आग की घटना के बाद जस्टिस यशवंत वर्मा का व्यवहार अस्वाभाविक, साजिश के सिद्धांत को जांच समिति ने किया खारिज

Update: 2025-06-20 07:20 GMT

तीन जजों की इन-हाउस जांच समिति ने जस्टिस यशवंत वर्मा को उनके सरकारी बंगले से सटे स्टोर रूम में अघोषित नकदी रखने के लिए दोषी ठहराते हुए कहा कि 14 मार्च को आग की घटना के बाद उनका व्यवहार अस्वाभाविक था, जिससे उनके खिलाफ नकारात्मक निष्कर्ष निकलते हैं।

द लीफलेट द्वारा सार्वजनिक किए गए इस जांच समिति की रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ दुर्व्यवहार के आरोपों में पर्याप्त आधार हैं।

नकदी की बरामदगी और जस्टिस वर्मा की जवाबदेही

समिति ने 55 गवाहों (जिसमें जस्टिस वर्मा और उनकी बेटी भी शामिल हैं) के बयान और वीडियो-फोटो साक्ष्यों की जांच कर यह निष्कर्ष निकाला कि नकदी उनके सरकारी आवास में स्थित स्टोररूम से मिली थी, जो कि उनके और उनके परिवार के निगरानी या नियंत्रण में था।

जस्टिस वर्मा नकदी के होने के बारे में कोई विश्वसनीय स्पष्टीकरण नहीं दे सके और सिर्फ साजिश का सामान्य आरोप लगाते रहे। इसलिए समिति ने उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की।

आग की घटना के बाद संदेहास्पद आचरण

समिति ने पाया कि 15 मार्च को भोपाल से लौटने के बाद जस्टिस वर्मा ने आग लगने की जगह का निरीक्षण नहीं किया, जो कि सामान्य मानवीय व्यवहार के विपरीत है।

उन्होंने केवल तब जाकर स्थान देखा, जब दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के निजी सचिव वहां पहुंचे।

समिति ने कहा,

"अगर आग में केवल घरेलू सामान भी जले हों, तब भी किसी व्यक्ति की स्वाभाविक प्रतिक्रिया होगी कि वह क्षति का निरीक्षण करे। जस्टिस वर्मा का ऐसा न करना, तर्कविहीन और अस्वाभाविक है।"

साजिश का दावा निराधार

जस्टिस वर्मा ने यह दावा किया कि यह सब उनके खिलाफ रची गई साजिश है लेकिन समिति ने इसे खारिज कर दिया क्योंकि उन्होंने किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिया और न ही किसी मकसद का उल्लेख किया।

इसके अलावा समिति ने यह भी कहा कि जज के आधिकारिक आवास जैसे उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्र में कोई बाहरी व्यक्ति नकदी प्लांट नहीं कर सकता, जहाँ स्थायी सुरक्षा बल, पीएसओ और घरेलू कर्मचारी तैनात रहते हैं।

सीसीटीवी फुटेज को संरक्षित न करना गंभीर लापरवाही

जस्टिस वर्मा ने बताया कि सीसीटीवी कैमरे काम नहीं कर रहे थे और उनका डाटा रिट्रीव नहीं हो सका, लेकिन समिति ने पाया कि उन्होंने 10 दिनों तक फुटेज सुरक्षित रखने का कोई प्रयास नहीं किया, जबकि यह उनके बचाव का सबसे मजबूत माध्यम हो सकता था।

समिति ने कहा,

"17 मार्च को जब उन्हें सूचित किया गया कि जलती हुई नकदी के फोटो-वीडियो मौजूद हैं, तब भी उन्होंने न तो पुलिस को शिकायत की और न ही हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को सूचित किया।"

ट्रांसफर प्रस्ताव को चुपचाप स्वीकार करना भी संदेहास्पद

जस्टिस वर्मा ने 20 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर के प्रस्ताव को बिना किसी आपत्ति के स्वीकार कर लिया।

समिति ने इसे भी नकारात्मक संकेत के रूप में देखा, क्योंकि उन्होंने स्थानांतरण के कारणों को जानने का कोई प्रयास नहीं किया, जबकि वे तीन वर्षों से दिल्ली हाईकोर्ट में सेवाएं दे रहे थे।

निष्कर्ष

समिति ने अंतिम निष्कर्ष में कहा,

"स्टोर रूम में जली हुई नकदी का पाया जाना निर्विवाद रूप से स्थापित है। इसका उत्तरदायित्व जस्टिस वर्मा पर था कि वे नकदी की विश्वसनीय व्याख्या करें या साजिश सिद्ध करें। ऐसा न कर पाने के कारण समिति यह मानती है कि नकदी उन्हीं की थी और वह उसके स्रोत का स्पष्टीकरण देने में विफल रहे।"

8 मई को तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना ने समिति की यह रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को फॉरवर्ड की थी, क्योंकि जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था।

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