जम्मू-कश्मीर भूमि अधिग्रहण अधिनियम | कलेक्टर को मुआवजा अवार्ड वापस लेने या उस पर पुनर्विचार करने का अधिकार नहीं: हाईकोर्ट

Update: 2023-06-22 10:46 GMT

Jammu and Kashmir and Ladakh High Court

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि एक बार राज्य भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1990 की धारा 11 के तहत अवार्ड दिया गया है तो वही अंतिम है और पार्टियों पर बाध्यकारी है। इसमें स्पष्ट किया गया कि कलेक्टर के पास अवार्ड पारित होने के बाद उसे वापस लेने या उस पर पुनर्विचार करने का कोई अधिकार नहीं है।

जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस राजेश सेखरी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं की सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिन्होंने कलेक्टर भूमि अधिग्रहण (एसडीएम), गंदोह के आदेश पर सवाल उठाया, जिसके तहत अंतिम अवार्ड के संदर्भ में याचिकाकर्ताओं के पक्ष में किए गए भुगतान की मांग की गई, जो याचिकाकर्ताओं से वसूला गया।

यह मामला तब उठा जब मोहम्मद अमीन शाह ने दावा किया कि पुल के एबमेंट के निर्माण के लिए अधिग्रहीत भूमि वास्तव में उसके खसरे में स्थित है, न कि याचिकाकर्ताओं के खसरे में। कलेक्टर भूमि अधिग्रहण, गंदोह ने भूमि के नए सिरे से सीमांकन का आदेश दिया और पाया कि शाह सही थे।

कलेक्टर ने तब याचिकाकर्ताओं को उनका भुगतान किया गया मुआवजा वापस करने का आदेश दिया, क्योंकि भूमि का उपयोग वास्तव में पुल के निर्माण के लिए नहीं किया गया। याचिकाकर्ताओं ने तत्काल याचिका में आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी।

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और राज्य भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1990 के प्रासंगिक प्रावधानों की जांच करने के बाद अदालत ने कहा कि एक बार जब कलेक्टर अंतिम अवार्ड पारित करता है और इसे कार्यालय में दाखिल करता है तो यह वास्तविक क्षेत्र, मूल्य, और मुआवज़े का बंटवारा भूमि का अंतिम और निर्णायक सबूत बन जाता है।

अदालत ने पाया कि अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो कलेक्टर को अवार्ड वापस लेने या उस पर पुनर्विचार करने या अंतिम अवार्ड के विपरीत मुआवजे के भुगतान या वसूली के लिए निर्देश जारी करने की अनुमति दे।

हालांकि अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि अधिग्रहीत भूमि का कब्ज़ा नहीं लिया गया तो सक्षम प्राधिकारी अधिग्रहण से हट सकता है और अधिग्रहण रद्द कर सकता है।

यह देखते हुए कि विवादित आदेश भी टिकाऊ नहीं है, क्योंकि यह याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का अवसर प्रदान किए बिना जारी किया गया है, अदालत ने कहा कि जिन याचिकाकर्ताओं को पहले ही उनकी अधिग्रहित भूमि के लिए मुआवजा मिल चुका है, उन्हें इसे वापस करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।

इसके अलावा, पीठ ने उत्तरदाताओं को निर्देश दिया कि वे मोहम्मद अमीन शाह की स्वामित्व वाली भूमि, यदि कोई हो, उसके खिलाफ उचित कार्रवाई करें, जिसका उपयोग एबटमेंट के निर्माण के लिए किया गया। वैकल्पिक रूप से उत्तरदाताओं को सलाह दी गई कि वे शाह के साथ निजी तौर पर बातचीत करें और उन्हें उनकी ज़मीन का मुआवज़ा दें।

इसके अतिरिक्त, अदालत ने यह भी कहा कि कोई भी अप्रयुक्त अर्जित भूमि, जो राज्य में निहित है, यदि याचिकाकर्ताओं द्वारा अतिक्रमण किया जाता है या फिर से कब्जा कर लिया जाता है तो उसे कब्जे में लिया जा सकता है और यदि आवश्यक हो तो उसे लाभकारी उपयोग में लाया जा सकता है या उसका निपटान किया जा सकता है।

केस टाइटल: मोहम्मद शरीफ और अन्य बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य।

साइटेशन: लाइव लॉ (जेकेएल) 163/2023

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