कर्नाटक हाईकोर्ट ने पब्लिक ट्रांसपोर्ट में ऑडियो एनाउंसमेंट की बहाली के लिए दायर जनहित याचिका पर राज्य से 'सकारात्मक प्रतिक्रिया' मांगी

Update: 2023-10-03 15:28 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार को एक दृष्टिबाधित व्यक्ति की ओर से दायर जनहित याचिका पर उचित, सकारात्मक और प्रभावी प्रतिक्रिया देने का निर्देश दिया। जनहित याचिका में राज्य और निगम की बसों और मेट्रो रेलवे में ऑडियो घोषणा सेवा की बहाली की मांग की गई है।

चीफ जस्टिस प्रसन्ना बी वराले और जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की खंडपीठ ने राज्य से विकलांग और दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए 'सुरक्षित और आरामदायक आवागमन' सुनिश्चित करने को कहा है और 9 नवंबर तक इस मामले में उसकी प्रतिक्रिया मांगी है।

कोर्ट ने कहा,

"इस बात पर कोई विवाद नहीं हो सकता कि यह याचिका एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा उठाती है और प्रतिवादी अधिकारी इसे प्रतिकूल मुकदमा नहीं मान सकते हैं, बल्‍कि उत्तरदाताओं को सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में याचिका पर जवाब देना चाहिए।"

याचिका में तर्क दिया गया है कि शुरुआत में केएसआरटीसी, बीएमटीसी बसों के साथ-साथ मेट्रो लाइनों जैसे ट्रांसपोर्ट साधनों में ऑडियो घोषणाओं की सुविधा थी, जिससे दृष्टिबाधित व्यक्तियों को स्टॉप या गंतव्य जानने में मदद मिलती थी। याचिककाकर्ता का दावा है कि जब उन्होंने इस ऑडियो सिस्टम में अचानक रुकावट देखी, तो उन्होंने अन्य दृष्टिबाधित दोस्तों और वालंटियर्स के साथ अपनी शिकायत साझा की और उन्हें पता चला कि उनके दोस्त भी इस कठिनाई का सामना कर रहे थे।

याचिका में कहा गया है,

"वह खुद और उनके दोस्त या अन्य वालंटियर्स स्पेशल ट्रीटमेंट की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि केवल एक सुविधा की मांग कर रहे हैं ताकि वे अपने गंतव्य तक पहुंच सकें.." ।

याचिकाकर्ता ने अदालत को यह भी बताया कि ज्यादातर समय बसों के कंडक्टर शारीरिक रूप से विकलांग या दृष्टिबाधित व्यक्तियों की मदद करते हैं, लेकिन अगर बसों में अत्यधिक भीड़ होती है तो वे उन पर अधिक ध्यान नहीं दे पाते हैं और इससे शारीरिक रूप से विकलांग या दृष्टिबाधित व्यक्तियों को , मंजिल तक पहुंचने में कठिनाई होती है।

उन्होंने अदालत को बताया कि महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्यों में, परिवहन के सभी प्रमुख साधनों यानी मेट्रो लाइन और सिटी बसों और राज्य परिवहन निगम की बसों में ऑडियो घोषणा की सुविधा मौजूद है।

कोर्ट ने कहा कि याचिका वर्ष 2022 में दायर की गई थी और उत्तरदाताओं को अगस्त में नोटिस जारी किया गया था, जिसमें उन्हें दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया था।

सरकारी वकीलों ने जब स्थगन की मांग की तब कोर्ट ने कहा, "हमें यह बताते हुए दुख हो रहा है कि हालांकि तीन अगस्त 2022 के आदेश के तहत दो सप्ताह का समय दिया गया था, लेकिन किसी भी उत्तरदाता ने याचिका पर कोई आपत्ति/प्रतिक्रिया दायर नहीं की।"

कोर्ट ने कहा,

"हमें खुशी होगी अगर राज्य सरकार कुछ अन्य सुझाव लेकर आए और अन्य राज्यों के लिए एक रोल मॉडल के रूप में सामने आए।"

केस टाइटल: एन श्रेयस और अन्य और बैंगलोर मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन और अन्य।

केस नंबर: WP 10744/2022

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