केरल हाईकोर्ट ने उस अमेरिकी नागरिक की वीज़ा अवधि बढ़ाने से इनकार किया जिसने कहा था कि वह केरल में अमेरिका से ज़्यादा सुरक्षित है
अमेरिकी नागरिक, 74-वर्षीय जॉनी पॉल पायर्स ने भारत में रहने के लिए यह कहते हुए वीज़ा की अवधि बढ़ाए जाने की मांग की थी कि वह केरल में खुद को अमेरिका से ज़्यादा सुरक्षित समझता है, लेकिन केरल हाईकोर्ट ने वीज़ा की अवधि बढ़ाने से इनकार कर दिया।
हाईकोर्ट ने कहा कि वीज़ा की अवधि बढ़ाने की ज़िम्मेदारी भारत सरकार की है और इस बारे में न्यायिक हस्तक्षेप का अवसर न्यूनतम है।
पायर्स 26 फ़रवरी को केरल आया। उसका वीज़ा 26 जनवरी 2025 तक वैध है पर उसे एक बार में सिर्फ़ 180 दिनों तक रहने की ही अनुमति है। इसका मतलब यह हुआ कि उसे 26 अगस्त से पहले भारत छोड़ना होगा।
पायर्स के केरल पहुंचने के कुछ दिन बाद वहां लॉकडाउन लागू हो गया। उसने यह कहते हुए अपनी वीज़ा अवधि को बढ़ाए जाने की मांग की है कि अमेरिका में एक लाख से ज़्यादा लोग कोरोना महामारी के कारण मारे गए हैं और जबकि केरल में मात्र 20 लोगों की ही मौत हुई है (24 जून तक)।
पायर्स ने कहा कि इस उम्र में वह अमेरिका की तुलना में केरल में खुद को ज़्यादा सुरक्षित महसूस कर रहा है। इसीलिए उसने आव्रजन और विदेशी पंजीकरण अधिकारी को इस बारे में लिखा। उसने अपने पर्यटक वीज़ा को व्यावसायिक वीज़ा में बदलने का आग्रह किया, लेकिन कोई अनुकूल उत्तर नहीं मिलने के बाद उसने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
न्यायमूर्ति सीएस डीआस की पीठ ने कहा कि कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों के बारे में विदेशी नागरिक संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत भारत में रहने और बस जाने के बारे में अपने मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकते।
इस बारे में कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले वाले जिन मामलों का हवाला दिया वे हैं -
-Louis De Raedt v. Union of India and Others [(1991) 3 SCC 554],
-State of Arunachal Pradesh v. Khudiram Chakma [(1994) Supp. (1) SCC 615] ,
-Hans Muller of Nurenburg v. Superintendent, Presidency Jail, Calcutta [AIR 1955 SC 367]
कोर्ट ने कहा,
"सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों को देखते हुए भारत में रहने देने की याचिकाकर्ता के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह भारत सरकार के दिशानिर्देशों और अधिकार क्षेत्र के तहत आता है…इसलिए याचिकाकर्ता की यह प्रार्थना कि उसे छह महीने से अधिक भारत में रहने देने और उसके पर्यटक वीज़ा को व्यावसायिक वीज़ा में बदलने की याचिका पर ग़ौर नहीं किया जा सकता है।"
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता जब भारत आया तो वह यहाँ की वीज़ा की स्थिति के बारे में जानता था और वीज़ा की स्थिति पर अपनी शिकायत दर्ज कराने का मौक़ा अब उसके पास नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि यद्यपि याचिकाकर्ता भारत से प्यार करता है जो कि सुखद है पर वह उसको वीज़ा की अवधि से ज़्यादा समय तक रहने की अनुमति नहीं दे सकता।
हालांकि महामारी की स्थिति और अंतर्राष्ट्रीय विमान सेवाओं के निलंबन को देखते हुए कोर्ट ने एफआरओ को अपीलकर्ता की अपील पर दो सप्ताह के भीतर जारी दिशानिर्देश और नीतियों के तहत ग़ौर करने को कहा है।
केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा कि गृह मंत्रालय के 5 मई के ऑफ़िस मेमोरंडम के अनुसार जिन विदेशियों की वीज़ा की अवधि समाप्त हो गई है या 1 फ़रवरी से अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों से प्रतिबंध हटाने की अवधि के बीच समाप्त हो रही है, वे वीज़ा की अवधि बढ़ाए जाने के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों से प्रतिबंध हटने से 30 दिनों तक के लिए यह राहत दी जा सकती है और भारत में अनुमति से ज़्यादा समय तक रहने के लिए उनसे कोई जुर्माना नहीं लिया जाएगा।
केस का विवरण
केस : जॉनी पॉल पायर्स बनाम भारत संघ
केस नमबर : WP(c) No. 13263/2020
कोरम : न्यायमूर्ति सीएस डीआस
पेशी : एस साजु, एवी साजन एवं नीलांजना नायर (याचिकाकर्ता के वकील); एएसजी पी विजयकुमार ने प्रतिवादी की पैरवी की।
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