जेएनयू वीसी नौ केंद्रों के अध्यक्षों की नियुक्ति के लिए अधिकारों का प्रयोग नहीं कर सकते: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2021-11-03 05:31 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया पाया कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के वाइस चांसलर (वीसी) नौ विशेष केंद्रों में अध्यक्षों की नियुक्ति करने की शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकते। हाईकोर्ट ने कहा कि वीसी द्वारा की गई नियुक्तियों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के लंबित रहने के दौरान उन्हें बड़े निर्णय लेने से रोक सकते हैं।

न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की खंडपीठ एकल न्यायाधीश द्वारा पारित एक आदेश दिनांक 28.09.2021 के खिलाफ एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने नौ प्रोफेसरों की नियुक्ति पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। इन प्रोफेसर को वीसी द्वारा विभिन्न विशेष केंद्रों के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था।

अपीलकर्ता की ओर से उपस्थित अधिवक्ता अभिक चिमनी ने प्रस्तुत किया कि जेएनयू वीसी द्वारा शक्ति का प्रयोग जेएनयू अधिनियम के तहत विश्वविद्यालय के क़ानून 18(दो)(सी)(आई) का पूर्ण उल्लंघन है। इसलिए कि शक्ति कार्यकारी परिषद को विशेष केंद्रों के अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए स्पष्ट रूप से अधिकृत किया गया है।

यह भी प्रस्तुत किया गया कि कार्यकारी परिषद 02.09.2021 को आयोजित अपनी 296वीं बैठक में नियुक्तियों की पुष्टि नहीं कर सकती।

दूसरी ओर, प्रतिवादियों की ओर से पेश अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा ने प्रस्तुत किया कि नियुक्तियां वीसी द्वारा विश्वविद्यालय के क़ानून के क़ानून चार(पांच) के तहत उन्हें प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए की गई।

यह देखते हुए कि विशेष केंद्रों के अध्यक्षों की नियुक्ति की शक्ति स्पष्ट रूप से कार्यकारी परिषद को प्रदान की गई है, न कि वीसी को।

पीठ ने कहा:

"इसलिए, प्रथम दृष्टया प्रतिवादी नंबर दो केंद्रों/विशेष केंद्रों के अध्यक्षों को नियुक्त करने की शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता।"

न्यायालय का यह भी विचार था कि वीसी उस स्थिति में शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं जहां तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता होती है। इसके बाद संबंधित प्राधिकरण को इसकी मंजूरी प्राप्त करने के लिए सूचित किया जाता है।

इसे देखते हुए पीठ ने कहा:

"इसलिए, प्रथम दृष्टया उत्तरदाताओं को ध्यान में रखा गया कि जिस रास्ते पर वे आगे बढ़ रहे है शायद वह रास्ता सही नहीं है। इसके बावजूद, ऐसा प्रतीत होता है कि संबंधित केंद्रों के अध्यक्षों की नियुक्ति के लिए प्रतिवादी नंबर दो आगे बढ़ा गया।"

कोर्ट ने कहा,

"उपरोक्त स्थिति को देखते हुए हम इस विचार को पाते हैं कि प्रतिवादी नंबर दो केंद्रों/विशेष केंद्रों के अध्यक्षों की नियुक्ति करने की शक्ति के साथ निहित नहीं है। क़ानून कार्यकारी परिषद को नियुक्ति की शक्ति प्रदान करता है। इस प्रकार, स्पष्ट रूप से नियुक्ति प्रतिवादी नंबर दो द्वारा केंद्रों/विशेष केंद्रों के अध्यक्षों की नियुक्ति प्रथम दृष्टया बिना अधिकार के है।"

हालांकि, यह देखते हुए कि विशेष केंद्रों को प्रभावी कामकाज के लिए अध्यक्षों की आवश्यकता होती है, अदालत ने एकल न्यायाधीश को निर्देश दिया कि वह इसे 10.11.2021 को निर्देशों के लिए सूचीबद्ध करे। एकल पीठ के समक्ष ही नियुक्तियों को चुनौती देने वाली याचिकाएं सुनवाई के लिए लंबित हैं।

कोर्ट ने कहा,

"रिट याचिका में नियुक्त किए गए नौ अध्यक्ष की नियुक्त से संबंधित लंबित निर्णय और जिनके नाम केस फाइल के अनुलग्नक पी21 में निर्धारित हैं, यानी कार्यकारी परिषद की 296वीं बैठक के कार्यवृत्त चयन समितियों के आयोजन से संबंधित कार्यों और/या केंद्रों/विशेष केंद्रों से संबंधित चयन(ओं) को पूरा करने सहित कोई बड़ा निर्णय नहीं लेंगे।"

शीर्षक: अतुल सूद बनाम जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय रजिस्ट्रार और अन्य के माध्यम से।

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