जामिया लाइब्रेरी हिंसाः घायल छात्र के लिए मुआवजे की मांग, दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस और सरकार को भेजा नोटिस
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार को जामिया मिल्लिया इस्लामिया के एक छात्र को यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी में हुई कथित पुलिस क्रूरता में आई गंभीर चोटों के मामले में मुआवजे के मांग के लिए दायर याचिका पर नोटिस जारी किया है।
चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस हरि शंकर की खंडपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी करते हुए मामले को रिट के जरिए पेश किए जाने पर चिंता व्यक्त की। दिल्ली हाईकोर्ट में यह याचिका नबीला हसन ने दायर की है, जिन्होंने एक छात्र को आई गंभीर चोट के लिए लगभग दो करोड़ रुपए मुआवजे की मांग की है।
उन्होंने अपनी दलील में कहा, 'याचिकाकर्ता के दोनों पैर खराब हो गए हैं। उसे गंभीर चोटें आई हैं, जिनके इलाज में ढाई लाख रुपए पहले ही खर्च हो चुके हैं।' उन्होंने हाल ही में इंटरनेट पर सामने आए सीसीटीवी फुटेज का भी हवाला दिया है। उनका कहना है कि ये फुटेज यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी के अंदर पुलिस की कथित बर्बरता का स्पष्ट उदाहरण है।
याचिका के समर्थन में, छात्र का इलाज कर रहे डॉक्टर की डिस्चार्ज रिपोर्ट भी पेश की गई है। नबीला हसन ने दावा किया है रिपोर्ट मुआवजे के उनके दावे की पुष्टि करती है। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका के जरिए ऐसे मामले को उठाए जाने पर अपनी नाराजगी जाहिर की है।
कोर्ट ने कहा, 'आप इस प्रार्थना के लिए मुकदमा क्यों दायर नहीं करतीं? इस मामले में सबूतों की जांच की आवश्यकता है, हम केवल याचिका में पेश अनुलग्नकों पर भरोसा नहीं कर सकते।' केंद्र सरकार की ओर से पेश अमित महाजन ने याचिका में दिए गए तथ्यात्मक दावों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
इसलिए, अदालत ने कहा:
'हर चीज के लिए रिट याचिका दायर करना दिल्ली में एक फैशन बन गया है। ऐसा नहीं है कि हमारे पास अनुच्छेद 226 के तहत शक्तियां नहीं हैं, लेकिन ऐसी असाधारण शक्तियों का सावधानीपूर्वक उपयोग करने की आवश्यकता है।'
नबीला ने अपनी दलील में कहा कि छात्रों की शिकायत पर पुलिस ने एफआईआर तक दर्ज नहीं की है। इसके अलावा, इसी प्रकार के पिछले मामले में कोर्ट दूसरे पक्ष को नोटिस जारी कर चुकी है । इसलिए, उन्होंने मौजूदा मामले में कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने घायल छात्र को अंतरिम मुआवजे दिए जाने की भी मांग की।
अदालत ने, हालांकि, अंतरिम मुआवजे की मांग को स्वीकार नहीं किया।
कोर्ट ने कहा:
'तथ्यों और सबूतों का मूल्यांकन किए बिना मुआवजे की गणना कैसे की जा सकती है। आप कोई भी राशि मांग सकती हैं, लेकिन हमें पहले तथ्यों पर गौर करने की जरूरत है। ' अदालत ने याचिकाकर्ता को यह भी कहा कि यदि मामले में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई, तो वह आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के तहत मजिस्ट्रेट के पास जा सकती थीं।
मामले पर अगली सुनवाई 27 मई को होगी।