MeitY के विधायी दायरे के भीतर आईटी नियम: केंद्र ने बॉम्बे हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर स्‍थगन का विरोध किया

Update: 2021-08-13 07:15 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट

केंद्र सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 (आईटी रूल्स, 2021) के खिलाफ दायर याच‌िकाओं पर किसी भी प्रकार की अंतरिम राहत का विरोध किया है और इस संबंध में बॉम्बे हाईकोर्ट में एक जवाबी हलफनामा दायर किया है, जिसमें कहा गया है कि किसी भी राहत ‌का उत्तरोत्तर प्रभाव हो सकता है, जिसका नतीजा "फेक न्यूज और कानूनी रूप से निषिद्ध सामग्र‌ियों के प्रसार में हो सकता है।"

केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय (MIB) में उप सचिव अमरेंद्र सिंह की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया है कि नियम ऑनलाइन और ऑफलाइन मीडिया के बीच एक "लेवन प्लेयिंग फिल्‍ड" बनाने के लिए हैं, और पारंपरिक समाचार प्रकाशकों (प्रिंट और टीवी) के लिए तय मानदंडों के समान हैं।"

हलफनामे में कहा गया है कि "नियमों के भाग- III के कार्यान्वयन या संचालन पर अंतरिम रोक डिजिटल मीडिया प्रकाशकों के लिए कानूनी रूप से स्थापित संस्थागत ढांचे को निष्क्रिय कर देगी, जिससे दंड से मुक्ति का माहौल होगा, और फेक न्यूज और कानूनी रूप से निषिद्ध सामग्री का प्रसार होगा। ऐसी स्थिति न केवल नागरिकों के सही जानकारी के अधिकार को नुकसान पहुंचा सकती है, बल्कि एक सुरक्षित ऑनलाइन समाचार मीडिया पारिस्थितिकी तंत्र के विकास के लिए विभिन्न हितधारकों द्वारा किए जा रहे प्रयासों को भी प्रभावित कर सकती है।"

हलफनामा यह दिखाने के लिए विभिन्न कानूनी मिसालों का हवाला देता है कि कानून के पक्ष में एक पुर्वानुमान है और अदालत को अंतरिम चरण में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि "कुछ बहस योग्य बिंदु उठाया जाता है, जो अदालतों को विवाद पर विचार करने के लिए राजी करता है।"

हलफनामे में यह भी तर्क दिया गया है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के दायरे में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का विनियमन शामिल है जो मीडिया रिकॉर्ड की प्रकृति में हैं, और इसलिए आईटी नियम यूनियन मिनिस्ट्री इलेक्ट्रॉनिक्स और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (MeitY) के दायरे के भीतर हैं। यह याचिकाकर्ताओं के तर्क के जवाब में है कि आईटी नियमों के भाग III अल्ट्रा-वायर्स हैं क्योंकि आईटी एक्ट डिजिटल मीडिया के विनियमन पर विचार नहीं करता है।

इस सप्ताह की शुरुआत में सोमवार को चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की खंडपीठ ने एजीआईजे प्रमोशन ऑफ नाइनटीनवनए मीडिया प्राइवेट लिमिटेड की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई की। यह कपंनी डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म 'द लीफलेट' की मालिक है। साथ ही पत्रकार निखिल वागले की एक जनहित याचिका पर विचार किया गया,‌ जिन्होंने नियमों पर रोक लगाकर अंतरिम राहत देने की मांग की थी।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने, इस साल जून से कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद, देश के किसी भी हाईकोर्ट के समक्ष केंद्र सरकार द्वारा किसी भी हलफनामे की अनुपस्थिति का हवाला देते हुए, राहत देने में रुचि द‌िखाई। तब अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने अंतरिम राहत का विरोध करते हुए एक संक्षिप्त हलफनामा दायर करने के लिए दो दिनों का समय मांगा, जबकि कहा कि एक विस्तृत हलफनामा तीन से चार दिनों के भीतर दायर किया जा सकता है।

एजीआईजे ने आरोप लगाया है कि नियम कठोर हैं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इसका "घातक प्रभाव" पड़ सकता है और इसलिए एक घोषणा की मांग की है कि जहां तक ​​समाचार प्रकाशकों पर लागू होते हैं, नियम अल्ट्रा वायर्स हैं और अंतरिम रूप से इनके संचालन पर रोक की मांग की।

वागले ने आरोप लगाया कि नियम "कार्यकारी को निरंकुश शक्तियां प्रदान करते हैं कि वे बिचौलियों को प्रासंगिक सामग्री और जानकारी को हटाने या संशोधित करने या अवरुद्ध करने का निर्देश दें, जो सार्वजनिक उपयोग के लिए उनके कंप्यूटर संसाधनों में उत्पन्न, प्रसारित, प्राप्त, संग्रहीत या होस्ट की गईं हैं।" 

उन्होंने मांग की कि नियमों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19(1)(a), 19(1)(g) और अनुच्छेद 21 के तहत मनमाना, अवैध, तर्कहीन, अनुचित और किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघनकारी घोषित किया जाए।

एमआईबी के हलफनामे में कहा गया है कि नियमों को मोटे तौर पर तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है - भाग I विभिन्न शासी पहलुओं और संस्थाओं को परिभाषित करता है जो नियमों के तहत आते हैं; भाग II बिचौलियों द्वारा उचित परिश्रम और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) द्वारा प्रशासित शिकायत निवारण तंत्र के बारे में है; और भाग III समाचार और समसामयिक मामलों की सामग्री के प्रकाशक और एमआईबी द्वारा प्रशासित डिजिटल मीडिया पर ऑनलाइन क्यूरेट की गई सामग्री के प्रकाशकों के संबंध में आचार संहिता और प्रक्रिया सुरक्षा उपाय है।

समाचार और समसामयिक मामलों की सामग्री के प्रकाशकों के संबंध में, नियमों के भाग-II में तीन व्यापक विशेषताएं हैं - एक आचार संहिता जिसके तहत डिजिटल समाचार प्रकाशकों द्वारा प्रेस परिषद अधिनियम, 1978 के तहत भारतीय प्रेस परिषद द्वारा तय पत्रकारिता आचरण के मानदंडों का पालन करना आवश्यक है। केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 की धारा 5 के तहत कार्यक्रम संहिता का पालन आवश्यक है; और उन्हें ऐसी सामग्री प्रकाशित करने से रोकता है जो किसी भी कानून के तहत प्रतिबंधित है; एक त्रि-स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र है, जो आचार संहिता के उल्लंघन से संबंधित शिकायत के निवारण के लिए है। साथ में स्व-विनियमन के दो स्तर हैं- स्तर I प्रकाशक है, और स्तर II स्व-नियामक निकाय है और तीसरा स्तर निरीक्षण है, जो सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत तंत्र है।

हलफनामे में कहा गया है कि 1,800 से अधिक डिजिटल मीडिया प्रकाशक, जिनमें से 97% से अधिक समाचार और करंट अफेयर्स सामग्री के प्रकाशक हैं, ने याचिकाकर्ता एजीआईजे सहित एमआईबी को जानकारी प्रस्तुत की है, जिसने शिकायत निवारण तंत्र भी स्थापित किया है और शिकायत अधिकारी नियुक्त किया है।

केरल हाईकोर्ट के अंतरिम आदेशों पर भरोसा नहीं किया जा सकता

याचिकाकर्ताओं ने आईटी नियमों के खिलाफ लाइव लॉ और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन द्वारा दायर याचिकाओं में केरल हाईकोर्ट द्वारा पारित अंतरिम आदेशों पर भरोसा किया था । हाईकोर्ट ने नियमों के भाग III के तहत लाइव लॉ और एनबीए के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई को रोकने के लिए अंतरिम आदेश पारित किया था ।

इस संबंध में, केंद्र ने तर्क दिया है कि केरल हाईकोर्ट द्वारा पारित अंतरिम आदेशों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है क्योंकि वे बिना कारणों के पारित किए गए हैं, याचिकाकर्ताओं के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को दर्ज किए बिना, और अधीनस्थ की संवैधानिकता के अनुमान पर सुप्रीम कोर्ट के उदाहरणों की अनदेखी करते हैं।

यह भी कहा गया है कि केरल हाईकोर्ट के अंतरिम आदेशों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिकाएं दायर की गई हैं।

इसके अलावा, केंद्र ने बॉम्बे हाईकोर्ट को सूचित किया कि उसने उच्चतम न्यायालय में स्थानांतरण याचिकाएं दायर की हैं, जिसमें आईटी नियमों को चुनौती देने वाली सभी हाईकोर्ट की याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग की गई है, और याचिकाओं को जल्द ही सूचीबद्ध किए जाने की संभावना है।

हलफनामे में कहा गया है, "उपरोक्त के आलोक में, यह सम्मानपूर्वक प्रस्तुत किया जाता है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाई किए जा रहे विभिन्न संबंधित मामलों पर कानूनी उदाहरणों, वर्तमान मामले के तथ्यों और इस न्यायालय में निर्णय के संभावित उत्तरोत्तर प्रभाव के आधार पर, याचिकाकर्ताओं द्वारा अंतरिम राहत की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया जाए।"

याचिकाओं पर बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई हो रही है।

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