न्यायमूर्ति एस मुरलीधर उड़ीसा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और जस्टिस हिमा कोहली तेलंगाना हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश नियुक्त
केंद्र सरकार ने गुरुवार को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ. एस मुरलीधर को उड़ीसा हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्ति किया गया। इसके साथ ही न्यायमूर्ति मोहम्मद रफीक को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में स्थानांतरित किया गया है।
केंद्र ने तेलंगाना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति हिमा कोहली की नियुक्ति की भी अधिसूचना जारी की है। हालांकि तेलंगाना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राघवेन्द्र सिंह चौहान को उत्तराखंड हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश के रूप में स्थानांतरित किया जाना प्रस्तावित है।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए पी साही की सेवानिवृत्ति के बाद कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति संजीब बंजारे को मद्रास हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया है।
इससे पहले केंद्र ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जे के माहेश्वरी को सिक्किम हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और सिक्किम हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एके गोस्वामी को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के सीजे के रूप में स्थानांतरित करने करने की भी अधिसूचना जारी की है।
जस्टिस मुरलीधर के बारे में
जस्टिस मुरलीधर ने अपनी लॉ प्रैक्टिस वर्ष 1984 में चेन्नई से शुरू की। तीन साल बाद, 1987 में वह सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में स्थानांतरित हो गए। वह सुप्रीम कोर्ट कानूनी सेवा समिति के वकील के रूप में सक्रिय थे और बाद में दो कार्यकालों के लिए इसके सदस्य बने।
उन्हें पीआईएल के कई मामलों में और मृत्युदंड पर दोषियों से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एमिकस क्यूरिया नियुक्त किया गया था। उनके निशुल्क कार्य में भोपाल गैस आपदा के पीड़ितों और नर्मदा पर बांध से विस्थापित लोगों के मामले शामिल थे।
उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और भारत निर्वाचन आयोग के लिए भी परामर्श दिया और विधि आयोग के अंशकालिक सदस्य रहे। मई 2006 में, उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। वर्ष 2003 में, उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा पीएचडी से सम्मानित किया गया।
दिल्ली हाईकोर्ट में न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान न्यायमूर्ति मुरलीधर ने न्यायाधीशों को "लॉर्डशिप" के रूप में संबोधित करने से रोका। वह कई महत्वपूर्ण बेंच का हिस्सा रहे हैं, जिसमें 2010 में पूर्ण पीठ शामिल है जिसने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के अपनी संपत्ति की जानकारी आरटीआई में घोषित करने के पक्ष में फैसला सुनाया था।
वह हाईकोर्ट की खंडपीठ का एक हिस्सा थे, जिसने 2009 के नाज फाउंडेशन मामले में समलैंगिकता को वैध घोषित किया था।
उन्होंने उस खंडपीठ का भी नेतृत्व किया जिसने हाशिमपुरा नरसंहार मामले में उत्तर प्रदेश प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी (PAC) के सदस्यों और 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को दोषी ठहराया था। उन्हें फरवरी 2020 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया गया था।
जस्टिस हिमा कोहली के बारे में
जस्टिस हिमा कोहली ने बार काउंसिल ऑफ दिल्ली में एक वकील के रूप में दाखिला लिया।
उन्हें 29 मई, 2006 को दिल्ली उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था और उन्होंने 29.08.2007 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।
उन्हें 11.3.2020 से दिल्ली न्यायिक अकादमी की समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था।