मुक़दमा लड़ना अच्छा है पर जो मुक़दमा लड़ता है उसे इसकी क़ीमत भी चुकानी चाहिए; बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीपीसीएल की दूसरी अपील ख़ारिज की

Update: 2020-05-01 05:00 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को भारत पेट्रोलियम कॉर्परेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) की दूसरी अपील ख़ारिज कर दी और साथ में उससे इसकी क़ीमत भी वसूली। यह मुक़दमा बीपीसीएल को 22 वर्ष पहले 20 साल के लिए 14,550 वर्ग फ़ुट का प्लॉट लीज़ पर देने से संबंधित है।

न्यायमूर्ति डीएस नायडू ने कहा कि इसके नवीनीकरण का बीपीसीएल का आग्रह विफल हो चुका है और इस मामले को आगे बढ़ाने कि लिए उसे फटकार लगाई।

न्यायमूर्ति डीएस नायडू ने कहा,

"आपको जो चाहिए अगर वह क़ानून नहीं देता है, तो मुक़दमा आपको देगा। ऐसा लगता है कि अपीलकर्ता इसमें बहुत मज़बूती से विश्वास करता है और इसे सही भी साबित करता है…वह 1965 में लीज़ लेता है; ग़ैर पंजीकृत लीज़ हासिल करता है; बल्कि वह असावधानी के कारण लीज़ क़रार को पंजीकृत कराने में विफल रहता है; अगले 20 साल तक लीज़ रखता है जो कि मूल रूप से लीज की अवधि थी; लीज़ बढ़ाने की बात करता है पर इसमें विफल रहता है; फिर वह लीज़ बढ़ाए जाने के लिए मुक़दमा करता है जो वह हार जाता है; वह अपील करता है और अपील ख़ारिज हो जाती है; पर इसके बाद फिर अपील करता है।

इस पूरी अवधि के दौरान वह संपत्ति अपने पास रखता है। अब वह पिछले 55 साल से किरायेदार है और यह सब इसलिए कि लीज़ क़रार पंजीकृत नहीं था। दूसरे शब्दों में, उसे 30 दिनों का किरायेदार होना था; एक ग़ैर पंजीकृत लीज़ के रूप में उसको इतनी ही अवधि मिलती है, लेकिन बीपीसीएल पिछले 55 सालों से किरायेदार बना हुआ है। क़ानून उसे 30 दिन देता है पर मुक़दमा से वह 20,075 दिन प्राप्त करने में सफल रहा।"

पृष्ठभूमि

बीपीसीएल ने जो 20 साल के लिए प्लॉट किराए पर लिया उसका किराया ₹3900 प्रति माह था। बीपीसीएल ने इस लीज़ को लापरवाही से पंजीकृत नहीं कराया और इसमें लीज़ की अवधि समाप्त होने पर इसे अगले 20 और साल के लिए बढ़ाए जाने का प्रावधान था।

1976 में, इस लीज़ के समाप्त होने से पहले उस समय यह कंपनी जो कि बर्मा शेल के नाम से जानी जाती थी, इस कंपनी का भारत सरकार ने अधिग्रहण कर लिया और यह भारत रिफ़ायनरीज़ लिमिटेड हो गई जिसे बाद में बीपीसीएल कर दिया गया। 1977 में इस प्लॉट के मालिक ने बीपीसीएल को इस जगह से बेदख़ल करने के लिए मुक़दमा दायर कर दिया।

इस मुक़दमे के निलंबित रहने के दौरान लीज़ की अवधि समाप्त हो गई और 1985 में बीपीसीएल ने लीज़ की अवधि को बढ़ाने को कहा पर उसने ऐसा करने से मना कर दिया। इसके बाद बीपीसीएल ने नासिक की अदालत में नियमित दीवानी मुक़दमा दायर कर दिया। निचली अदालत ने 7 मई 2005 को इस मामले को ख़ारिज कर दिया।

इसके बाद बीपीसीएल ने एक और मुक़दमा दायर किया और अदालत ने 11 दिसम्बर 2013 को इसे भी ख़ारिज कर दिया। इसके बाद बीपीसीएल ने दूसरी अपील दाखिल की।

फ़ैसला

अदालत ने भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम रुस्तम बेहरामजी कोलाह मामले में आए फ़ैसले पर भरोसा जताया। इस फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य फ़ैसले का ज़िक्र करते हुए कहा गया कि अदालत का मत लीज़ के लगातार बढ़ाए जाने के ख़िलाफ़ है।

अदालत ने कहा,

"पहले तो यह कि ग़ैर पंजीकृत लीज़ से निगम का कोई अधिकार नहीं बनता है; दूसरा, बर्मा शेल अधिनियम में बेमियादी लीज़ की बात नहीं है; तीसरा, निगम मुक़दमा में जितनी अवधि की लीज़ की मांग की है वह उससे ज़्यादा अवधि की लीज़ उसे पहले ही मिल चुकी है, जबकि वह मुक़दमा हार चुका है; और चौथा, इस अदालत की राय में निगम को आगे और लीज़ प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं है…।

दूसरी अपील विफल हो गई है। अदालत इस पर लागत लगाते हुए इस मामले को ख़ारिज करती है…।"

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