न्यायपालिका के पास पैसे या तलवार की ताकत नहीं, यह जनता के भरोसे से ही जीवित रहती हैः केरल हाईकोर्ट

Update: 2021-11-06 09:34 GMT

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायिक स्वतंत्रता के महत्व पर विचार किया। जस्टिस पीबी सुरेश कुमार की पीठ ने ऐसी याचिकाओं का निस्तारण कर रहा था, जिनमें न्यायिक न्यायिक कदाचार का आरोप लगाया गया था।

याचिकाओं में भारत के मुख्य न्यायाधीश और केरल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को केरल हाईकोर्ट के दो जजों के कथित न्यायिक कदाचार की जांच के लिए एक इन-हाउस कमेटी गठित करने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

जस्टि‌स कुमार ने कहा,

"न्यायपालिका के पास पैसे या तलवार की ताकत नहीं है। यह जनता के भरोसे से ही जीवित रहती है और समाज की स्थिरता के लिए यह महत्वपूर्ण है कि जनता का विश्वास न डगमगाए।"

यही कारण है कि समाज यह उम्मीद करने का हकदार है कि एक जज को निष्ठावान, ईमानदार, और त्रुटिहीन व्यवहार का होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई भी आचरण जो जज की सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता में जनता के विश्वास को कमजोर करता है, न्यायिक प्रक्रिया की प्रभावकारिता के लिए हानिकारक होगा।

कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 124(4) का भी उल्लेख किया, जो एक जज को पद से हटाने के लिए महाभियोग की जटिल प्रक्रिया प्रदान करता है।

पीठ ने कहा, तथ्य यह है कि एक जज को केवल साबित कदाचार या अक्षमता के लिए महाभियोग लगाया जा सकता है। इस प्रकार की आंतरिक पद्धति से यह पुष्ट‌ि होती है कि कानून के शासन को बनाए रखने, मजबूत करने और बढ़ाने के लिए जज की स्वतंत्रता सर्वोपरि है।

कोर्ट दोहराया कि लोकतंत्र कानून के शासन से शासित है। न्यायपालिका नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सजग प्रहरी है।

कोर्ट ने कहा न्यायपालिका की स्वतंत्रता कानून के शासन का एक अनिवार्य गुण है। संविधान के तहत न्यायपालिका को राज्य के हर अंग को कानून की सीमा के भीतर रखने का काम सौंपा गया था, जिससे कानून का शासन सार्थक और प्रभावी बना रहे।

कोर्ट ने कहा कि इसलिए, यह नितांत आवश्यक पाया गया कि न्यायपालिका किसी भी प्रकार के दबाव या प्रभाव से मुक्त हो।

बेंच ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की,

"...यह याद रखना आवश्यक है कि न्यायिक स्वतंत्रता और न्यायिक व्यक्तिवाद का उद्देश्य जज के लाभ के लिए नहीं, बल्कि उसके लाभ के लिए है, जिसे जज किया जाना है।"

कोर्ट ने यह टिप्पणी मराडू फ्लैट विध्वंस मामले में ‌दिए फैसले से व्यथित एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका की सुनवाई करते हुए कि। याचिकाकर्ता ने शुरू में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष शिकायतें की थीं, लेकिन कथित तौर पर कोई कार्रवाई नहीं की गई थी।

याचिकाकर्ता ने न्यायाधीशों के खिलाफ कथित न्यायिक कदाचार की जांच के लिए एक आंतरिक समिति के गठन और उनकी शिकायतों पर पारित किसी भी तर्कपूर्ण आदेश की एक प्रति देने की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

केस शीर्षक: मैथ्यू जेड पुलिकुनेल बनाम भारत के मुख्य न्यायाधीश और अन्य।

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