मीडिया कर्मियों को धमकी या उगाही का अधिकार नहीं: हाईकोर्ट ने ज़ी राजस्थान के पूर्व प्रमुख पर दर्ज FIR रद्द करने से किया इनकार
राजस्थान हाईकोर्ट ने स्पष्ट टिप्पणी करते हुए कहा कि मीडिया पेशेवरों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे किसी को डराने-धमकाने या उगाही के माध्यम से नुकसान न पहुंचाएं। इसी आधार पर न्यायालय ने ज़ी राजस्थान के पूर्व चैनल प्रमुख के खिलाफ दर्ज उगाही की FIR रद्द करने से इनकार किया।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने कहा कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है और देश के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व अंतरराष्ट्रीय मामलों में इसकी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है। यह जनता को निर्णय-प्रक्रिया में भागीदारी का अवसर देता है लेकिन यह व्यापक शक्ति जिम्मेदारी के साथ जुड़ी होती है। मीडिया को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके कार्यों से किसी को अनुचित क्षति न पहुंचे और न ही धमकी या दबाव के जरिये किसी से कुछ हासिल करने का प्रयास किया जाए।
न्यायालय ने जोर देते हुए कहा कि स्वतंत्र प्रेस लोकतंत्र के अस्तित्व और सुशासन के लिए अनिवार्य है, पर इसकी जिम्मेदारी भी उतनी ही बड़ी है कि जनता तक सही, तथ्यपरक, निष्पक्ष और सत्यापित सूचना पहुंचे। मीडिया संस्थानों और पत्रकारों को सत्य, सटीकता और निष्पक्षता जैसे मूल सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। किसी को डराकर उगाही करना या गलत रिपोर्टिंग के भय से दबाव बनाना न सिर्फ अनुचित है बल्कि इससे जनविश्वास भी टूटता है।
मामले में शिकायतकर्ता ज़ी मीडिया का कहना था कि याचिकाकर्ता ने चैनल के प्रमुख पद पर रहते हुए अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया और कई लोगों से नकारात्मक खबर चलाने की धमकी देकर पैसों की मांग की। ऐसे कई आरोप सामने आने के बाद कंपनी ने FIR दर्ज कराई। वहीं याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि किसी कथित पीड़ित ने स्वयं सामने आकर शिकायत नहीं की और न ही आपराधिक विश्वासघात का कोई मामला बनता है क्योंकि संपत्ति सौंपे जाने का कोई प्रश्न ही नहीं है।
दोनों पक्षों की दलीलों और अभिलेखों का अवलोकन करने के बाद न्यायालय ने कहा कि FIR में याचिकाकर्ता के विरुद्ध कई संज्ञेय अपराधों के गंभीर आरोप लगाए गए, जिनमें अपने पद का दुरुपयोग कर वेंडरों से धन की मांग करना और नकारात्मक प्रसारण की धमकी देना शामिल है। ऐसे मामलों में केवल यह कह देना कि आरोप मात्र हैं, संज्ञेय अपराध के अस्तित्व को नकार नहीं सकता। इन आरोपों की जांच कार्यवाही सक्षम जांच एजेंसी द्वारा की जानी आवश्यक है।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपों की सत्यता, उनकी प्रामाणिकता और याचिकाकर्ता की निर्दोषता का निर्धारण जांच के दौरान ही होगा। इस स्तर पर हस्तक्षेप कर FIR रद्द करने का कोई आधार नहीं बनता।
इन्हीं कारणों से हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की अर्जी खारिज कर दी और उगाही से जुड़ी FIR कायम रखी।