जांच रिपोर्ट जमा करने के बाद कर्मचारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही 1.5 साल तक लंबित रखना 'अनुचित' : इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि जांच रिपोर्ट जमा करने के बाद किसी कर्मचारी के खिलाफ 1.5 साल की अवधि तक अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित रखना 'बेहद अनुचित और लंबा समय' है।
जस्टिस आलोक माथुर की पीठ ने एक यतेंद्र कुमार (निलंबित महाप्रबंधक, यूपी निर्माण निगम लिमिटेड) के मामले से निपटने के दौरान ऐसा देखा, जिसमें उनके खिलाफ शुरू की गई विभागीय कार्यवाही के विचार में यूपी सरकार द्वारा जून 2020 में पारित उनके निलंबन आदेश को चुनौती दी गई थी।
उनकी यह शिकायत थी कि मार्च 2021 में अनुशासनात्मक प्राधिकरण को पहले ही एक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने के बावजूद न तो उन्हें कारण बताओ नोटिस दिया गया है और न ही अनुशासनात्मक कार्यवाही समाप्त की गई है।
न्यायालय के समक्ष यह उनका निवेदन था कि याचिकाकर्ता 31 दिसंबर 2022 को सेवानिवृत्त हो जाएगा और उसके निलंबन के दौरान सेवानिवृत्त होने की संभावना है, इसलिए, अनुशासनात्मक कार्यवाही की लंबितता उसके सेवानिवृत्ति के बाद के बकाये और अन्य सेवा लाभों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी।
मामले के तथ्यों और दी गई दलीलों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने कहा कि यदि जांच रिपोर्ट मार्च, 2021 में प्रस्तुत की गई थी तो कोई कारण नहीं है कि उसके बाद अनुशासनात्मक कार्यवाही उचित समय के भीतर समाप्त क्यों नहीं की गई।
इसके अलावा, जब राज्य के वकील द्वारा न्यायालय को सूचित किया गया कि मामले में अंतिम आदेश पारित करने के लिए दो सप्ताह का समय आवश्यक है तो न्यायालय ने सक्षम प्राधिकारी को निर्देश के साथ याचिका का निपटान करना उचित समझा कि अधिकतम तीन सप्ताह की अवधि के भीतर जांच की कार्यवाही समाप्त की जाए।
गौरतलब है कि अदालत ने आगे कहा कि यदि अनुशासनात्मक कार्यवाही ऊपर निर्धारित समय के भीतर पूरी नहीं की जाती है तो 1 जून, 2020 का निलंबन का आदेश समाप्त हो जाएगा।
याचिकाकर्ता के लिए एडवोकेट शिवांशु गोस्वामी की सहायता से सीनियर एडवोकेट एस.सी. मिश्रा पेश हुए।
केस टाइटल - यतेंद्र कुमार बनाम अतिरिक्त मुख्य सचिव/प्रधान सचिव। लोक निर्माण विभाग के माध्यम से उत्तर प्रदेश राज्य और 4 अन्य [WRIT - A No. - 2670 of 2022]
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