'यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा': कर्नाटक हाईकोर्ट ने दो गटर सफ़ाई कर्मियों की मौत और हाथ से गटर साफ़ करने के बाद क्लीनर की आत्महत्या पर टिप्पणी की
कर्नाटक हाईकोर्ट ने दो गटर सफाई कर्मचारियों की हाल ही में हुई मौतों और एक सफाईकर्मी के आत्महत्या करने की एक अन्य घटना पर गंभीर रूप से चिंता व्यक्त की है। इस सफाईकर्मी को गटर साफ करने के लिए मजबूर किया गया था।
मुख्य न्यायाधीश एएस ओका की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने सोमवार को राज्य सरकार को निर्देश दिया कि कर्नाटक में मद्दुर टाउन नगर पालिका के पुरूरमिका की मैनहोल को बिना सुरक्षा उपकरणों के साफ करने की घटना की निष्पक्ष और उचित जांच सुनिश्चित करने के लिए एक हफलनामा दायर कर जवाब दें।
याचिकाकर्ता ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन की ओर से पेश हुए एडवोकेट क्लिफ्टन रोजारियो ने पीठ को सूचित किया कि मृतक नारायण (37) पर अधिकारियों ने यह कहने के लिए दबाव डाला कि उसने स्वेच्छा से मैनहोल में प्रवेश किया था और उसे सुरक्षा उपकरण दिए गए थे।
रिपोर्ट के अनुसार, मृतक अपने पीछे 12, 10 और 7 साल की उम्र के तीन बच्चों को छोड़ गया है। याचिकाकर्ता संगठन ने कहा है कि उसने नगरीय प्रशासन निदेशालय को एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें दोषी अधिकारियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने और नारायण को मुआवजा देने के लिए कदम उठाए जाने की मांग की गई।
ज्ञापन में उत्तरदाताओं को नारायण के आश्रितों को सभी पुनर्वास और क्षतिपूर्ति लाभ नियमावली और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 के तहत प्रदान करने के लिए दिशा-निर्देशों के लिए प्रार्थना की गई है।
मैनुअल मैला ढोने का तरीका यह है कि इसमें मैनहोल की सफाई, सीवेज पाइप, भूमिगत जल निकासी पाइप आदि शामिल हैं।
सुनवाई के दौरान, अदालत ने दो लोगों की मौत की जांच के संबंध में अधिकारियों को कर्नाटक शहरी जल आपूर्ति और ड्रेनेज बोर्ड द्वारा तैयार रिपोर्ट पर नाराजगी व्यक्त की। इस घटना में लाल अहमद (30) और रशीद अहमद (25), 28 जनवरी को मौत हो गई थी। ये दोनों प्राधिकरण के साथ मजदूर के रूप में काम कर रहे थे और कथित तौर पर मैनुअल स्कैवेंजिंग करने के लिए बनाए जा रहे थे।
अधिवक्ता रोज़ारियो ने प्रस्तुत किया कि अधिकारियों ने दावा किया कि मृतक मैनहोल में फिसल गया और मर गया। हालांकि पीठ ने भी यह माना कि उचित जांच किए बिना रिपोर्ट जारी की गई है।
अदालत ने कहा,
"प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि कलबुर्गी के कार्यकारी इंजीनियर ने बिना किसी जाँच के रिपोर्ट प्रस्तुत की है कि ठेकेदारों के कर्मचारी गलती से मैनहोल चैंबर में फिसल गए और उन्हें बचाने के लिए ठेकेदारों के अन्य दो मजदूर ने चैंबर में प्रवेश किया। रिपोर्ट से पता चलता है कि कार्यकारी इंजीनियर और उत्तरदाता 12 द्वारा कोई जांच नहीं की गई थी, ऐसा लगता है कि रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की गई है, जो बिना किसी आधार के है।"
सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की:
"ये आप (प्राधिकरण) द्वारा नियुक्त किए गए ठेकेदार हैं, अंततः यह आपकी ज़िम्मेदारी है कि आप यह पता करें कि क्या यह अचानक गिरे थे। घटना का असली कारण क्या है?"
वहीं प्राधिकरण के लिए उपस्थित वकील एच एन शशिधारा ने कारण बताओ नोटिस का यह कहते हुए बचाव करने की कोशिश की कि यह रिपोर्ट कार्यकारी इंजीनियर द्वारा प्राप्त प्रारंभिक सूचना पर आधारित है और मामले में प्राथमिकी बाद में दर्ज की गई है। हालांकि, पीठ ने उस रुख पर सवाल उठाया और जिसके बाद उसने कहा कि "मैं मुख्य इंजीनियर से अनुरोध करूंगा कि वह जांच करे और पूरी रिपोर्ट सौंपे।"
अदालत ने तदनुसार, यह अनुरोध मंजूर कर लिया।
राज्य सरकार ने पहले हाईकोर्ट द्वारा जारी अंतरिम निर्देशों के संबंध में दो खंडों में एक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। वहीं याचिकाकर्ताओं के वकील ने रिपोर्ट से निपटने के लिए समय मांगा था।
पुलिस ने अदालत को एक सील बंद लिफाफे में कलबुर्गी में मारे गए दो व्यक्तियों की मृत्यु के कारण पर फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला और डॉक्टर की राय से रिपोर्ट भी सौंपी। पुलिस ने अदालत के समक्ष यह भी बयान दिया कि मामले में आरोप पत्र सोमवार से एक सप्ताह के भीतर दायर कर दिया जाएगा। अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि सुनवाई की अगली तारीख 16 मार्च को, पुलिस को पहले दायर आरोप पत्र की एक प्रति पेश करनी चाहिए।
अदालत ने दिसंबर 2020 में पारित अपने अंतरिम आदेश में राज्य सरकार को कई दिशा-निर्देश जारी किए थे और कहा था कि:
"ऐसा कोई विवाद नहीं हो सकता है। हमारा संवैधानिक दर्शन किसी भी रूप में हाथ से मैला ढोने की अनुमति नहीं देता है। नागरिकता का अधिकार और गरिमा के साथ जीने का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों का एक अभिन्न अंग है। संविधान की प्रस्तावना से पता चलता है कि संविधान हर किसी व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करना चाहता है। इस बात पर कोई विवाद नहीं हो सकता है कि मैनुअल स्कैवेंजिंग सबसे अमानवीय है और यह अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। "
बेंच ने कहा कि:
"यदि किसी भी नागरिक को मैनुअल स्कैवेंजिंग करने के लिए मजबूर किया जाता है, तो यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त उसके मौलिक अधिकार का घोर उल्लंघन होगा। भारत के संविधान के अनुच्छेद 47 के तहत, जो राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों का एक हिस्सा है। वह राज्य के अपने लोगों के जीवन स्तर में सुधार के लिए प्रयास करने के दायित्व के तहत है।"