कारण बताओ नोटिस में व्यक्तिगत सुनवाई की तिथि, समय, स्थान के कॉलम में "एनए" : झारखंड हाईकोर्ट ने अधिनिर्णय आदेश रद्द किया
झारखंड हाईकोर्ट ने अधिनिर्णय आदेश ((Adjudication Order)) को रद्द करते हुए माना कि सीजीएसटी अधिनियम की धारा 73 के तहत जारी नोटिस, व्यक्तिगत सुनवाई की तारीख, समय और स्थान के कॉलम में प्रतिवादियों द्वारा "एनए" के रूप में इंगित किया गया है, जिसका अर्थ है लागू नहीं।
जस्टिस अपरेश कुमार सिंह और जस्टिस दीपक रोशन की खंडपीठ ने कहा कि अधिनिर्णय आदेश कानून में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार नहीं है। यह आदेश जेजीएसटी अधिनियम के वैधानिक प्रावधानों के गैर-अनुपालन और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के गैर-अनुपालन के आधार पर रद्द करने योग्य है।
याचिकाकर्ता/निर्धारिती रजिस्टर्ड डीलर है। निर्धारिती गुड़, महुआ और क्राना के सामानों के व्यापार में है। अधिकारियों की टीम द्वारा याचिकाकर्ता के परिसर का इंस्पेक्शन किया गया। यह रिकॉर्ड करके निरीक्षण रिपोर्ट तैयार की गई कि GSTR-3B रिटर्न और ऑटो-पॉप्युलेट GSTR-2A रिटर्न के बीच कुछ विसंगतियां हैं।
प्रतिवादी/विभाग ने जेजीएसटी अधिनियम की धारा 70(1) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए याचिकाकर्ता को पेश होने और संबंधित लेखा पुस्तकों को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता विधिवत रूप से उपस्थित हुआ और प्रासंगिक दस्तावेज प्रस्तुत करके जांच कार्यवाही में भाग लिया।
जेजीएसटी अधिनियम की धारा 70 के तहत याचिकाकर्ता को 3 अप्रैल, 2019 को सम्मन में दर्शाए गए दस्तावेजों के साथ पेश होने के निर्देश के साथ समन जारी किया गया। समन के अनुसरण में याचिकाकर्ता विधिवत रूप से उपस्थित हुआ और प्रतिवादी के समक्ष अपेक्षित दस्तावेज प्रस्तुत किए। याचिकाकर्ता को फॉर्म GST DRC-01 पर सारांश कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। फॉर्म GST DRC-01 जारी करने के बाद कारण बताओ और व्यक्तिगत सुनवाई के नोटिस जारी किए बिना याचिकाकर्ता के खिलाफ JGST अधिनियम की धारा 73 (1) के तहत अधिनिर्णय आदेश पारित किया गया।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को कोई कारण बताओ नोटिस जारी नहीं किया गया और न ही आदेश या आदेश का सारांश नहीं बताया गया। अचानक, अधिनियम की धारा 79(1)(c) के तहत GST DRC-13 में निहित बैंक अटैचमेंट नोटिस याचिकाकर्ता के बैंकर को फॉर्म GST DRC-07 के अनुसार याचिकाकर्ता के बैंक खाते को अटैच किया गया। जीएसटी डीआरसी-13 फॉर्म जारी होने के बाद ही याचिकाकर्ता को निर्णय की कार्यवाही और प्रतिवादी द्वारा पारित आदेशों के बारे में पता चला।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि विभाग ने कारण बताओ नोटिस की प्रति और सुनवाई का अवसर दिए बिना अधिनिर्णय आदेश पारित कर दिया। परिणामस्वरूप फॉर्म जीएसटी डीआरसी -07 जारी किया। आदेशों का सारांश बस भारी दायित्व को तेज करने के लिए कर ब्याज और जुर्माने से संबंधित था। मूल्यांकन आदेश न्यायिक विवेक का इस्तेमाल किए बिना जारी किया गया।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि जीएसटी अधिनियम की धारा 16 (2) कहीं भी यह निर्धारित नहीं करती कि डीलर अपने जीएसटीआर -3 बी रिटर्न में आईटीसी का दावा करने का हकदार नहीं होगा, जो कि जीएसटीआर -2 ए स्टेटमेंट में परिलक्षित नहीं हुआ।
प्रतिवादी ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता न्याय निर्णायक प्राधिकारी के समक्ष पेश हुआ और आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत किए। उसके बाद ही इन दोनों रिट आवेदनों में आदेश पारित किया गया। यदि याचिकाकर्ता को कोई शिकायत है तो वह अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील दायर कर सकता है।
अदालत ने माना कि जेजीएसटी अधिनियम की धारा 73 और 75 के तहत निहित वैधानिक आवश्यकताओं का पालन नहीं किया गया। वास्तव में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का भी पालन नहीं किया गया।
केस टाइटल: मेसर्स. ओम प्रकाश स्टोर बनाम झारखंड राज्य
साइटेशन: डब्ल्यू.पी. (टी) नंबर 1526/2022
दिनांक: 18.08.2022
याचिकाकर्ता के वकील: एडवोकेट सुमीत गडोदिया, शिल्पी संदिल गडोदिया
प्रतिवादी के लिए वकील: एडवोकेट पी.ए.एस.
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