कर्नाटक हाईकोर्ट ने एनएलएसआईयू में प्रदेश के अधिवासी छात्रों को 25 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने पर रोक लगायी

Update: 2020-09-08 11:04 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने प्रदेश के अधिवासी (डोमिसाइल) छात्रों को बेंगलुरु स्थित नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवसिर्टी (एनएलएसआईयू) में 25 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने को लेकर राज्य विधान सभा द्वारा पारित नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी संशोधन अधिनियम 2020 पर मंगलवार को अंतरिम रोक लगाने का आदेश जारी किया।

कोर्ट ने साथ ही कर्नाटक के विद्यार्थियों के लिए प्रवेश परीक्षा के कट-ऑफ स्कोर में पांच प्रतिशत की रियायत पर भी रोक लगा दी। एनएलएसआईयू ने संबंधित निर्णय को हरी झंडी देने के लिए चार अगस्त को एक अधिसूचना जारी की थी।

न्यायमूर्ति बी वी नागरत्न और न्यायमूर्ति रवि होसमानी की खंडपीठ ने कहा,

"याचिकाओं में उठाये गये मुद्दों को ध्यान में रखते हुए तथा इस लॉ स्कूल में प्रवेश लेने के इच्छुक विद्यार्थियों के हितों को लेकर जागरूक होने के कारण हम अंतरिम आदेश जारी करना उचित समझते हैं।"

कोर्ट ने हालांकि, एनएलएसआईयू को चार अगस्त की अधिसूचना के तहत सीटों की संशोधित संख्या (120) के अनुसार नामांकन प्रक्रिया जारी रखने को कहा है। दूसरे शब्दों में, सीटों की संख्या को 80 से बढ़ाकर 120 किये जाने के खिलाफ कोई अंतरिम आदेश जारी नहीं किया गया है।

न्यायमूर्ति बी वी नागरत्न और न्यायमूर्ति रवि होसमानी की खंडपीठ ने कहा :

"चूंकि हमने संबंधित संशोधन पर रोक लगा दी है इसलिए हमने कट-ऑफ स्कोर में पांच प्रतिशत की रियायत पर भी रोक लगायी है। हालांकि, आप (एनएलएसआईयू) संबंधित संशोधन एवं (कट-ऑफ स्कोर में) पांच प्रतिशत की रियायत के अनुरूप सूची तैयार करें और इसे सीलबंद लिफाफे में रखें तथा प्रकाशित न करें। केवल बगैर संशोधन वाली मेधा सूची ही प्रकाशित करें।"

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मेधा सूची रिट याचिका के अंतिम फैसले पर निर्भर करेगी। याचिका के अंतिम निपटारे तक एनएलएसआईयू में सभी नामांकन को अस्थायी नामांकन के रूप में माना जायेगा।

गौरतलब है कि कर्नाटक विधान सभा ने गत मार्च में नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया (संशोधन) अधिनियम, 2020 पारित किया था, जिसे 27 अप्रैल को राज्य के राज्यपाल से मंजूरी मिली थी। इस संशोधन के तहत, एनएलएसआईयू को कर्नाटक के विद्यार्थियों के लिए 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करना अनिवार्य बनाया गया है।

नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया अधिनियम की धारा चार में संशोधन के जरिये निम्न प्रावधान किये गये हैं :-

"तथापि इस अधिनियम में निहित तथा इसके अंतर्गत बनाये गये नियमों के बावजूद, यह लॉ स्कूल कर्नाटक के विद्यार्थियों के लिए सीधे 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करेगा।"

इस धारा की व्याख्या के अनुसार, 'कर्नाटक के विद्यार्थी' का अर्थ उस छात्र छात्रा से है, जो क्वालिफाइंग एक्जामिनेशन से पहले राज्य के मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों में से किसी एक में कम से कम 10 साल पढ़ाई की हो।

गौरतलब है कि नामांकन की चाहत रहने वाले अभ्यर्थियों के एक समूह ने इस संशोधन को चुनौती देते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने भी डोमिसाइल रिजर्वेशन को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की थी। 

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