[आईटी नियम संशोधन] फैक्ट चेक यूनिट द्वारा चिह्नित कंटेंट को हटाने में विफल रहने वाले इंटरमीडियरीज के लिए कोई प्रतिरक्षा नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा

Update: 2023-06-08 06:17 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट में केंद्र सरकार के केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और मंत्रालय सूचना प्रौद्योगिकी (MeitY) ने हलफनामा दायर कर बताया कि यदि कोई सोशल मीडिया या समाचार वेबसाइट पर प्रकाशित सूचना को सरकार की फैक्ट चेक यूनिट (एफसीयू) 'गलत' या 'भ्रामक' के रूप में पाती है और वह उस सूचना को हटाने को कहती है, अगर वह सोशल मीडिया प्लेटफार्म या वेबसाइट उस सूचना नहीं हटाती है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होने पर उस सोशल मीडिया प्लेटफार्म या वेबसाइट को अदालत के समक्ष अपने उस निर्णय पर स्पष्टीकरण देना होगा कि उसने  उक्त कंटेंट अपने प्लेटफार्म से क्यों नहीं हटाया।

हलफनामे में कहा गया कि इस तरह की वेबसाइट या इंटरमीडियरीज को आईटी एक्ट की धारा 79 के तहत जो छूट मिली है, उसका फायदा वे तभी उठा सकते हैं, जब कि उन्होंने अपने कंटेंट के खिलाफ की हुई रिपोर्ट पर ध्यान दिया हो।

सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2023 में संशोधन को चुनौती देने वाली स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा की उस याचिका के जवाब में MeitY ने मंगलवार को हलफनामा दिया, जिसमें कामरा ने आईटी नियम, 2023 के उन नियमों को चुनौती है, जिनमें एफसीयू को सरकार के खिलाफ फर्जी या भ्रामक समाचारों की पहचान करने की अनुमति दी है।

सुनवाई के दौरान मंत्रालय ने एफसीयू को 10 जून तक अधिसूचित नहीं करने के लिए कहा।

हलफनामा याचिकाकर्ताओं के आरोपों को खारिज करता है कि एफसीयू का फ्री स्पीच पर भयानक प्रभाव पड़ेगा या यह इंटरमीडियरीज को सरकार के बारे में भ्रामक या फेक कंटेंट का हवाला देकर सही सूचनाओं को हटाने का आदेश दे सकता है। कहा गया कि पिछले नियमों से एकमात्र वास्तविक विचलन इंटरमीडियरीज को नहीं हैं, जो पूर्ण प्रतिरक्षा का आनंद ले रहे हैं।

हलफनामा में कहा गया,

"एकमात्र अंतर यह होगा कि फैक्ट चेक प्रैक्टिस के बारे में जानकारी होने के बावजूद कोई कदम नहीं उठाते है [जो वह करना चुन सकता है], उसे आईटी अधिनियम की धारा 79 के तहत प्रतिरक्षा नहीं मिलेगी। कानून की अदालत के समक्ष गुण के आधार पर अपनी कार्रवाई का बचाव करना होगा, जहां निर्माता या प्रेषक और इंटरमीडियरीज के खिलाफ कार्रवाई की जाती है।“

इसमें कहा गया कि सच्ची सूचना प्राप्त करने का अधिकार भी मौलिक अधिकार है।

हलफनामे में कहा गया,

"सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक दायित्व के तहत कार्य करेगी कि नियामक सिस्टम के माध्यम से इस देश के नागरिकों को सूचना और कंटेंट मिले, जो सत्य और सही हो और भ्रामक और जानबूझकर प्रचारित और पेडल की गई जानकारी प्राप्त करने से सुरक्षित है।"

हलफनामे में नियम कैसे काम करेगा, यह समझाते हुए बताया गया कि यदि निर्माता या लेखक जानबूझकर भ्रामक कंटेंट पब्लिश या शेयर करते हैं तो इससे गुमराह या बदनाम होने वाला व्यक्ति आईटी नियमों के नियम 3(2) के तहत इंटरमीडियरीज के शिकायत निवारण सिस्टम से संपर्क कर सकता है। इसके बाद पीड़ित पक्ष नियमों के नियम #ए के तहत शिकायत अपील समिति से संपर्क कर सकता है।

दो उपायों को विफल करने पर सामग्री या प्रभावित पक्ष के दर्शक अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। अदालत को तब यह तय करना होगा कि क्या कंटेंट गलत, असत्य या भ्रामक है और क्या इसे जानबूझकर संप्रेषित किया गया।

इसलिए हलफनामे में कहा गया कि यह एफसीयू नहीं है जो कंटेंट को हटाने का आदेश देगा बल्कि अदालत इस पर अंतिम निर्णय लेगी।

हलफनामा में इस संबंध में कहा गया,

"हालांकि, अगर इस तरह के प्रदर्शन, अपलोड, पब्लिश, संचारण, भंडारण या शेयर करने से किसी को कोई नुकसान होता है या सार्वजनिक शरारत या कानून व्यवस्था की स्थिति पैदा होती है, या राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालती है तो उचित कानूनी कार्यवाही शुरू की जा सकती है और केवल अदालत ही अंतिम होगी सूचना/कंटेंट के नकली, झूठे या भ्रामक होने के बारे में इंटरमीडियरीज और क्या यह जानबूझकर संप्रेषित किया गया।

चूंकि दो नई याचिकाएं आईटी नियमों में एक ही संशोधन को चुनौती देते हुए दायर की गई, इसलिए मामले को 6 जुलाई को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कार्यवाही के दौरान डीईआईटीवाई का प्रतिनिधित्व करेंगे।

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