापित किया कि वह प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन लिट्टे का सक्रिय सदस्य है।

खंडपीठ ने कहा,

"गवाहों के बयान न केवल अवैध गतिविधियों के साथ अपीलकर्ता के अटूट संबंध को दर्शाते हैं, बल्कि प्रतिबंधित संगठन लिट्टे के साथ संबंध को भी दिखाते हैं। इसकी पुष्टि नाव में हेरोइन, हथियार और गोला-बारूद की तस्करी के प्रयास में उसकी मिलीभगत भी साबित करती है।"

मामले में भारी मात्रा में मादक दवाओं, एके-47 राइफलों और गोला-बारूद के साथ श्रीलंकाई मछली पकड़ने वाली नाव को नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो ने जब्त कर लिया। जहाज पर पाए गए छह श्रीलंकाई नागरिकों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। तदनुसार, उन्हें गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, शस्त्र अधिनियम सपठित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 34 के तहत गिरफ्तार किया गया।

एनआईए द्वारा जांच अपने हाथ में लेने के बाद लिट्टे के सदस्य होने के नाते दो और आरोपियों को हिरासत में ले लिया गया। बाद में एक आरोपी का भाई होने के कारण अपीलकर्ता को भी गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में पता चला कि वह विदेशी अधिनियम का उल्लंघन करने वाले वीजा के बिना भारत में रहा था।

एनआईए के अनुसार, जांच से पता चला कि उसने प्रतिबंधित हथियारों और गोला-बारूद की खरीद के अलावा भारत और विदेशों में लिट्टे की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए सक्रिय रूप से मिलीभगत की।

अपीलकर्ता ने जमानत के लिए एनआईए की विशेष अदालत का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उसका आवेदन खारिज कर दिया गया। एनआईए कोर्ट के उक्त फैसले को चुनौती देते हुए उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

अपीलकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट इरफान जीराज ने तर्क दिया कि उसे केवल इसलिए गिरफ्तार किया गया, क्योंकि वह एक आरोपी का भाई है। वकील ने कहा कि उसका प्रतिबंधित संगठन या अपने भाई के खिलाफ कथित गतिविधियों से जोड़ने का कोई सबूत नहीं है। एडवोकेट जीराज ने आगे तर्क दिया कि प्रस्तुत मामले में यूएपीए की धारा 43 डी (7) निश्चित रूप से लागू नहीं होगी, क्योंकि उसके खिलाफ भारत में बिना वीजा के अधिक समय तक रहने का आरोप है।

एनआईए की ओर से पेश एएसजीआई एस मनु ने दलील दी कि गवाहों द्वारा अपीलकर्ता की मिलीभगत के स्पष्ट सबूत हैं। आगे यह भी बताया गया कि अपीलकर्ता का अवैध तरीके से पांच साल तक भारत में रहना और बार-बार विदेश यात्रा करने के साक्ष्य इस बात के सबूत हैं कि उसने भारत में अनधिकृत प्रवेश किया हो सकता है।

अदालत ने अंतिम रिपोर्ट का अवलोकन किया और पाया कि एक आरोपी मामले में सरकारी गवाह बन गया। अनुमोदक ने विशेष रूप से उन लोगों के साथ अपने संबंध पर गवाही दी, जो लिट्टे के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। उसने यह भी कहा कि अपीलकर्ता और उसके भाई लिट्टे सदस्यों द्वारा आयोजित गुप्त मीटिंग में शामिल होते थे और लेखा पुस्तकों का सत्यापन करते थे।

अनुमोदक ने यह भी स्वीकार किया कि मीटिंग से वह समझ गया कि वे हथियारों और नशीले पदार्थों का कारोबार करके धन जुटाने की योजना बना रहे थे। अपीलकर्ता को ड्रग डीलरों में से एक के रूप में बताया गया, जिन्होंने कुछ खेपों, हथियारों और गोला-बारूद को ट्रांसपोर्ट करने की जिम्मेदारी ली।

अभियोजन पक्ष के अन्य गवाह ने भी गवाही दी कि भाई लिट्टे के सक्रिय समर्थक है। उसकी गतिविधियों को विस्तार देने के बारे में चर्चा करने के लिए मीटिंग में भाग लिया।

इसलिए, बेंच ने निष्कर्ष निकाला कि यह स्थापित करने के लिए पर्याप्त सामग्री है कि अपीलकर्ता लिट्टे की अवैध गतिविधियों में प्रत्यक्ष रूप से शामिल था।

दरअसल, फाइनल रिपोर्ट में उस पर अपने भाई के साथ लिट्टे का कोर कैडर होने का आरोप लगाया गया था। अत: यह निर्धारित किया गया कि अपीलकर्ता के विरूद्ध धारा 43डी के तहत लगाए गए आरोप में प्रथम दृष्टया सच्चाई है।

बेंच ने कहा,

"... गुप्त मीटिंग करने और भारत और श्रीलंका दोनों में आतंकवादी गिरोह लिट्टे की गतिविधियों को पुनर्जीवित करने और आगे बढ़ाने के लिए धन जुटाने के इरादे से ड्रग्स के साथ-साथ हथियारों और गोला-बारूद की तस्करी की अवैध गतिविधियों को अंजाम देने की साजिश रची गई। उक्त आतंकवादी गिरोह ड्रग्स, हथियार और गोला-बारूद की खरीद के लिए हवाला चैनल के माध्यम से मनी ट्रांसफर करता है। अन्य बातों के साथ-साथ खेप को भारत लाने का प्रयास करता है, जिसे भारत के जलीय क्षेत्र में रोक दिया गया। आरोप में प्रथम दृष्टया सच्चाई है कि अपीलकर्ता के खिलाफ धारा 43D(5) पूरी कठोरता से लागू होता है।"

पीठ ने इस तथ्य पर भी विचार किया कि अपीलकर्ता भारत में पांच साल से अधिक समय से रह रहा है। साथ ही गवाहों के बयान उसके भारत के बाहर लगातार यात्रा का संकेत देते हैं। उस परिस्थिति में यह संभव है कि अपीलकर्ता देश में आने के लिए जाली दस्तावेजों का उपयोग कर रहा हो। यह भी संभव है कि आने वाले वर्षों में उसने अक्सर अनधिकृत और अवैध रूप से देश में प्रवेश किया हो।

उपर्युक्त परिस्थितियों के मद्देनजर कोर्ट ने अपील खारिज कर दी।

केस टाइटल: रमेश बनाम मुख्य जांच अधिकारी और अन्य।

साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केर) 430

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