कर्नाटक हाईकोर्ट ने न्यायाधीशों और न्यायिक प्रणाली के खिलाफ 'बेबुनियाद आरोप' लगाने वाले वकील को एक सप्ताह के लिए जेल भेजा
कर्नाटक हाईकोर्ट ने अदालत की अवमानना के आरोप में वकील को एक सप्ताह की न्यायिक हिरासत में भेजने का निर्देश दिया।
चीफ जस्टिस प्रसन्ना बी वराले और जस्टिस अशोक एस किनागी की खंडपीठ ने 2 फरवरी को वकील केएस अनिल के खिलाफ 2019 में शुरू की गई स्वत: अवमानना कार्यवाही में आदेश पारित किया।
पीठ ने कहा,
"न्यायालय की अवमानना करने के लिए आरोपी को न्यायिक हिरासत में लेने का आदेश पारित करने के अलावा इस अदालत के पास कोई अन्य विकल्प नहीं बचा है।"
अदालत ने निर्देश दिया कि अनिल को एक सप्ताह की अवधि के लिए न्यायिक हिरासत में लिया जाए और सुनवाई की अगली तारीख 10 फरवरी को उसके समक्ष पेश किया जाए।
यह नोट किया गया कि न्यायालय के समक्ष उपस्थित अभियुक्त ने सबसे पहले यह तर्क देना शुरू किया कि उसे जारी किए गए पहले के नोटिस को ठीक से तामील नहीं किया गया। इसके बाद उन्होंने कहा कि 13.01.2023 के आदेश में की गई टिप्पणियां उस दिन हुई घटनाओं के अनुरूप नहीं हैं।
पीठ ने अभियुक्त द्वारा दायर मेमो-कम-रिटन सबमिशन पर विचार किया, जिसमें उसने मामले को किसी अन्य बेंच को स्थानांतरित करने का आग्रह किया, क्योंकि उसने चीफ जस्टिस और वर्तमान न्यायाधीश के खिलाफ भारत के चीफ जस्टिस और न्याय विभाग और अन्य के समक्ष शिकायत दर्ज की है, जिसमें उन्हें आदेश पत्रक में गलत प्रविष्टियां करने का आरोप लगाया गया।
खंडपीठ ने कहा कि "उक्त मेमो में कुछ अपमानजनक बयान दिए गए " और वकील से अन्य विवरण जैसे आदेश की तारीख आदि के बारे में पूछा, जिस पर उन्होंने जवाब दिया कि यह आदेश हाईकोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध है।
मेमो में दिए गए बयान पर कि उसने डेंटिस्ट की पढ़ाई की थी, अदालत ने आरोपी से पूछा कि क्या उसे मौखिक प्रस्तुतियां देने या लिखित प्रस्तुतियां दाखिल करने के लिए कुछ समय चाहिए।
पीठ ने कहा,
"हालांकि, आरोपी ने अदालत के सवाल को टाल दिया और अहंकारपूर्ण व्यवहार करना शुरू कर दिया।"
आरोपी ने अदालत से सवाल भी किया कि वह एक दिन में दो अदालतों में कैसे पेश हो सकता है।
पीठ ने कहा,
"धैर्य से उसे सुनने की हमारी कोशिशों के बावजूद, आरोपी ने अदालत में इशारे करना शुरू कर दिया।"
अदालत ने कहा कि जजों के खिलाफ आरोप लगाने वाले आरोपी के बयान से साफ पता चलता है कि आरोपी का न्याय व्यवस्था से कोई सरोकार नहीं है।
अदालत ने कहा,
"आरोपी का प्रैक्टिसिंग एडवोकेट होना और पहले के मौकों पर आरोपी का लगातार व्यवहार और आज न्यायिक प्रणाली और विशेष रूप से न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ बेतहाशा आरोप लगाना यह दर्शाता है कि वह संस्था को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है और न्यायिक प्रणाली की छवि को खराब कर रहा है।"
केस टाइटल: कर्नाटक हाईकोर्ट और के एस अनिल
केस नंबर: क्रिमिनल सीसी 2019/9 सी/डब्ल्यू क्रिमिनल सीसी 2022/13